प्राकृतिक सुंदरता निहारनी हो तो चले आइए राजगीर, सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है यह ऐतिहासिक नगर

प्रकृति की गोद में बसे नालंदा जिले के राजगीर (Rajgir) को सर्वधर्म समभाव का प्रतीक माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस आध्यात्मिक नगरी में हर धर्म-संप्रदाय को फलने-फूलने का मौका मिला। सनातन बौद्ध जैन इस्‍लाम से लेकर सिख धर्म के महापुरुषों ने यहां साधना की।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 04 Dec 2021 12:52 PM (IST) Updated:Sat, 04 Dec 2021 12:52 PM (IST)
प्राकृतिक सुंदरता निहारनी हो तो चले आइए राजगीर, सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है यह ऐतिहासिक नगर
राजगीर स्थित लक्ष्‍मीनारायण मंदिर की ऐतिहासिक इमारत। जागरण

राजगीर, संवाद सहयोगी। प्रकृति की गोद में बसे नालंदा जिले के राजगीर (Rajgir) को सर्वधर्म समभाव का प्रतीक माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस आध्यात्मिक नगरी में हर धर्म-संप्रदाय को फलने-फूलने का मौका मिला। सनातन, बौद्ध, जैन, इस्‍लाम से लेकर सिख धर्म के महापुरुषों ने यहां साधना की। धर्म की प्रासंगिकता एवं उसके उद्देश्य को प्रचारित किया। प्रेम, सौहार्द्र, भाईचारा, शांति-व्‍यवस्‍था का संदेश दिया। यहां हर धर्म एकाकार हो जाते हैं। मानव समुदाय को एक सूत्र में बंधकर रहने का संदेश देते हैं। आज भी यहां कई ऐसे स्‍थल हैं, जो हमारे गौरवशाली इतिहास का संदेश देते हैं। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्‍व वाले राजगीर के कई नाम रहे हैं। इतिहास में वसुमतिपुर, वृहद्रथपुर, गिर‍िब्रज और कुशग्रपुर के नाम से भी यह चर्चित है। पटना से करीब 100 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में पहाड़‍ियों और जंगलों के बीच यह बसा है। बौद्ध धर्म से इसका प्राचीन संबंध है। 

 

(राजगीर में स्थित विश्‍व शांति स्‍तूप।)

बौद्ध धर्म का केंद्र है विश्व शांति स्तूप

राजगृह से बने राजगीर को बौद्ध धर्म का बड़ा केंद्र माना जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए विश्‍व शांति स्‍तूप आस्‍था का केंद्र है। रत्नागिरि पर्वत पर स्थित इस स्‍तूप निर्माण की योजना जापान बौद्ध संघ के अध्‍यक्ष निचिदात्‍सु फूजी की है। 1965 में निर्मित स्तूप की ऊंचाई 120 फीट एवं व्यास 103 फीट है। स्तूप के चारों ओर  बुद्ध की चार प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो अत्यन्त भव्य और आकर्षक हैं। यहां जापान बौद्ध संघ के सहयोग से प्रत्येक वर्ष समारोह का आयोजन किया जाता है। इसमें बड़ी संख्या में विदेशी बौद्ध भिक्षु भी भाग लेते है।

सनातन धर्म का केंद्र है ब्रह्म कुंंड सह श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर

वैभारगिरि पर्वत की तलहटी में ब्रह्मा कुंड परिसर में गर्म जल के कुंड हैं। झरने हैं। यहां स्‍नान करने से निरोगी काया होती है, ऐसी मान्‍यता है। गर्म जल में गंधक के अलावा कई प्रकार की जड़ी-बूटियों का अंश है। यहां स्‍नान करने के बाद लोग श्री लक्ष्‍मीनारायण मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। 

(बाबा मखदूम साहब का कुंड व इबादतगाह।)

बाबा मखदूम साहब का कुंड

बाबा मखदूम साहेब का गर्म कुंड यहां है। इस्‍लाम धर्म के लोगों की इबादतगाह भी। यहां मखदूम बाबा का मजार भी है। कहा जाता है कि करीब 750 वर्ष पूर्व राजगीर में ही फकीरी बुजुर्गी मिली थी। यहां उन्‍होंने 28 साल तक इबादत की थी। इनके मजार पर हर धर्म-समुदाय के लोग जाते हैं। 

(गुरु नानक देव शीतल कुंड में पवित्र जल छिड़कते श्रद्धालु।)

गुरु नानक देव शीतल कुंड सह गुरूद्वारा

सिखों के पहले गुरु नानक देव से भी यह स्‍थल जुड़ा है। यहां उनके नाम का शीतल कुंड और गुरुद्वारा है। सिख धर्म के लोगों के लिए यह आस्‍था का केंद्र है। कहा जाता है कि गुरु नानक देव ही के चरण के स्‍पर्श मात्र से ही यहां के कुंड का गर्म जल शीतल हो गया था। यहां भव्‍य गुरुद्वारा का निर्माण कराया जा रहा है।  

(जैन धर्मावलंबियों के आस्‍था केंद्र नौलखा मंदिर।)

जैन धर्मावलंबियों के आस्‍था का केंद्र है नौलखा मंदिर

श्‍वेतांंबर जैन धर्मशाला परिसर स्थित नौलखा मंदिर जैन के 20वें तीर्थंकर भगवान श्रीमुनि सुब्रत स्वामी से जुड़ा है।  85 कलश युक्त शिखर और प्रासाद नागर शैली में निर्मित यह मंदिर राजगीर नही बल्कि पूरे प्रदेश के महत्वपूर्ण धरोहरों में एक है। यहां सालों भर जैन धर्म के अनुयायियों की भीड़ लगी रहती है। राजगीर रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर और बस स्‍टैंड से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर अवस्‍थत यह मंदिर देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। यह विशाल मंदिर 8700 वर्ग फीट के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें लोहे का प्रयोग किए  बिना विशिष्टता लिए प्रतिमा, गूढ़ मंडप, ध्वजदंड, शिखर कलश, पद्मशीला, लाल इमारत, तलघर आदि का निर्माण किया गया है। जबकि शिखर के मुख्य कलश का निर्माण सफेद संगमरमर से किया गया है। गूढ़ मंडप में ईंटों से निर्मित गुंबज के मध्य में लटकते संगमरमर का कलम उच्च स्थापत्य कला को प्रदर्शित करता है। हाल ही में इस मंदिर के नीचे एक स्वर्ण मंदिर बनाया गया है जो पर्यटक के आकर्षण का मुख्य केंद्र है।

धर्म या मजहब अपने अनुयायियों को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। धर्म का उद्देश्य अपने अनुयायियों को जीवन जीने के लिए जरूरी सभी गुणों से परिपूर्ण करते हुए एक ऐसा आधार प्रदान करना है, जिससे वे एकता की भावना से संगठित होकर समाज की भलाई के लिए कार्य कर सकें। इन संदेशों का सार यह है कि हर मजहब या धर्म एकता का ही पाठ पढ़ाते हैं। ऐसे में राजगीर ऐसा ही जगह है, जहां ऐसी तस्‍वीर दिखती है।  

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