बिहार के जल निकायों से जुड़े एटलस पर कोरोना की मार, नहीं हो पाया नक्शे का सत्यापन
जल निकायों पर एटलस तैयार करने की राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर कोरोना की मार पड़ रही है। गजेटियर कम एटलस ऑफ वाटर बाडीज आफ बिहार का प्रकाशन जून में होना था। केंद्र सरकार से नक्शा सत्यापन की जानकारी न मिलने से इसके प्रकाशन में देरी हो सकती है।
राज्य ब्यूरो, पटनाः जल निकायों पर एटलस तैयार करने की राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना पर कोरोना की मार पड़ रही है। गजेटियर कम एटलस ऑफ वाटर बाडीज आफ बिहार का प्रकाशन जून में होना था। लेकिन, केंद्र सरकार से नक्शा सत्यापन की जानकारी न मिलने के कारण इसके प्रकाशन में देरी हो सकती है। सरकार का दावा है जल निकायों से संबंधित ऐसा एटलस अपने देश में नहीं है। अन्य देशों की बात करें तो सिर्फ अमेरिका ने इस थीम पर एटलस प्रकाशित किया है।
दूसरे राज्यों या देशों की सीमा से जुड़े नक्शे का सत्यापन रक्षा मंत्रालय करता है। हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में बदलाव न भी हुआ हो तब भी नक्शे के नवीनतम प्रकाशन के लिए रक्षा मंत्रालय से इजाजत लेनी पड़ती है। एटलस के प्रकाशन में जिलों के नक्शे का उपयोग हो रहा है। राज्य सरकार ने पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया एवं किशनगंज जिलों की अंतरराष्ट्रीय सीमा के सत्यापन के लिए रक्षा मंत्रालय को पत्र लिखा है। पिछले महीने से कोरोना संकट शुरु हो गया। अब तक केंद्र से सत्यापन नहीं हो पाया। एटलस के लिए अन्य प्रकाशन सामग्रियां जुटा ली गई हैं। निजी एजेंसी को प्रकाशन का जिम्मा दे दिया गया है।
जल जीवन हरियाली का है अंग
राजस्व एवं भूमि सुधार को एटलस के प्रकाशन के लिए माॅडल विभाग घोषित किया गया है। जल संसाधन और ग्रामीण विकास विभाग की महत्वपूर्ण भागीदारी है। यह जल जीवन हरियाली योजना का हिस्सा है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह के मुताबिक एटलस के लिए संग्रहित डाटा का उपयोग आपदा प्रबंधन, भू जल संरक्षण, पुरातात्विक स्थलों की खुदाई एवं पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी किया जा सकेगा।
हर जिले को मिल रहा छह पेज
एटलस में हरेक जिले के बारे में कम से कम छह पेज में जानकारी दी जाएगी। पहले दो पेज में जिले के बारे में तथ्यात्मक जानकारी रहेगी। इसमें इतिहास, पुरातत्व, जलवायु, कृषि, उदयोग, पर्यटन आदि का ब्यौरा रहेगा। अगले दो पेज में नदी और नहर एवं अंतिम दो पेज में पोखर, तालाब और अन्य सतही जल स्रोतों की जानकारी होगी। निजी और सार्वजनिक तालाबों की पहचान के लिए अलग-अलग रंग का इस्तेमाल किया जाएगा। यह दो सौ से ढाई सौ पेज का होगा।