Bihar Government News: बिहार में सरकारी विभागों को अब हर चार महीने पर देना होगा खर्च का हिसाब

वित्तीय प्रबंधन को लेकर सरकार सख्त चार महीने पर देना होगा खर्च का हिसाब वित्त सचिव लोकेश सिंह ने सभी विभागों को लिखा पत्र खर्च के लिए हरेक चार महीने के लिए 333235 प्रतिशत का फार्मूला इरादा यह कि समय पर राशि खर्च हो

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Tue, 20 Apr 2021 08:27 AM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 08:27 AM (IST)
Bihar Government News: बिहार में सरकारी विभागों को अब हर चार महीने पर देना होगा खर्च का हिसाब
बिहार सरकार ने लिया बड़ा फैसला। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, राज्य ब्यूरो। सरकार चालू वित्त वर्ष में ढेर सारे एहतियात के साथ धन खर्च करेगी। वित्त विभाग ने सोमवार को इसके लिए गाइडलाइन जारी किया है। इसके तहत चार-चार महीने के लिए खर्च की सीमा तय की गई है। मतलब यह है कि सीमा से कम या अधिक धन खर्च नहीं किया जा सकता है। वित्त विभाग के सचिव लोकेश कुमार सिंह ने सभी अपर मुख्य सचिव, विभागाध्यक्ष, प्रमंडलीय आयुक्त, जिलाधिकारी एवं कोषागार पदाधिकारी को पत्र लिखा है। कहा है कि सभी विभाग इस गाइडलाइन पर सख्ती से अमल करें।

चार-चार महीनों के खर्च के लिए राशि तय

पत्र के मुताबिक स्थापना एवं प्रतिबद्ध व्यय मद में शत प्रतिशत निकासी की इजाजत दी गई है। आपदा प्रबंधन एवं स्वास्थ्य विभाग सहित संवैधानिक संस्थाओं को बंधन से मुक्त रखा गया है। अन्य विभागों के लिए साल के चार-चार महीनों के आधार पर खर्च की राशि निर्धारित की गई है। पहली अप्रैल से 31 जुलाई के पहले चार महीने में कोई विभाग आवंटित राशि का 33 प्रतिशत हिस्सा खर्च कर सकता है।

हर चार महीने पर देना होगा हिसाब

पहली अगस्त से 30 नवंबर के बीच की चार महीने की अवधि के लिए यह राशि 32 प्रतिशत होगी। यानी आठ महीने में 65 प्रतिशत राशि खर्च करने की इजाजत दी गई है। अंतिम चौमाही (पहली दिसंबर से 31 मार्च) में शेष 35 प्रतिशत राशि खर्च करने का निर्देश दिया गया है। राज्य योजनाओं में भी हरेक चौमाही 33 प्रतिशत राशि के खर्च का निर्देश दिया गया है। खर्च के साथ ही विभागों को चार महीने पर हिसाब भी देना होगा।

क्यों हो रही यह व्यवस्था

सूत्रों ने बताया कि वित्त विभाग ने चार महीने के आधार पर खर्च की सीमा का निर्धारण अफरातफरी एवं गड़बड़ी रोकने के इरादे से किया है। अनुभव यह है कि कई विभाग वित्तीय वर्ष के शुरुआती महीनों में बिल्कुल खर्च नहीं करते हैं। वित्तीय वर्ष जब समाप्ति की ओर बढ़ता है, खर्च की रफ्तार तेज हो जाती है। ऐसे मामलों में वित्तीय गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है। समय सीमा तय नहीं रहने के कारण कुछ विभाग वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक पूरी राशि खर्च नहीं कर पाते हैं। ऐसे में राशि की तमादी हो जाती है। इसके चलते संबंधित विभाग का अगले वित्तीय वर्ष में आवंटन कम हो जाता है। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए समय पर राज्य का हिस्सा न मिलने के चलते भी नुकसान होता है।

chat bot
आपका साथी