Bihar Politics: बिहार की एनडीए सरकार चार गांठों से बंधी, इसकी मजबूती जदयू-भाजपा दोनों पर निर्भर
Bihar Politics सोमवार को विधान परिषद के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ शाहनवाज हुसैन व मुकेश सहनी। नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल विस्तार जल्द होने का दावा किया है। जागरण
पटना, आलोक मिश्र। गठबंधन में बंधन तो होता ही है। कोई भी फैसला सामने वाले की सहमति के बगैर तभी संभव है, जब अपनी गांठ मजबूत हो और सामने वाले की कमजोर। बिहार की एनडीए सरकार चार गांठों से बंधी है, लेकिन इसकी मजबूती जदयू-भाजपा दोनों पर निर्भर है। दोनों के बीच इस समय मंत्रिमंडल विस्तार और राज्यपाल कोटे की 12 एमएलसी सीटों को लेकर पेच फंसा है। पेच अपने-अपने कोटे को लेकर है। इस बार सदन में जदयू से भारी भाजपा का दबाव मंत्रिमंडल में ज्यादा हिस्सेदारी का है, जबकि जदयू बराबरी चाहता है। एमएलसी में भी यही स्थिति है। पसोपेश में भाजपा है, गांठ भी बचानी है और साख भी। इसलिए फैसला टलता रहा। हालांकि अब फॉर्मूला निकालने की बात हो रही है, जिसके बाद ही पता चलेगा कि कौन दबा, कौन बढ़ा?
बिहार में विधान परिषद की दो सीटें खाली थीं। एक का कार्यकाल डेढ़ साल और दूसरे का साढ़े तीन साल। सीटें दोनों भाजपा कोटे की थीं। कई नामों पर चर्चा चली, लेकिन अचानक नामांकन समाप्ति के एक दिन पहले सामने आया शाहनवाज हुसैन का नाम। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन दिल्ली की राजनीति के लिए जाने जाते हैं। प्रदेश की राजनीति से उनका कोई खास लेना-देना नहीं रहा। वर्ष 2014 में भागलपुर लोकसभा सीट हारने के बाद से उनका भाग्य सुस्त चल रहा था। उन्हें साढ़े तीन साल वाली सीट के लिए नामित कर दिया गया। डेढ़ साल वाली सीट एनडीए के सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी को दे दी गई। मुकेश सहनी की पार्टी भाजपा कोटे से 11 सीटें लेकर चुनाव लड़ी थी, जिसमें उनकी पार्टी ने तो चार सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन वह स्वयं हार गए। सरकार बनने पर वे मंत्री बन गए इसलिए किसी सदन की सदस्यता उनके लिए जरूरी थी। भाजपा ने डेढ़ साल वाला ऑफर उन्हें दिया, जो उन्हें रास नहीं आया, लेकिन अमित शाह से फोन पर पता नहीं क्या बात हुई कि वे मान गए।
शाहनवाज हुसैन की बिहार की राजनीति में इंट्री को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं। कुछ ने इसे उनका कद घटना माना तो कुछ इसे दूसरे नजरिये से देख रहे हैं। शाहनवाज हुसैन वाकपटु हैं, राष्ट्रीय चैनलों पर चर्चा के दौरान भाजपा का पक्ष बेहतर तरीके से रखते हैं। इधर सरकार गठन के बाद स्थानीय भाजपा नेताओं से चर्चा के दौरान बीच-बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते रहे हैं कि बिहार में भाजपा के कार्यो को जनता के बीच बेहतर तरीके से रखें। माना जा रहा है कि इसके लिए शाहनवाज से बेहतर कोई नहीं हो सकता। वे केंद्र के कार्यो को प्रदेश में और प्रदेश के मुद्दों को केंद्रीय स्तर पर रखने में सक्षम हैं। साथ ही चाहे सहयोगी हों या विपक्ष, उनके कटाक्षों एवं सवालों के जवाब देने में शाहनवाज पूरी तरह सक्षम हैं। केंद्रीय नेतृत्व उनकी इस खूबी को बिहार में भुनाना चाहता है। यह भी माना जा रहा है कि शाहनवाज को प्रदेश में मंत्री भी बनाया जा सकता है, लेकिन इस बात की चर्चा भी है कि शाहनवाज को बिहार भाजपा के नेता ही कितना पचा पाएंगे। क्योंकि शाहनवाज अपने कद को लेकर समझौता कर नहीं पाएंगे और स्थानीय नेता अब उन्हें बड़ा मानने से रहे।
फिलहाल इन दो सीटों का मामला भले ही सुलझ गया हो, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार एवं भाजपा कोटे की 12 एमएलसी सीटों का मामला अभी भी अटका है। मंत्रिमंडल विस्तार में देरी का ठीकरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुले शब्दों में भाजपा पर फोड़ चुके हैं। पहले खरमास खम होने का हवाला दिया जा रहा था, लेकिन वे दिन भी बीत गए। पिछले सोमवार को जब नीतीश कुमार ने जल्द ही विस्तार होने की बात कही तो आस बंधी कि दो-तीन दिन में सूची फाइनल हो जाएगी।
भाजपा के नेता सूची लेकर दिल्ली गए, लेकिन बात नहीं बनी। अंदरखाने की बात है कि जदयू के नाम तो नीतीश के स्तर से फाइनल होने हैं, जिसमें कोई पेच नहीं है। दिक्कत भाजपा की तरफ से ही है, पुराने नेताओं को किनारे लगाने और क्षेत्रीय एवं जातीय संतुलन साध, नाम तय करने में उसे मशक्कत करनी पड़ रही है। इस चुनाव में मिली सफलता से उत्साहित भाजपा अब अपना पुराना कलेवर बदल आगे की राह सुगम करना चाहती है। इसलिए वह जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं कर रही है, लेकिन इसका असर कामकाम पर पड़ रहा है। अभी कई-कई विभाग एक मंत्री के पास होने से वे कोई भी फैसला लेने में हिचक रहे हैं कि कहीं यह विभाग उनके पास से चला न जाए। उम्मीद है कि 26 जनवरी के बाद यह सब हो जाएगा और प्रदेश में नई सरकार पटरी पर दौड़ने लगेगी।
[स्थानीय संपादक, बिहार]