बिहार: साइबर फ्राॅड का हब बन गया कतरीसराय, कई राज्‍यों की पुलिस भी शातिर ठगाें को पकड़ने में नाकाम

बिहार के नालंदा जिला का कतरीसराय कभी आयुर्वेद के प्रसिद्ध वैद्यों के नाम से जाना जाता था। अब साइबर फ्रॉड के कारण कुख्‍यात हो गया है। यही कारण है कि आए दिन यहां मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश महाराष्ट दिल्ली हरियाणा राजस्थान की पुलिस साइबर ठगों की तलाश में आती रहती है।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Wed, 02 Jun 2021 02:00 PM (IST) Updated:Wed, 02 Jun 2021 02:03 PM (IST)
बिहार: साइबर फ्राॅड का हब बन गया कतरीसराय, कई राज्‍यों की पुलिस भी शातिर ठगाें को पकड़ने में नाकाम
ठगी के समंदर के बड़े माफिया तक नहीं पहुंच सकी पुलिस, सांकेतिक तस्‍वीर ।

बिहारशरीफ, जागरण संवाददाता। कभी आयुर्वेद के जानकार वैद्यों के नाम से ख्यात नालंदा का कतरीसराय अब साइबर फ्रॉड करने वाले गैंग के कारण कुख्यात हो गया है। यही कारण है कि झारखंड के जामताड़ा के बाद नालंदा का कतरीसराय सभी राज्यों की पुलिस की निशाने पर होती है। आए दिन यहां मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान की पुलिस साइबर ठगों की तलाश में आती रहती है। पिछले 26 मई को भी दिल्ली-एनसीआर में ऑक्सीजन सिलिंडर की डिलीवरी के नाम पर कई लोगों से लाखों के साइबर फ्रॉड के मुख्य आरोपी मानपुर थाना क्षेत्र के पलनी गांव निवासी छोटू चौधरी गैंग के दो बदमाशों को दिल्ली पुलिस कतरीसराय निवासी दीपक कुमार व राजेश कुमार को गिरफ्तार कर साथ ले गई।

ठगी का खेल वही, सिर्फ हाईटेक हुआ धंधा

बिहारशरीफ से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित कतरीसराय कभी सफेद दाग का शर्तिया इलाज करने के लिए मशहूर था लेकिन बदलते जमाने के साथ धंधे का स्वरूप भी बदलता गया। धंधेबाजों ने इसे साइबर ठगी का जरिया बना दिया है। नकली काम वर्द्धक दवा, यंत्र, सफेद दाग की नकली दवा, चेहरा पहचानो प्रतियोगिता, जमीन पर मोबाइल टावर लगाने का झांसा, नौकरी के लिए फर्जी प्रतियोगी परीक्षा व एटीएम की हेराफेरी कर ठगी का नेटवर्क फैलता चला गया। कतरीसराय से फैलते हुए यह धंधा मानपुर से बिहारशरीफ के बंद कमरों में भी चलने लगा।  पुलिस कतरीसराय में भी समय-समय पर छापेमारी करती है लेकिन थोड़े दिन बाद फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है। यहां के ठगों के शिकार देश भर के लोग होते हैं। यही कारण है कि आए दिन यहां दूसरे राज्यों की पुलिस ठगों की तलाश में पहुंचते रहती है। यह बात दीगर है कि दूसरे प्रदेश के पुलिस के हत्थे आज तक कोई ठग नहीं चढ़ सका है। ये ठग बड़े शातिर हैं। नेटवर्किंग भी तगड़ी है।

2012 के बाद 2019 में हुई थी बड़ी कार्रवाई

वर्ष 2012 में हुई बड़ी छापेमारी के दौरान यहां से 62 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। उस दौरान भारी मात्रा में नकली काम वर्द्धक दवाओं के अलावा अन्य आपत्तिजनक सामान भी बरामद हुआ था। बाद में जितने भी पुलिस कप्तान आए। उन्होंने इस गिरोह के नेटवर्क को तोडऩे की कोशिश की लेकिन इसे पूरी तरह ध्वस्त नहीं कर पाए। सूत्रों की मानें तो पुलिस के हाथ ठगी के समंदर के बड़े माफिया तक नहीं पहुंच सके हैं। हालांकि 2019 में नालंदा पुलिस ने दो साइबर ठगों को 18 लाख 23 हजार रुपए के साथ गिरफ़्तार किया था।

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