कई कीर्तिमान बनाने को तैयार पटना का आइजीआइएमएस, पूरे देश से इलाज कराने आते हैं मरीज

इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस) में इलाज कराने नेपाल असम सिक्किम आदि स्थानों से भी मरीज आते हैं। अब किडनी प्रत्यारोपण व लीवर प्रत्यारोपण के बाद यहां हृदय प्रत्यारोपण को लेकर कवायद की जा रही है।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 04:14 PM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 04:14 PM (IST)
कई कीर्तिमान बनाने को तैयार पटना का आइजीआइएमएस, पूरे देश से इलाज कराने आते हैं मरीज
बिहार की राजधानी पटना में स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस) का परिसर। जागरण आर्काइव।

जागरण संवाददाता, पटना: बिहार की राजधानी पटना में स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस) की स्थापना का 38 साल पूरा हो चुका है। इतने वर्षों में अस्पताल ने पूर्वोत्तर भारत में प्रमुख स्थान बना लिया है। लीवर व किडनी प्रत्यारोपण में सफलता मिलने के बाद अब अस्पताल में हृदय प्रत्यारोपण को लेकर कवायद तेज कर दी गई है। संस्थान के कैंसर सेंटर में नेपाल, असम, सिक्किम आदि स्थानों से भी मरीज आते हैं।

वर्ष 1983 में भारत सरकार ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली (एम्स) की तर्ज पर आइजीआइएमएस को स्थापित करने की मंजूरी दी। इसके बाद अस्पताल ऑटोनोमस बॉडी के रूप में कार्य कर रहा है। शुरुआत में इसकी रफ्तार धीमी रही, लेकिन वर्ष 2012 में नीतीश कुमार के सरकार बनने के बाद इसने रफ्तार पकड़ी। सबसे पहले इसमें आवश्यक उपकरण लाया गया, फिर निदेशक डॉ. एनआर के प्रयास से डॉक्टरों की नियुक्ति आरंभ की गई। कई बेहतर चिकित्सकों ने यहां सेवा देना आरंभ किया। धीरे-धीरे सभी विभागों में कार्य होना आरंभ हो गया है। 

वर्ष 2016 में पहली बार हुआ किडनी प्रत्यारोपण

आइजीआइएमएस में पहली बार वर्ष 2016 में किडनी प्रत्यारोपण किया गया। वरीय प्राध्यापक प्रो. अमरेश कृष्ण ने बताया कि अब तक यहां 73 किडनी प्रत्यारोपण हो चुका है। इसमें महज 3.5 लाख रुपये खर्च आ रहा है। इसकी भरपाई मुख्यमंत्री चिकित्सा कोष से की जाती है। किडनी मरीजों के लिए वर्ष 2012 के अक्टूबर से किडनी बायोप्सी जांच आरंभ हुई। किडनी मरीजों के लिए इसी वर्ष से प्लाज्मा फेरेसीस भी आरंभ हो गई। वहीं सीएपीडी : कंटीन्यूवस एम्बुलेंट्री पेरीटोनियल डायलिसिस भी 2021 में शुरू हो गई है।

हृदय रोगियों के लिए वर्ष 2014 में बढ़ीं सुविधाएं

आइजीआइएमएस में वर्ष 2014 से हृदय रोगियों के लिए कई सुविधाएं बढ़ाईं गईं। एंजियोग्राफी व एंजियोप्लास्टी का इलाज वर्ष 2014 में आरंभ हुआ। नए डॉक्टरों के योगदान देने के बाद यहां अब ओपेन हर्ट सर्जरी, बाइपास सर्जरी, वॉल्व रिप्लेसमेंट आदि आसानी से हो रहा है। 

2019 में लीवर प्रत्यारोपण यूनिट, 2020 में प्रत्यारोपण

आइजीआइएमएस के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मनीष मंडल ने बताया कि संस्थान में लीवर प्रत्यारोपण यूनिट 2019 में आरंभ हुई। 2020 पहली बार ब्रेन डेड मरीज से लीवर प्रत्यारोपण किया गया। स्टेट ऑर्गन एंड टीशु ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन की स्थापना भी राज्य सरकार की ओर से 2019 में ही की गई।

2020 में आइवीएफ यूनिट की हुई है स्थापना

बांझपन की शिकार महिलाओं में आइवीएफ के माध्यम से बेबी देने के लिए वर्ष 2020 में आइवीएफ यूनिट की स्थापना की गई। अब इसमें उपचार आरंभ हो गया है। यहां महज 40-50 हजार में पूरा इलाज संभव है।  

2020 में बना स्टेट कैंसर संस्थान

स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट (एससीआई) का निर्माण पूराकर वर्ष 2020 में 100 बेड का तीन मंजिला अत्याधुनिक सुविधा वाला केंद्र स्थापित किया गया। अब यहां 100 बेड पर उपचार के साथ-साथ अत्याधुनिक उपकरण, जांच, सर्जरी वाला सेंटर बना है। यहां पहुंचने के बाद बीमारी की पहचान से लेकर उपचार व सर्जरी तक आसानी से उपलब्ध हो सकेगी। 

राज्य में पहली बार लगी अल्ट्रासाउंड मशीन

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मनीष मंडल ने बताया कि राज्य सरकार की दूरदर्शिता के कारण आज आइजीआइएमएस देश के कई बड़े अस्पतालों को टक्कर दे रहा है। सरकारी अस्पतालों की बात करें तो बिहार में पहला गैस्ट्रोलॉजी, यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, कॉर्डियोलॉजी विभाग भी यहीं आरंभ हुआ है। वर्ष 1985-86 बिहार के सरकारी अस्पताल में सबसे पहले आइजीआइएमएस में ही अल्ट्रासाउंड मशीन लगी थी। आई बैंक भी आइजीआइएमएस में ही खुला था। पहली बार डायलिसिस भी यहीं शुरू हुई। अब किडनी प्रत्यारोपण व लीवर प्रत्यारोपण के बाद यहां हृदय प्रत्यारोपण को लेकर कवायद की जा रही है।

बेहतर है मेडिकल कॉलेज

आइजीआइएमस में 125 सीटों पर एमबीबीएस एवं लगभग 80 सीटों पर विभिन्न विभागों में पीजी स्तर की पढ़ाई हो रही है। प्राचार्य डॉ. रंजीत गुहा ने बताया कि बेहतर रैंक लाने वाले बच्चों की च्वाइस एम्स के बाद आइजीआइएमएस ही होती है। 

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