Guru Purnima 2020: बिहार के इस गांव की माटी से निकलते हैं 'द्रोणाचार्य', पीढ़ी दर पीढ़ी बन रहे स्कॉलर

Guru Purnima 2020 बिहार के बक्सर जिला मुख्यालय से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर डुमरांव-अरियांव मार्ग से सटा लाखन डिहरा गांव द्रोणाचार्य की धरती के रूप में जाना जाता है। आइए जानें।

By Rajesh ThakurEdited By: Publish:Sun, 05 Jul 2020 08:46 AM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 08:03 PM (IST)
Guru Purnima 2020: बिहार के इस गांव की माटी से निकलते हैं 'द्रोणाचार्य', पीढ़ी दर पीढ़ी बन रहे स्कॉलर
Guru Purnima 2020: बिहार के इस गांव की माटी से निकलते हैं 'द्रोणाचार्य', पीढ़ी दर पीढ़ी बन रहे स्कॉलर

बक्सर, कंचन किशोर। गुरु द्रोणाचार्य श्रेष्ठतम शिक्षक थे, आज गुरु की बात होती है तो उनका नाम जुबान पर आ जाता है। बक्सर जिला मुख्यालय से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर डुमरांव-अरियांव मार्ग से सटा लाखन डिहरा गांव 'द्रोणाचार्य' की धरती के रूप में जाना जाता है। यहां कृषि फसलों के साथ ज्ञान संपदा की खेती होती है। तीन सौ घरों वाले गांव में हर शख्स शिक्षा के क्षेत्र में स्कॉलर बनने के सपने देखता है और पूरा करने के लिए कठिन तप करता है। गांव के कई होनहार आइआइटी और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में 'द्रोणाचार्य' बनकर ज्ञान की ज्योति जला रहे हैं। 

बताते हैं कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण ने यहां डेरा डाला था। इसी वजह से गांव का नाम लाखनडीहा पड़ा और बाद में अपभ्रंश होकर यह लाखनडीहरा कहा जाने लगा। गांव में कई डॉक्टर और इंजीनियर भी मिल जाएंगे, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरित यहां के बच्चे स्कॉलर शिक्षक बनने पर ज्यादा गर्व करते हैं। यहां के नागेन्द्र चौबे भारतीय तकनीकी संस्थान, रुड़की में अंग्रेजी के प्राध्यापक हैं। भौतिकी के प्रख्यात शिक्षक और एचडी जैन कॉलेज आरा से सेवानिवृत्त प्रो. के. डी. दूबे और रांची विश्वविद्यालय में गणित के विभागाध्यक्ष रहे प्रो.रामाशंकर दूबे इसी गांव के थे।

किसान परिवार के राम लक्ष्मण सिंह किसान कॉलेज सोहसराय में प्राध्यापक बनने के बाद पुलिस सेवा में आए और झारखंड में डीआइजी पद पर रहे। इसी गांव के डॉ. शशिकांत दूबे डीएवी जमुई के प्राचार्य बने, डॉ. रंगजी दूबे पटना के बीडी इवनिंग कॉलेज में संस्कृत के विभागाध्यक्ष हैं। गांव के 'द्रोणाचार्य' की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती है। डॉ. नागेन्द्र दुबे, डॉ. राजेश कुमार, प्रो. हरिश्चंद्र दुबे और उमाकांत दुबे आदि कई ऐसे नाम हैं, जो देश के विभिन्न संस्थानों में शिक्षक बनकर गांव और बिहार का नाम रोशन कर रहे हैं। गांव के डॉ. रविकांत दूबे एमवी कॉलेज में राजनीतिशास्त्र में प्रोफेसर बनने के बाद भोजपुरी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बने। अभी उनके पुत्र डॉ.सिद्धार्थ भारद्वाज पटना कॉलेज में शिक्षक हैं। 

जब देख दंग रह गए थे जिला शिक्षा अधिकारी :गांव के निवासी और अरियांव उच्च विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक आशुतोष दूबे बताते हैं कि कुछ साल पहले तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक डॉ. महेश प्रसाद गांव के स्कूल का निरीक्षण करने आए तो पूर्ववर्ती छात्रों का रिकार्ड देख दंग रह गए। शिक्षकों के गांव से इतने प्रभावित हुए कि दूरदराज स्थित गांव के स्कूल में मैट्रिक परीक्षा का केंद्र बना दिया। गांव आध्यात्मिक मान्यता से भी जुड़ा है। 

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