बंगले में खलबली से जदयू में खुशी तो राजद भी दुखी नहीं, भाजपा का रुख तय करेगा चिराग का भविष्य
लोजपा का विवाद जदयू में खुशी तो महागठबंधन में भी मायूसी नहीं चिराग के चलते महागठबंधन की राह आसान हुई थी चिराग आगे क्या करेंगे यह काफी हद तक भाजपा के रवैये पर निर्भर करेगा कैसे जानने के लिए पढ़ें ये रिपोर्ट
पटना, अरुण अशेष। Bihar Politics: लोजपा में हुई बगावत से जदयू में खुशी है तो महागठबंधन में भी मायूसी नहीं है। जदयू में खुशी की वहज भी है-विधानसभा चुनाव में परेशान करने वाले चिराग पासवान घर में ही किनारे लगा दिए गए। हिसाब बता रहा है कि लोजपा उम्मीदवारों के चलते तीन दर्जन से अधिक सीटों पर जदयू की हार हुई। तत्कालीन मंत्री जय कुमार सिंह को भी लोजपा उम्मीदवार के कारण पराजय का मुंह देखना पड़ा। जदयू ने विधानसभा चुनाव के विश्लेषण में कई सीटों पर पराजय के लिए लोजपा को जिम्मेवार ठहराया था। वैसे, चिराग के चुनावी अभियान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति तल्खी थी।
नीतीश कुमार की पार्टी को पहुंचाया काफी नुकसान
चिराग साफ कह रहे थे कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने से रोकना उनका प्राथमिक लक्ष्य है। उस चुनाव में लोजपा उम्मीदवारों के पक्ष में गंगाधर ही शक्तिमान है की तर्ज पर नारा लगता था-लोजपा ही भाजपा है। चिराग एक साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते थे। अब लोजपा में बगावत हुई है तो भाजपा चुप है। जदयू के नेता करम का फल बता रहे हैं।
महागठबंधन पर चिराग का बड़ा अहसान
महागठबंधन के बड़े घटक दल राजद के नेताओं ने चुनाव के दौरान कभी चिराग से खुलकर बात नहीं की। लेकिन, राजद की जीत आसान करने वाले उम्मीदवारों को खड़ा करने से लोजपा को कभी परहेज नहीं हुआ। वैशाली की महनार सीट पर राजद की जीत लोजपा उम्मीदवार के चलते ही संभव हो पाई। दावा तो यहां तक किया गया कि कई लोजपा उम्मीदवारों के नाम राजद की ओर से तय किए गए थे।
सौरभ पांडेय का नाम खूब आया
चर्चा ऐसी रही कि दोनों दलों के बीच समन्वयक की भूमिका सौरभ पांडेय निभा रहे थे। सीटों की संख्या को लेकर एनडीए में जब विवाद चल रहा था, राजद ने लोजपा की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। उस समय तो चिराग एक सूत्री अभियान पर चल रहे थे। सो, तय हुआ कि चुनाव के बाद अगर महागठबंधन की सरकार बनाने में लोजपा की जरूरत पड़ी तो देखेंगे।
दहलीज तक पहुंचने में मदद
सरकार बनाने की नौबत नहीं आई। आती, तब भी चिराग कुछ नहीं कर पाते। क्योंकि उनके एक विधायक जीत पाए थे। फिर भी महागठबंधन सत्ता की दहलीज तक पहुंच ही गया। राजद का शीर्ष नेतृत्व विधानसभा चुनाव के पहले से ही चिराग के संपर्क में है। सोमवार को लोजपा में टूट की खबर आई, तब भी संपर्क किया गया। अब अगले दृश्य का इंतजार किया जा रहा है। भाजपा की ओर से किसी भी तरह चिराग को सहलाने का प्रयास होता है तो उनके एनडीए में बने रहने की गुंजाइश कायम रहेगी। ऐसा नहीं हुआ, पशुपति कुमार पारस या उनके खेमे के किसी सांसद को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिल गई तो चिराग के लिए महागठबंधन का दरवाजा खुला रहेगा।