Birth Anniversary Special: मुल्कराज आनंद की पटना के किसान आंदोलनों में रही थी सक्रियता
Mulkraj Anand Birth Anniversary Special स्वामी सहजानंद से प्रभावित होकर रामधारी सिंह दिनकर के साथ मुल्कराज आनंद ने बिहार में चल रहे किसान आंदोलन में दिया था साथ अपनी रचनाओं में हमेशा पीड़ितों की आवाज को बुलंद करते रहे
पटना, जेएनएन। बहुआयामी प्रतिभा और व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार थे मुल्कराज आनंद। वे न केवल अंग्रेजी के प्रख्यात उपन्यासकार, बल्कि स्वतंत्र विचारक भी थे। 12 दिसंबर 1905 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्मे मुल्कराज आनंद के पिता लालचंद्र ब्रिटिश आर्मी में शिल्पकार थे। मुल्कराज आनंद अमृतसर के खालसा कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद इंग्लैंड चले गए और कैम्ब्रिज और लंदन विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे भारत लौट आए और मुंबई में स्थायी रूप से रहने लगे।
स्वामी सहजानंद ने अपनी आत्मकथा में किया है मुल्कराज का जिक्र
प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े शहर के संस्कृति कर्मी अनीश अंकुर बताते हैं कि मुल्कराज आनंद ने ही भारत आने पर प्रगतिशील लेखक संघ का पहला घोषणा पत्र भी तैयार किया था। वे स्वतंत्रता आंदोलनों के समय में जेल भी गए। किसान आंदोलन के क्रांतिकारी स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी आत्मकथा में भी मुल्कराज आनंद का जिक्र किया है।
पटना के किसान आंदोलनों में रही मुल्कराज की भूमिका
1930 के दशक में जब किसान आंदोलन जोरों पर था, तब उस दौरान स्वामी सहजानंद ने भारत में वामपंथी विचारधारा को मजबूती प्रदान करने में योगदान दिया था। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर रामवृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह दिनकर, रेणु, नागार्जुन, राहुल सांकृत्यायन सहित मुल्कराज आनंद ने इस बदलाव को अपनी रचना का केंद्र बनाया था। मुल्कराज आनंद ने पटना सहित अन्य जिलों में आंदोलन के दौरान अपनी भूमिका अदा की थी। उनका पहला उपन्यास 'अनटचेबल' ने दलितों की आवाज को पहचान दिलाई गई।
अनेक उपन्यासों के जरिये उकेरी पीड़ितों की व्यथा
उन्होंने कुली, टू लीव्स एंड अ बड, द विलेज, अक्रॉस द ब्लैक वाटर्स, द सोर्ड एंड द सिकल आदि उपन्यासों के जरिए पीडि़तों की व्यथा को भी उकेरा। मुल्कराज को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार की ओर से वर्ष 1967 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। वर्ष 1972 में उनकी उपन्यास 'मार्निंग फेस' को लेकर साहित्य अकादमी से पुरस्कार मिला। वे जीवन के अंतिम समय तक लिखते रहे। लगभग 99 वर्ष की आयु में 28 दिसंबर 2004 को उनका निधन हो गया। 12 दिसंबर 1905 को पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था जन्म 1930 के दशक में किसान आंदोलन में निभाई थी भूमिका 1967 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया था 1972 में उपन्यास 'मॉर्निंग फेस' के लिए मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार