ब्रह्माचर्य धर्म के पालने से होती ज्ञान की वृद्धि

पर्युषण पर्व के नौवें दिन कदमकुआं स्थित दिगंबर जैन मंदिर में शांतिधारा के साथ पूजा अर्चना की।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 23 Sep 2018 07:41 PM (IST) Updated:Sun, 23 Sep 2018 07:41 PM (IST)
ब्रह्माचर्य धर्म के पालने से होती ज्ञान की वृद्धि
ब्रह्माचर्य धर्म के पालने से होती ज्ञान की वृद्धि

पर्युषण पर्व के नौवें दिन कदमकुआं स्थित दिगंबर जैन मंदिर में शांतिधारा के साथ पूजा अर्चना कर सत्संग का उठाया आनंद

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तन के राग का त्याग और सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्त नहीं होना ब्रह्माचर्य है। ब्रह्मा स्वरूप आत्मा की चर्या का नाम ब्रह्माचर्य है। आत्मिक सुख भोगना, प्रसन्न रहना ही ब्रह्माचर्य है। ब्रह्माचर्य धर्म के पालन से शरीर में दृढ़ एवं ज्ञान की वृद्धि होती है। ये बातें कदमकुआं स्थित दिगंबर जैन मंदिर में रविवार को सुनने को मिली। मौका था पाटलिपुत्र दिगंबर जैन समिति की ओर से आयोजित पर्युषण पर्व का। नौवें दिन मंदिर परिसर में जैन श्रद्धालुओं ने शांतिधारा पूजा की और सत्संग का आनंद उठाया।

जैन मुनि आचार्य भद्रबाहु ने कहा कि विषय वासनाओं में लीन मनुष्य धर्म के तत्व को नहीं पहचान पाता। काम वासना पर विजय प्राप्त करना अत्यंत कठिन कार्य है। सामान्य व्यक्ति अपने जीवन से काम और वासना को दूर नहीं कर सकता। मुनि एवं तपस्वी काम और वासना को त्याग कर ब्रह्माचर्य व्रत को धारण कर उसका पालन करता है। मुनि महाराज ने कहा कि गुण समूहों में ब्रह्माचर्य सर्वोपरि गुण है। जब कोई साधक क्रोध, माया, लोभ एवं पर-पदार्थ का त्याग आदि करते हैं और पर-पदार्थो से संबंध टूट जाने से जीव का अपनी आत्मा में ही रमण होने लगता है। जिसे उत्तम ब्रह्माचर्य धर्म कहा जाता है। यही धर्म के दस लक्षण है। जो पर्युषण पर्व के रूप में आकर हमें सुख-शांति का संदेश देते हैं। 10 दिनों तक चलने वाले पर्युषण पर्व की समाप्ति हवन के साथ हुई। पर्व के दौरान काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की। पर्व के मौके पर मंदिर परिसर में धार्मिक फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता आयोजित हुई। जिसमें छोटे-छोटे बच्चों ने मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। समारोह के दौरान शांतिलाल जैन, नंदलाल जैन, जिनेश जैन, मुकेश जैन, महेश जैन, सीपी जैन, सुबोध जैन, एमपी जैन, अशोक गंगवाल, विकास जैन, डॉ. गीता जैन, रजनी जैन, सरला छाबड़ा आदि मौजूद थे। वही मीठापुर, मुरादपुर आदि जैन मंदिरों में श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की।

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