12वीं पास के फॉर्मूले पर IIT खोज रहा अक्षय ऊर्जा का मंत्र, अब बिना बिजली जलेगा बल्‍ब

भोजपुर के 12वीं पास सुनील कुमार सिंह के फॉर्मूले पर IIT पटना अक्षय ऊर्जा का मंत्र खोज रहा है। इस कॉन्सेप्ट पर आधारित स्टार्टअप के लिए सुनील को 10 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं।

By Amit AlokEdited By: Publish:Mon, 18 Feb 2019 11:10 AM (IST) Updated:Mon, 18 Feb 2019 11:06 PM (IST)
12वीं पास के फॉर्मूले पर IIT खोज रहा अक्षय ऊर्जा का मंत्र, अब बिना बिजली जलेगा बल्‍ब
12वीं पास के फॉर्मूले पर IIT खोज रहा अक्षय ऊर्जा का मंत्र, अब बिना बिजली जलेगा बल्‍ब
पटना [जयशंकर बिहारी]। आर्थिक तंगी के कारण 12वीं के आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाने वाले भोजपुर के सुनील कुमार सिंह के फॉर्मूले पर आइआइटी पटना (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) के इंक्यूबेशन सेंटर में अक्षय ऊर्जा का मंत्र खोजा जा रहा है। बगैर बिजली के बल्ब जलाने, बगैर पेट्रोल-डीजल के वाहनों को चलाने के लिए चुंबकीय इंजन पर काम किया जा रहा है। विशेषज्ञों से हरी झंडी मिलने के बाद उद्योग विभाग भी इस कॉन्सेप्ट को जमीन पर उतारने में सहयोग कर रहा है।
स्टार्टअप के तहत सुनील को 10 लाख रुपये आवंटित किए गए हैं। इसमें 7.5 लाख रुपये आइआइटी इंक्यूबेशन सेंटर के माध्यम से मिले हैं। स्टार्टअप कंपनी में सुनील के साथ बीटेक आदित्य कुमार भी शामिल हैं। आइआइटी पटना इंक्यूबेंशन सेंटर के इंचार्ज डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी ने बताया कि मैगनेटिक एनर्जी के माध्यम से बल्ब और वाहन चलाने के लिए 'मैगनेट जेट इंजन' पर सुनील कुमार सिंह काम कर रहे हैं।
हैदराबाद में तैयार हो रही मशीन
सुनील कुमार सिंह ने बताया कि मार्च में नई मशीन का प्रजेंटेशन आइआइटी पटना में किया जाएगा। पटना में जरूरी संसाधन उपलब्ध नहीं होने के कारण हैदराबाद में मशीन तैयार की जा रही है। लकड़ी पर सेट मशीन से तीन सेकेंड तक बल्ब जलाने में सफलता मिली थी। अब विभिन्न धातु के उपयोग से मशीन तैयार की जा रही है।
मशीन को मिल चुका है पेटेंट नंबर
सुनील कुमार सिंह को 2016 में ही 'सीता एंड सुनील मैगनेट जेट इंजीनियरिंग' के नाम से पेटेंट नंबर मिल चुका है। इस इंजन से ऊर्जा मिलने पर वायु या ध्वनि प्रदूषण की गुंजाइश नहीं है।

ऐसे मिली प्रेरणा
भोजपुर के रामबाग, शिवगंज निवासी सुनील ने बताया कि चौथी कक्षा में पृथ्वी, सूर्य और चांद की परिक्रमा की कहानी सुनी थी। तभी से मेरे मन में मैगनेटिक एनर्जी को लेकर उत्सुकता जगी। बाद में इस पर काम करता रहा।
पिता के निधन बाद छूटी थी पढ़ाई
2004 में पिता की मृत्यु के बाद सुनील पर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। यही कारण है कि इंटरमीडिएट के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर सका। एक दवा दुकान में नौकरी के साथ ही पैथोलॉजी जांच के काम से जुड़ गया। खाली समय में वह अपनी परिकल्पना को कैसी साकार करें, इस पर मंथन करता।
मुख्यमंत्री ने की मदद
2010 में अपनी परिकल्पना को जमीन पर उतारने को बेचैन सुनील तत्कालीन मुख्यमंत्री के जनता दरबार में पहुंचे। मुख्यमंत्री की पहल पर विशेषज्ञों की टीम ने उनके कांसेप्ट को समझा। इसके बाद उद्योग विभाग की पहल पर सुनील स्टार्टअप से जुड़कर 2016 में मशीन पर नए सिरे से काम करना शुरू किया।
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