भगवान हनुमान को तुलसी दल अर्पित कर प्रायश्‍िचत करते हैं इस जेल के कैदी, दुनिया में एक मिसाल

70 वर्षों से ज्यादा समय से कैदियों के हाथों से तोड़े गए तुलसी पत्र का मंदिर में हो रहा उपयोग 1950 से बांकीपुर जेल से शुरू हुई थी परंपरा 1948 में मंदिर घोषित हुआ सार्वजनिक तुलसी पौधे की देखरेख करने वाले कैदियों के लिए मंदिर से भेजा जाता प्रसाद

By Shubh NpathakEdited By: Publish:Sun, 08 Nov 2020 06:58 AM (IST) Updated:Sun, 08 Nov 2020 06:58 AM (IST)
भगवान हनुमान को तुलसी दल अर्पित कर प्रायश्‍िचत करते हैं इस जेल के कैदी, दुनिया में एक मिसाल
पटना के महावीर मंदिर में देख्‍ाने को मिलती अनोखी परंपरा। जागरण

प्रभात रंजन, पटना। उत्तर भारत के सुप्रसिद्ध मंदिरों में गिने जाने वाले पटना जंक्शन से सटे महावीर मंदिर में बजरंगबली की युग्म मूर्तियों के दर्शन के लिए हर दिन बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। बेउर जेल के कैदियों द्वारा तोड़ी गई तुलसी पत्र से भगवान महावीर को भोग लगता है। जेल परिसर में कैदी ही तुलसी की खेती करते हैं। महावीर मंदिर के पुजारी उमाशंकर बताते हैं कि हर दिन जेल से आठ किग्रा तुलसी पत्र मंदिर आता है, जिसका उपयोग पूजन और भगवान को प्रसाद चढ़ाने में होता है। हर दिन बेउर जेल से होमगार्ड के जवान शाम को पांच बजे तुलसी पत्र लेकर आते हैं। इसके बदले मंदिर से कैदियों को प्रसाद भेजा जाता है। दरअसल, इस पुनीत कार्य के जरिए कैदी प्रायश्चित करते हैं।

वर्षों से चली आ रही परंपरा

जेल से तुलसी पत्र आने की परंपरा 70 वर्ष पुरानी है। पहले पटना जंक्शन के सामने बांकीपुर जेल थी, उस समय से जेल से तुलसी पत्र का माला आना शुरू हुआ तो परंपरा जारी है। पुजारी बताते हैं, बांकीपुर जेल में हनुमान नाम का कैदी बजरंग बली का बड़ा भक्त था। उसकी इच्छा थी कि कैदियों के हाथ से तोड़े गए तुलसी पत्र को मंदिर में पहुंचाया जाए। जेल अधीक्षक ने उसकी बात मान ली, तबसे यह परंपरा चल रही है।

बांकीपुर जेल के समय से ही परंपरा

मंदिर न्यास समिति के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि 1950-55 से बांकीपुर जेल के जेलर तुलसी पत्र भेजते थे। 1948 में महावीर मंदिर को सार्वजनिक घोषित किया गया। महावीर मंदिर प्रबंधन समिति के प्रबंधक नागेंद्र ओझा बताते हैं, वह 20 वर्षों से मंदिर में सेवारत हैं। जंक्शन के पास से जेल बेउर  स्थानांतरित हो गई, परंतु परंपरा कायम है। जेल के जवान लाल कपड़े में बांधकर तुलसी पत्र लाते हैं। कोरोना काल में जब मंदिर बंद रहा, तब भी भगवान को भोग के लिए तुलसी पत्र वहीं से आता था।

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