बिहार में रेमडेसिविर की किल्लत पर बदली व्यवस्था, अब एक ईमेल भेजने पर अस्पतालों को मिलगे दवा
बिहार में रेमडेसिविर आपूर्ति की व्यवस्था बदल दी गई है। अस्पतालों में अफरातफरी मरीजों की परेशानी और कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार ने व्यवस्था बदली है। हालांकि अभी भी 5 हजार वायल की प्रतिदिन मांग है मगर आपूर्ति मात्र 1200 वायल हो रही है।
पटना, जागरण संवाददाता। रेमडेसिविर की अधिक मांग को लेकर राज्य सरकार ने इसके आपूर्ति व्यवस्था बदल दी है। अब एक ई-मेल पर अस्पताल को सीधे दवा आपूर्ति कर दी जाएगी। इसके लिए अस्पताल को मरीज का आधार कार्ड, उपचार पर्चा, कोरोना संक्रमित रिपोर्ट की स्कैन कॉपी के साथ स्वास्थ्य विभाग के राज्य औषधि नियंत्रक के ईमेल ह्यस्रष्ड्ढद्बद्धड्डह्म्-ड्ढद्बद्धञ्चद्दश1.द्बठ्ठ पर मेल करना होगा। इसके बाद संबंधित अस्पताल को बिलिंग के साथ दवा आपूर्ति कर दी जाएगी। राज्य औषधि नियंत्रक की निगरानी में रेडमेसिविर की विभिन्न अस्पतालों में आपूर्ति की जा रही है।
कोई रामबाण नहीं है रेमडेसिविर, डॉक्टरों में मतभेद :
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मेडीसिन विभागाध्यक्ष डॉ. रवि कीर्ति ने बताया कि रेमडेसिविर को लेकर अलग-अलग शोध पत्र में अलग-अलग दावे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इसे सत्यापित नहीं किया है कि कोरोना की यह अचूक दवा है। कुछ चिकित्सकों का ऐसा मानना है कि जिन मरीजों में ऑक्सीजन लेवल कम होता है। उन्हें ऑक्सीजन के साथ 600 एमजी रेमडेसिविर की खुराक देने की सलाह दी जाती है। उन्होंने बताया कि उम्मीद की जाती है कि कोविड के वायरस से लडऩे में यह मदद करता है। जो लोग ऑक्सीजन सपोर्ट में होते हैं, उन्हें चिकित्सकीय परामर्श पर यह इंजेक्शन दिया जाता है। लेकिन सभी चिकित्सक इससे एकमत नहीं हैैं। विशेष चिकित्सकीय परामर्श के आधार पर ही इस दवा का प्रयोग करना है। बिना डॉक्टर की सलाह के इस दवा का प्रयोग घातक हो सकता है।
ऐसे दी जाती है खुराक
पहले दिन : 200 एमजी
दूसरे दिन : 100 एमजी
तीसरे, चौथे व पांचवें दिन : 100-100 एमजी
टॉक्सिलीजुमेब इंजेक्शन भी गंभीर मरीजों में प्रभावकारी :
डॉ. रवि कीर्ति ने बताया कि टॉक्सिलीजुमेब एक अन्य दवा है जो कोविड-19 के गंभीर रोगियों में प्रयुक्त की जाती है। यह संक्रमित की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर उसके चलते होने वाले नुकसान से शरीर का बचाव करता है, लेकिन इसके चलते कीटाणु-जनित अन्य संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। अत: बहुत सोच समझकर ही चिकित्सक इसका प्रयोग करते हैं।