बिहारः जदयू ने ललन को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना एक तीर से साधे कई निशाने, अब एक और नेता की तलाश

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बहाने जदयू ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। राजनीतिक गलियारे में ललन के अध्यक्ष बनने के बाद चर्चा है कि जदयू ने संकेत दिया है कि वह केवल अति पिछड़े या पिछड़े वर्ग की पार्टी नहीं।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 07:21 PM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 07:21 PM (IST)
बिहारः जदयू ने ललन को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना एक तीर से साधे कई निशाने, अब एक और नेता की तलाश
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह। जागरण आर्काइव।

भुवनेश्वर वात्स्यायन, पटना। राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बहाने जदयू ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। राजनीतिक गलियारे में ललन के अध्यक्ष बनने के बाद चर्चा है कि जदयू ने संकेत दिया है कि वह केवल अति पिछड़े या पिछड़े वर्ग की पार्टी नहीं। समय के हिसाब से सशक्त सवर्ण नेतृत्व से भी उसे गुरेज नहीं। ललन सिंह पूर्व में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। नीतीश कुमार के सर्वाधिक विश्वासपात्र लोगों में शुमार ललन की विशेषता रही है कि वह पार्टी प्रबंधन में महारत रखते हैं। इस वक्त जब जाति आधारित जनगणना को लेकर जदयू के लोग मुखर हैं तो ऐसे समय में सवर्ण को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के भी विशेष मायने हैं। यह भी संदेश साफ दिया गया कि जदयू केवल अति पिछड़े-पिछड़े या फिर दलित-महादलित पर केंद्रित दल नहीं है।

सवर्ण समाज के किसी व्यक्ति को पहली बार जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है। जिस समय केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चा चल रही थी उस समय यह बात चर्चा में थी कि ललन सिंह भी मंत्री बनेंगे, पर केवल आरसीपी सिंह को ही केंद्र में मंत्री बनाया गया। ऐसे में किस्म-किस्म की चर्चा चल रही थी। ललन सिंह को इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर यह भी स्थापित किया गया कि उनका महत्व पार्टी में बहुत ही खास है। विधानसभा चुनाव के समय सीटों के तालमेल के समय भी उनकी सक्रियता विशेष अधिकार के साथ थी।

अन्य सांसद को मिलेगा स्थान

ललन सिंह को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अब यह तय है कि लोकसभा में जदयू संसदीय दल के नेता पद से उन्हें इस्तीफा देना होगा। पूर्व में आरसीपी सिंह जब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे तब उन्हें राज्यसभा में जदयू संसदीय दल के नेता का पद छोड़ना पड़ा था। ऐसे में अब तय है कि किसी अन्य सांसद को यह जगह मिलेगी। यहां भी समीकरण साफ-साफ असर में रहेगा यह तय है। नीतीश कुमार ने यह सिद्धांत को भी सही तरीके से पुन: स्थापित कर दिया कि उनके दल में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत हर हाल में चलेगा। कोई इसका अपवाद नहीं हो सकता।

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