कोरोना काल में बेहिसाब दुआएं देने वाले हाथों में आया तराजू, आलू-प्याज का लगा रहे हिसाब

कोरोना काल में सबकी दिनचर्या बदली है। बेहिसाब दुआएं देने के लिए उठने वाले हाथ तराजू पर आलू-प्याज का हिसाब लगा रहे। जानें-

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 09:15 PM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 09:15 PM (IST)
कोरोना काल में बेहिसाब दुआएं देने वाले हाथों में आया तराजू, आलू-प्याज का लगा रहे हिसाब
कोरोना काल में बेहिसाब दुआएं देने वाले हाथों में आया तराजू, आलू-प्याज का लगा रहे हिसाब

प्रभात रंजन, पटना। कोरोना काल में बेहिसाब दुआएं देने के लिए उठने वाले हाथ तराजू पर आलू-प्याज का हिसाब लगा रहे। बच्चों के जन्म और शादी-विवाह में बधाइयां गाने वाले किन्नर राजधानी पटना की सब्जी मंडियों में आवाज लगा रहे। कोरोना ने किन्नरों के समक्ष भी जीवनयापन का संकट खड़ा कर दिया है। 

संक्रमण के डर से घरों में नहीं जाते

मीठापुर मंडी में ठेले पर प्याज बेच रही गुरु लाली किन्नर व सोनू किन्नर कहती हैं, कोरोना ने शादियां टाल दी हैं। लॉकडाउन और संक्रमण के डर से घरों में बधाइयां देने नहीं जा पाते। मकान मालिक को किराया देने और रोजी-रोटी के लिए मजबूरी में सब्जी बेचनी पड़ रही है। मंडी में नींबू बेच रही मुमताज किन्नर कहती हैं, किसी तरह 100 से 150 रुपये रोजाना की कमाई हो जाती है। अब भूख मिटाने के लिए काम करना ही है। 

सब्जी के साथ मिल रहा आशीष 


किन्नर से प्याज खरीद रहे विनोद कहते हैं, इन लोगों का आशीष मिलना बड़ी बात है। सब्जी लेना ही है, तो इनसे ही ले रहे, साथ में आशीर्वाद भी मिल रहा। खरीदार रीता कहती हैं, समाज को इनके साथ खड़े होने की जरूरत है। मैं पिछले 10 दिनों से इन्हीं लोगों से सब्जियां ले रही हूं। 

 

राशन कार्ड बनाने का निर्देश अभी फाइलों में 

बिहार में किन्नर कल्याण बोर्ड का निर्माण 2019 में किया गया था पर इसका लाभ समाज को नहीं मिल पा रहा है। बोर्ड की सदस्य रेशमा प्रसाद कहती हैं, काफी संघर्ष करने के बाद खाद्य-आपूर्ति विभाग ने किन्नर समुदाय का भी राशन कार्ड बनाने का निर्देश दिया है, हालांकि काम शुरू नहीं हो पाया है। आत्मनिर्भर योजना का भी लाभ इस समुदाय को नहीं मिल पा रहा। 

राज्य में चालीस हजार किन्नर 


रेशमा बताती हैं कि पटना में ट्रांसजेडरों की संख्या दो हजार से अधिक है, जबकि बिहार में इनकी कुल आबादी 40 हजार के करीब है। पटना में 800 से एक हजार किन्नर घर-घर घूमकर अपनी रोजी-रोटी चलाते थे। कुछ किन्नर नुक्कड़ नाटक के जरिए लोगों में सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने में भी अपना योगदान देते रहे हैं। 

chat bot
आपका साथी