बिहार की परंपरा से समृद्ध हुआ हिंदुस्तान का संगीत- गायन, वादन व नृत्य शैली में राज्य रहा अग्रणी Patna News

भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि पर बिहार संग्रहालय में व्याख्यान बतकही और सुरों की महफिल सजी। इस दौरान लेखकों ने अपने अनुभव साझा किए।

By Edited By: Publish:Thu, 11 Jul 2019 01:21 AM (IST) Updated:Thu, 11 Jul 2019 11:19 AM (IST)
बिहार की परंपरा से समृद्ध हुआ हिंदुस्तान का संगीत- गायन, वादन व नृत्य शैली में राज्य रहा अग्रणी Patna News
बिहार की परंपरा से समृद्ध हुआ हिंदुस्तान का संगीत- गायन, वादन व नृत्य शैली में राज्य रहा अग्रणी Patna News
पटना, जेएनएन। भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि पर बिहार संग्रहालय परिसर में बुधवार को व्याख्यान, बतकही और सुरों की महफिल सजी। लोक राग, आखर की ओर से आयोजित 'बिहारनामा' कार्यक्रम के दौरान तीन सत्रों में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। पहले सत्र में व्याख्यान दूसरे सत्र में बतकही और तीसरे सत्र में लोक गीतों की प्रस्तुति हुई।



कार्यक्रम के दूसरे सत्र में 'बिहार की संगीत परंपरा और भारतीय संगीत में उसका योगदान' व्याख्यान के दौरान मूल रूप से बिहार के रहने वाले और नार्वे निवासी और लेखक डॉ. प्रवीण झा ने विषय पर प्रमुखता से प्रकाश डाला। झा ने कहा कि बिहार की संगीत परंपरा के साथ ही भारत का संगीत समृद्ध हुआ। उन्होंने कहा कि गायन, वादन और नृत्य तीनों शैलियों की बात करें तो बिहार हमेशा से अग्रणी रहा है। ध्रुपद, धमार, कथक, ठुमरी की बात करें तो बिहार इन सभी चीजों का केंद्र रहा। बिहार के आमता, गया, दरभंगा, बेतिया कई ऐसे घराने रहे, जिनका संबंध भारतीय संगीत से रहा।


वहीं पखावज, सरोद की बात करें तो बिहार इसके मूल में रहा। उत्तर बिहार में शास्त्रीय संगीत के इतिहास पर बात करें तो यहां का लोक नृत्य और संगीत ही नहीं यहां के अभिजात्य संगीत की परंपरा को भी भुलाया नहीं जा सकता। घरानों की बात करते हुए झा ने दरभंगा घराने के बारे में कहा कि दरंभगा में मल्लिक ध्रुपदियों की परंपरा 200 साल की है। राधाकृष्ण और कर्ताराम नाम के दो भाई मिथिला नरेश माधव सिंह के शासन काल में राजस्थान से दरंभगा आए थे, जो दरभंगा के मिश्र टोला में बस गए।

आम आदमी की तरह ही बेचैन थे भिखारी
कार्यक्रम के दौरान ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि ठाकुर की जीवनयात्रा को देखें तो वे एक आम आदमी रहे। उनके अंदर भी एक बेचैनी थी, जो हर इंसान में होती है। दिल के अंदर एक अकुलाहट थी जो वे समाज में अपनी आंखों से देख रहे थे। पुरुष दो रोटी के लिए अपनी नई-नवेली दुल्हन को छोड़कर परदेस जाते। उधर पति के वियोग में पत्‍‌नी का बुरा हाल। जिस दौर में ठाकुर रहे, उस दौर में पढ़ाई-लिखाई करना बहुत मुश्किल था। समय के साथ शिक्षा पाने की लालसा थी। पढ़-लिखकर अपने दौर का तुलसीदास बनने की बेचैनी ठाकुर में रही। इसे उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से बयां किया। उनकी रचनाओं में महिलाओं का दर्द और व्यथा देखने को मिलती है।




बिदेसिया में दिखा महिलाओं का दर्द
भिखारी ठाकुर पर शोध करने वाले प्रो. तैयब हुसैन पीड़ित ने कहा कि ठाकुर को भी समाज ने दो वर्गो में बांटा। एक वर्ग ने उन्हें नचनिया-गवनिया कहा तो दूसरी ओर उन्हें अवतरित पुरुष भी कहा गया। प्रो. हुसैन ने कहा कि भिखारी ठाकुर की बिदेसिया में औरतों की पीड़ा और व्यथा समाहित है। भिखारी ठाकुर को राहुल सांकृत्यायन ने अनगढ़ हीरा कहा था। भोजपुरी साहित्य पर तैयब हुसैन ने कहा कि आज कई लोग अच्छी भोजपुरी बोलते हैं, लेकिन लिख नहीं पाते। जो महसूस किया, उसे ही लिखा 'गबरघिचोर' पर बात करते हुए ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि यह नाटक आज की कहानी है।
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