बिहार सरकार ने कानून के दायरे से जाकर बदल दी आरक्षण की कोटि? पटना हाई कोर्ट ने मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने देवेंद्र रजक की याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को यह निर्देश दिया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि बिहार सरकार ने एक खास जाति को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया है।
पटना, राज्य ब्यूरो। Patna High Court News: बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (Extremely Backward Classes) की खटवे जाति (Khatwe caste) को अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) में चौपाल के रूप में शामिल किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार (Government of Bihar) को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। अगली सुनवाई 10 सितंबर को होगी। अदालत जानना चाहती है कि किसी जाति की श्रेणी बदलने का अधिकार राज्य को कैसे हो सकता है, जबकि संविधान में इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं।
मुख्य न्यायाधीश सहित दो जजों की बेंच में सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने देवेंद्र रजक की याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार को यह निर्देश दिया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि 16 मई, 2014 के एक निर्णय में बिहार सरकार ने खटवे जाति को अनुसूचित जाति में शामिल कर दिया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने संवैधानिक प्रविधानों का उल्लंघन कर एवं अधिकार के परे जा कर यह निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस तरह का निर्णय राज्य सरकार या ट्रिब्यूनल या अदालत नहीं ले सकती है।
तीन जातियों को किया गया था अनुसूचित जाति में शामिल
सुनवाई में अदालत को यह भी बताया गया कि ताती, ततवा और खटवे को अनुसूचित जाति में शामिल करने के निर्णय को राज्य सरकार ने अब तक वापस नहीं लिया है। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि किसी जाति को एक श्रेणी से दूसरी श्रेणी में शामिल करने का अधिकार संसद को हैं। संसद में कानून पारित होने के बाद राष्ट्रपति की सहमति एवं हस्ताक्षर के बाद इस तरह के निर्णय वैध होते हैं।