छाते पर उभरीं मधुबनी और टिकुली कला की बारीकियां

एक कलाकार ही कला की कद्र जानता है

By JagranEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 06:00 AM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 06:14 AM (IST)
छाते पर उभरीं मधुबनी और टिकुली कला की बारीकियां
छाते पर उभरीं मधुबनी और टिकुली कला की बारीकियां

पटना। एक कलाकार ही कला की कद्र जानता है। कलाकार समय के साथ कला में हो रहे बदलाव को भी खूब जानता है। कोरोना संक्रमण काल में भी शहर के कुछ ऐसे ही कलाकार बिहार की लोक कला को बढ़ावा देने के लिए नये-नये प्रयोग करने में जुटे हैं। कलाकारों ने मास्क पर मधुबनी और टिकुली पेंटिग के जरिए कला को बढ़ावा दिया वहीं दूसरी ओर इन दिनों बरसात के मौसम में छाते पर कला की नुमाइश कर उसे बढ़ावा देने में लगे हैं।

युवा शिल्पकार छाते पर मधुबनी और टिकुली कला के जरिए रंग-बिरंगी कलाकृतियों को उकेर न केवल छाते की खूबसूरती में चार-चांद लगा रहे हैं बल्कि कला के जरिए छाते की उपयोगिता पर जोर दे रहे हैं। कला का व्यापक स्तर से प्रचार-प्रसार उद्योग विभाग अंतर्गत उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान इस दिशा में सार्थक पहल करने में लगी है।

कोरोना काल में बिहार के शिल्पकारों को घर बैठे रोजगार देने के लिए छाते पर कलाकृति को बनाने का बेहतर विकल्प मिला है। उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि बरसात के दिनों में छाते पर कला के जरिए कलाकृतियों को उकेरने का विचार किया गया। पहली बार बारिश के मौसम में कलाकारों द्वारा इस प्रकार के छाते तैयार किए जा रहे हैं। लोगों ने संस्थान परिसर में आकर 15-20 छाते खरीद लिए। निदेशक ने कहा कि मिथिला पेंटिग, टिकुली पेंटिग के अलावा अंग प्रदेश भागलपुर की लोक कला मंजूषा कला को भी प्रमोट करने के लिए कलाकारों को जोड़े जाने की योजना है।

मॉल से लेकर ई-कॉमर्स पर बिहार की लोक कला

बिहार के शिल्प कला को बढ़ावा देने के लिए उद्योग विभाग और शिल्प अनुसंधान संस्थान अपनी भूमिका अदा कर रही है। संस्थान के निदेशक ने बताया कि शिल्प कलाकृति वाले छाते को पटना के खादी मॉल, बिहार म्यूजियम एवं संस्थान परिसर में बिक्री के लिए रखा जाएगा। कला को बढ़ावा देने के लिए ई-कॉमर्स अमेजन, फिल्पकार्ट जैसे जगहों पर लोग घर बैठे ऑनलाइन खरीदारी कर सकते हैं।

पांच से सात सौ रुपये में बिक रहे छाते

छाते की कीमत के बारे में बात करें तो ब्रांडेड छाते पर कलाकृति उकेरने के बाद 500-700 रुपये कीमत रखी गई है। निदेशक ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी लोकल पर वोकल को बढ़ावा देने पर जोर दिए हैं।

समय के साथ कला में बदलाव जरूरी

छाते पर मधुबनी पेंटिग की कलाकृति उकेरने वाली मंजरी ने कहा कि समय के साथ कला में बदलाव जरूरी है। कल तक मधुबनी पेंटिग कपड़ों पर थी, लेकिन आज समय के साथ अलग-अलग जगहों पर अपना दस्तक दे रही है। इस प्रकार के छाते लोगों को पसंद आएगी। आरती, गुड़िया, खुशबू ने कहा बरसात के मौसम में मधुबनी और टिकुली पेंटिंग वाले छाते लोगों को पसंद आ रही है। इसी बहाने बिहार के कला का विस्तार भी होगा।

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कोरोना काल में घर बैठे कलाकारों को रोजगार देने के लिए कार्य किए जा रहे है। जिससे कला का प्रचार-प्रसार होने के साथ कलाकारों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की जा सके। आने वाले दिनों में इन सामान बढ़ेगी।

अशोक कुमार सिन्हा, निदेशक, उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान

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