रावण का वध नहीं होगा, वह झोला लेकर बाजार जाएगा; ऐसा कहकर फंस गया ठेठ बिहारी अंदाज वाला चर्चित लेखक
Ravan Vadh लालू यादव और कन्हैया कुमार से युवा कवि और लेखक नीलोत्पल मृणाल की तुलना करने लगे ट्विटर यूजर्स रावण को मारने का नया तरीका क्या बताया बुरी तरह फंस गए कवि देखिए ट्वटिपर लोगों ने क्या क्या कह दिया
पटना, आनलाइन डेस्क। अपने ठेठ बिहारी अंदाज के लिए चर्चित युवा कवि और लेखक नीलोत्पल मृणाल रावण वध के बारे में एक ट्वीट कर फंस गए। उन्होंने रावण को मारने का नया तरीका क्या बताया, ट्विटर यूजर्स उनको जवाब देने के लिए टूट पड़े। डार्क हार्स और औघड़ जैसी रचनाओं के सृजनकार नीलोत्पल ने रावण वध पर अलंकारिक अंदाज वाली टिप्पणी की थी। उन्होंने इस मौके का इस्तेमाल महंगाई का मसला उठाने के लिए किया तो ढेरों लोग उनसे नाराज हो गए। कुछ लोगों ने उन्हें भाकपा छोड़कर कांग्रेस में आए कन्हैया कुमार की टीम का सदस्य तक बता दिया। हालांकि कवि ने अपने अंदाज में इन ट्रोलर्स को जवाब देने की कोशिश की।
जानिए नीलोत्पल ने क्या कहा था
पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, सरसों तेल जैसी रोजमर्रा की इस्तेमाल वाली चीजों की बढ़ती कीमतों से समाज का एक जरूर परेशान है। लेकिन, नीलोत्पल के ट्वीट पर आई टिप्पणियों से ऐसा लगता है कि एक बड़े वर्ग के लिए महंगाई का मसला उतना गंभीर नहीं है, जितना कि सेफ्टी और अन्य चीजों का। नीलोत्पल ने अपने ट्वीट में कहा था कि इस बार रावण का पुतला मत जलाइए। फालतू के पटाखे जलाने की जरूरत नहीं। भीड़, हो-हल्ला और धूम-धड़ाके की जरूरत नहीं। एक झोला देकर रावण को बस बाजार भेज दीजिए, उसे तो महंगाई ही मार डालेगी।
देखिए कैसी-कैसी आई टिप्पणियां
प्रणय रंजन पांडेय ने कहा कि आज के दिन मनहूसियत भरा ट्वीट नहीं करना चाहिए था। उन्होंने नीलोत्पल को लिबरल गैंग का नया मेंबर बता दिया और कहा कि कम से कम आज अपना नकारात्मक चेहरा मत दिखाओ। नवीन ने युवा लेखक की मानसिक स्थिति पर कटाक्ष किया है। इनको जवाब देते हुए कवि ने लिखा है- आपके इंसान होने की कामना, रावण का वध जल्दी हो। हिमांशु नाम के यूजर ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स का हवाला देते हुए नीलोत्पल का समर्थन किया है। अखिलेश मिश्र ने लिखा है कि इस देश को शरणार्थियों का पेट भी तो भरना है। प्रभात मिश्रा ने कहा कि इतना ज्ञान किसी और पर्व पर क्यों नहीं आता है। ऋतुराज मिश्रा ने लिखा कि नीलोत्पल अच्छे साहित्यकार हैं, लेकिन वे लालू की परंपरा के व्यक्ति हैं न कि लोहिया की परंपरा के।