Buxar: वादी न प्रतिवादी फिर भी 30 वर्षों से तारीख पर तारीख, जानिए 1958 में दर्ज इस अनोखे केस को

डुमरांव के अनुमंडलीय न्यायालय में चल रहा अनोखा मुकदमा। पिछले तीस सालों से मुकदमे की तारीख पर नहीं हाजिर हो रहे पैरवीकार। मुंबई के एक डिस्ट्र‍िब्‍यूटर ने यह मामला बक्‍सर के एक सिनेमा हाल मालिक पर दर्ज कराया था।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 04:33 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 04:33 PM (IST)
Buxar: वादी न प्रतिवादी फिर भी 30 वर्षों से तारीख पर तारीख, जानिए 1958 में दर्ज इस अनोखे केस को
जिस जमीन के लिए हुआ विवाद वहां बन गया मॉल। जागरण

अरुण विक्रांत, डुमरांव (बक्सर)। नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड (National Judicial Data Grid) के अनुसार तीन करोड़ 91 लाख से ज्यादा केस देश के विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। इनमें अकेले बिहार में 33 लाख से ज्यादा मामले न्यायिक प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। लंबित मुकदमों में बड़ी संख्या में ऐसे भी केस हैं, जिनके फैसले का अब कोई मायने मतलब नहीं रहा, लेकिन अदालतों पर बोझ बने हुए हैं। ऐसा ही एक 62 साल पुराना मुकदमा बक्सर के डुमरांव अनुमंडलीय कोर्ट में लंबित है। इस मुकदमे के अब न वादी रहे और न ही प्रतिवादी, फिर भी वर्षों से तारीख पर तारीख पड़ रही है।

1958 ई में मुंबई हाईकोर्ट में दर्ज हुआ था मामला 

मुकदमा डुमरांव से ही संबंधित है। जब भोजपुर, बक्सर, भभुआ और रोहतास को मिलाकर शाहाबाद जिला हुआ करता था, उस जमाने में पूरे जिले में इकलौता सिनेमा हॉल तुलसी टॉकिज के नाम से चलता था। सिनेमा हॉल के मालिक स्व.बद्री प्रसाद जायसवाल और मुंबई की फिल्म वितरक गाउमंट काली कम्पनी के बीच लेनदेन को लेकर कुछ विवाद हुआ। वितरक कंपनी ने मुंबई उच्च न्यायालय की शरण ली। तब, मुंबई हाईकोर्ट (Mumbai High Court) के न्यायाधीश के.टी.देसाई ने 24 नवम्बर 1958 को तुलसी टॉकिज में लगी फिल्म दिखाने वाली मशीनों और लाइट आदि सामग्रियों को वितरक को लौटाने का आदेश पारित किया। साथ ही सिनेमा हॉल मालिक को न्यायालय खर्च सहित करीब 60 हजार की राशि फिल्म वितरक कंपनी को अदा करने का भी आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने दिया था स्‍थगनादेश 

सिनेमा हॉल के मालिक द्वारा उक्त आदेश पर रोक लगाए जाने की नीयत से शाहाबाद स्थित सब जज द्वितीय के न्यायालय में मुकदमा संख्या 30/1959 दायर किया। दायर मुकदमा की सुनवाई के बाद कोर्ट ने उक्त मामले में अंतरिम निषेधाज्ञा लगा दी गई। इसी बीच सिनेमा हाल मालिक ने पटना उच्च न्यायालय में विविध वाद दायर कर दिया। वाद पर सुनवाई करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने स्थगनादेश निर्गत कर दिया। इसके बाद पहले के आदेश पर कार्रवाई रुक गई, लेकिन तारीख पड़ती रही। शाहाबाद से अलग होने के बाद मामला आरा कोर्ट में चलने लगा और बक्सर जिला बनने के बाद यहां स्थानांतरित हुआ। तब से यह मुकदमा कोर्ट में झूल रहा है। मुकदमा को देख रहे सब जज दो के न्यायाधीश शाहयार मोहम्मद अफजल ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 17 अगस्त को रखी है।

दशकों से नहीं आया कोई पैरवीकार

न्यायालय में दर्ज कार्यवाही ब्यौरे के अनुसार केस दर्ज होने के 20 सालों बाद तक इसमें दोनों पक्ष सक्रिय रहे। इसके बाद पैरवीकार आने बंद हो गए। अभिलेख के अनुसार तुलसी टाकीज की तरफ से अधिवक्ता कुंज बिहारी सिन्हा व गाउमंट काली प्राइवेट लिमिटेड की तरफ से अधिवक्ता शंकर प्रसाद पैरवी कर रहे थे। अब दोनों नहीं रहे और उनके बाद कोई दूसरा पैरवीकार नही आया। अनुमंडलीय न्यायालय के वरीय अधिवक्ता सइदुल आजम और सुनील तिवारी कहते हैं कि इस मुकदमे को अब तक समाप्त हो जाना चाहिए था, लेकिन 1959 में ही हाइकोर्ट से स्थगनादेश निर्गत होने के कारण निचली अदालत सुनवाई बंद नहीं कर सकती। इसी वजह से प्रक्रिया के तहत तारीख पर तारीख पड़ रही है।

कब का खत्म हो गया सिनेमा हाल, अब वहां बन गया मॉल

डुमरांव में कभी जिस जमीन पर तुलसी टॉकिज हुआ करता था, वहां अब मॉल बन गया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि बद्री प्रसाद जायसवाल के निधन के बाद तुलसी टाॅकिज बिक गया और उसकी जगह शीला सिनेमा हॉल ने ले ली। बाद में सिनेमा हॉल के प्रति लोगों में रुचि कम हुई तो इसके नए मालिक ने हॉल को तुड़वाकर यहां सिटी लाइफ नामक मॉल खड़ा कर लिया।

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