बिहार : लेट लतीफी व काम टालने के लिए बदनाम हैं बेचारे बाबू, आइएएस अधिकारी भी कहां हैं पीछे?

बिहार में सरकारी बाबू काम को टालने व लेट लतीफी के लिए बदनाम रहे हैं लेकिन आइएएस अधिकारी भी पीछे नहीं हैं। यह भी देखा गया है कि वे अपनी भलाई के मामलों में भी रिमाइंडर का इंतजार करते हैं।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 08:59 AM (IST) Updated:Fri, 22 Jan 2021 06:10 PM (IST)
बिहार : लेट लतीफी व काम टालने के लिए बदनाम हैं बेचारे बाबू, आइएएस अधिकारी भी कहां हैं पीछे?
काम पर बिहार के सरकारी बाबू। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

पटना, अरुण अशेष। सरकारी कामकाज में बाबू लोगों की लेट लतीफी और काम टालने की नई-नई तरकीब के इतने किस्से हैं कि लोग इनकी चर्चा नहीं करते हैं। लेकिन बिहार की चर्चा करें, बानगी देखें तो कह उठेंगे- बाबू तो बेचारे बदनाम हैं, काम टालने के मामले में शीर्ष पर बैठे आइएएस अधिकारी कम से कम इस मोर्चे पर उनसे बहुत पीछे नहीं हैं। बेशक उनके बीच तेेज रफ्तार से काम करने वाले अधिकारी भी हैं। फिर भी उनकी संख्या कम नहीं है, जो टलते रहने की हद तक किसी काम को टाल सकते हैं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उनके विचार के लिए आया विषय अंतत: किसके हित से जुड़ा है। यहां तक कि वे अपनी भलाई के मामले में भी जल्दबाजी नहीं करते। रिमाइंडर का इंतजार करते हैं। बस, वही तारीख पर तारीख जैसा मामला समझ लीजिए।

13 डीएम सहित 20 अफसरों को पत्र

राज्य सरकार के अधिकारियों का लेखा जोखा सामान्य प्रशासन विभाग के पास रहता है। इसे आप कारपोरेट के लिहाज से एचआर डिपार्टमेंट कह सकते हैं। राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने 19 जनवरी को एक पत्र जारी किया। यह बिहार में तैनात भारतीय प्रशासनिक सेवा के 20 अधिकारियों के नाम है। ये सब 2011, 2012 एवं 2013 बैच के अधिकारी हैं। इनमें से 13 फिलहाल विभिन्न जिलों में डीएम के पद पर तैनात हैं। बाकी सचिवालय में हैं या जिलों में किसी न किसी महत्वपूर्ण पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

पत्र में क्या है

सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव सिद्धेश्वर चौधरी के हवाले से पत्र जारी किया गया है। यह पत्र दरअसल रिमाइंडर है, जिसे सरकारी भाषा में स्मार पत्र कहा जाता है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के जिन अधिकारियों को पत्र दिया गया है, उन्हें लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी में मध्य सेवा कालीन प्रशिक्षण में जाना है। यह प्रशिक्षण इस साल 22 फरवरी से 19 मार्च तक है। प्रशिक्षण में शामिल होने के लिए अधिकारियों को संबंधित वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कराना है। 19 जनवरी के पत्र में अधिकारियों को याद दिलाया गया है कि रजिस्ट्रेशन की आखिरी तारीख 25 जनवरी है। जाहिर है, इस तारीख तक अधिकारी रजिस्ट्रेशन नहीं कराएंगे तो प्रशिक्षण में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। जबकि यह अनिवार्य प्रशिक्षण है।

डेढ़ महीने से चल रही है प्रक्रिया

पहली बार भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने तीन दिसम्बर 2020 को राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को इसके बारे में पत्र लिखा। इस पत्र की जानकारी संबंधित अधिकारियों को दी गई। सामान्य प्रशासन विभाग ने 22 दिसम्बर 2020 को एक पत्र इन अधिकारियों को अलग से भेजा। 28 दिनों तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। अंत में रजिस्ट्रेशन की आखिरी तारीख से एक सप्ताह पहले इन अधिकारियों को याद दिलाने के लिए 19 जनवरी को पत्र लिखना पड़ा कि रजिस्ट्रेशन नहीं कराएंगे तो प्रशिक्षण में शामिल नहीं हो पाएंगे।

जनहित के मामले में भी यही रूख

प्रशिक्षण किसी अधिकारी के कैरियर का विषय है। पिछड़ गए तो निजी नुकसान होगा। लेकिन, राज्य हित के मामलों में भी ऐसी ही सुस्ती नजर आती है। वित्त विभाग के प्रधान सचिव एस सिद्धार्थ ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव और सचिव को 31 दिसम्बर 2020 को एक पत्र लिखा। पत्र में आग्रह किया गया कि सभी विभाग चालू वित्त वर्ष के सेकेंड सप्लीमेंट्री बजट के लिए अपने विभाग का प्रस्ताव भेज दें। प्रस्ताव भेजने की आखिरी तारीख आठ जनवरी तय की गई। वित्त विभाग ने आठ के बदले 18 जनवरी तक विभागों के प्रस्ताव का इंतजार किया। सभी विभागों के प्रस्ताव नहीं मिले। 18 जनवरी को सिद्धार्थ ने एक और पत्र जारी किया। इसमें प्रस्ताव भेजने की आखिरी तारीख 22 जनवरी तक इस हिदायत के साथ दी गई है कि उसके बाद अगर उनके प्रस्ताव मिले तो उसे सेकेंड सप्लीमेंट्री बजट में शामिल नहीं किया जाएगा।

राज्य को क्या नुकसान होगा

विधानमंडल का सत्र 19 फरवरी से आयोजित है। इसमें सेकेंड सप्लीमेंट्री बजट पारित होगा। पूर्ण बजट में निर्धारित राशि से अधिक किसी विभाग में खर्च है तो सेकेंड सप्लीमेंट्री बजट से उसकी भरपाई की जाती है। इतना ही नहीं, केंद्र प्रायोजित योजनाओं में अगर राज्य के हिस्से से दी जाने वाली राशि कम पड़ रही है तो उसकी भी भरपाई होगी। सिद्धार्थ के पत्र में विभागों को सावधान किया गया था-कहीं ऐसा न हो कि राज्य का हिस्सा न मिलने की हालत में केंद्र की राशि के सरेंडर करने की नौबत आ जाए।

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