राजेंद्र प्रसाद पुण्यतिथि: दिल्ली से लौटकर देशरत्न ने पटना के सदाकत आश्रम में बिताया था जीवन

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का पटना शहर से भी खास लगाव था। राष्ट्रपति बनने से पहले और बाद में अपना जीवन यहां गुजारा। आज भी उनकी स्मृतियां शहर के हर कोने में ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में संरक्षित हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 09:02 AM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 09:02 AM (IST)
राजेंद्र प्रसाद पुण्यतिथि: दिल्ली से लौटकर देशरत्न ने पटना के सदाकत आश्रम में बिताया था जीवन
बिहार विद्यापीठ में राजेंद्र समृति संग्रहालय। जागरण आर्काइव।

जागरण संवाददाता, पटना: सादगी की मिसाल और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व हर किसी को हमेशा से प्रभावित करता रहा। महात्मा गांधीजी के अनुयायी रहे डॉ. प्रसाद ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के साथ चंपारण सत्याग्रह में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उनका पटना शहर से भी खास लगाव था। तभी तो उन्होंने राष्ट्रपति बनने से पहले और बाद में अपना जीवन यहां गुजारा। आज भले ही राजेंद्र बाबू हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी स्मृतियां आज भी शहर के हर कोने में ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में संरक्षित हैं। उन्होंने अपने जीवन की अंतिम यात्रा बिहार विद्यापीठ परिसर में 28 फरवरी 1963 को पूरी की। सदाकत आश्रम में ही राजेंद्र बाबू का देहावसान हुआ। 

बिहार विद्यापीठ में बिताया जीवन का लंबा समय

कानून और उ'च शिक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजेंद्र बाबू वर्ष 1916 में पटना आए और सदाकत आश्रम उनका निवास स्थान बना। बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश बताते हैं, राजेंद्र बाबू के जीवन का अधिकांश पल बिहार विद्यापीठ के खपरैल वाले मकान में गुजरा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद गांधी जी के विचारों से प्रभावित हो उनके अनुयायी बने और स्वतंत्रता आंदोलनों में अपनी महत्वूपर्ण जिम्मेदारी निभाई। राजेंद्र बाबू वर्ष 1921 से 1946 तक बिहार विद्यापीठ तक रहे, फिर राष्ट्रपति बनने के बाद दिल्ली चले गए। राष्ट्रपति पद से अवकाश प्राप्त कर वह दिल्ली से 14 मई 1962 को पटना आए और फिर सदाकत आश्रम में नियमित रूप से रहने लगे। उन्हें न कोई क्षोभ था और नहीं कोई विषाद। वह सही मायने में स्वतंत्र थे। उनके गुजरने के बाद विद्यापीठ के जिस मकान में उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पूरी की, उसे संग्रहालय का रूप दिया गया। जहां आज भी उनकी स्मृतियां जीवित हैं। 

महिला चरखा समिति के बने रहे अध्यक्ष

राजेंद्र बाबू का संबंध सिर्फ बिहार विद्यापीठ परिसर से ही नहीं, बल्कि महिला चरखा समिति से भी रहा। समिति की स्थापना लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्र्रभावती देवी ने गांधीजी से प्रेरित होकर की थी। 27 जून 1940 को बाबू राजेंद्र प्रसाद के मार्गदर्शन में इसकी स्थापना हुई और राजेंद्र बाबू चरखा समिति के संचालन मंडल में कई वर्षों तक अध्यक्ष होने के साथ समिति का भी विस्तार करते रहे।

समाधि स्थल पर अंकित है राजेंद्र बाबू का व्यक्तित्व 

बांस घाट स्थित राजेंद्र बाबू का समाधि स्थल बना है। जहां 28 फरवरी 1963 को राजेंद्र बाबू का अंतिम संस्कार हुआ था। जब देशरत्न डॉ. राजेंद्र बाबू का देहांत हुआ था, किसी बड़े नेता ने शरीक होना उचित नहीं समझा था। विजय प्रकाश बताते हैं, देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी अंत्येष्टि यात्रा में शामिल होना उचित नहीं समझा। नेहरू उस दिन जयपुर चले गए थे। देश के किसी बड़े नेता का आना नहीं हुआ था। समाधि स्थल पर डॉ. राजेंद्र बाबू का व्यक्तित्व सुनहरे अक्षरों में अंकित है। वहीं, पटना संग्रहालय परिसर में राजेंद्र बाबू के नाम से एक दीर्घा है, जहां पर उनके जीवन से जुड़ीं कई स्मृतियों को सहेज कर रखा गया है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पोती तारा सिन्हा कहती हैं, देश के पहले राष्ट्रपति को जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिला। पटना में भी उनके पास अपना मकान नहीं था। 

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