राजद के आधार वोट की हिफाजत और तेजस्वी को सहारा देने आज बिहार आ रहे लालू, NDA की बेताबी भी नहीं कम
लालू करीब ढाई वर्ष बाद पटना आ रहे हैं। राजद खेमे में इसलिए खुशी है कि लालू की मौजूदगी भर से कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ सकती है। मनोबल ऊंचा हो सकता है। एनडीए में इसलिए खुश है कि वह लालू को जंगलराज का प्रतीक बताता है।
अरविंद शर्मा, पटना : चुनावी बयार के बीच राजद प्रमुख लालू प्रसाद के बिहार आने का इंतजार दोनों पक्षों को है। जितनी बेकरारी राजद कार्यकर्ताओं में है, उतनी ही बेताबी एनडीए में भी है। दोनों के अपने-अपने समीकरण हैं। तर्क हैं। रविवार की शाम में लालू करीब ढाई वर्ष बाद पटना आ रहे हैं। राजद खेमे में इसलिए खुशी है कि लालू की मौजूदगी भर से कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ सकती है। मनोबल ऊंचा हो सकता है। एनडीए में इसलिए खुश है कि वह लालू को जंगलराज का प्रतीक बताता है। उसे वोटरों के एक खास समूह को डर दिखाने के लिए अलग से कोशिश करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। चलचित्र की तरह सबकुछ सामने होगा।
राजनीतिक हलकों में सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि लालू आखिर अभी ही क्यों आ रहे हैं? पहले असमंजस के हालात थे। कभी हां तो कभी न की स्थिति थी। कहा जा रहा था कि लालू चुनाव में मेहनत और परिणाम का श्रेय तेजस्वी यादव को देना चाहते हैं। इसीलिए बिहार आने से परहेज कर रहे हैं। इसी स्थिति में तेजप्रताप यादव ने तेजस्वी पर लालू को दिल्ली में बंधक बनाकर रखने का आरोप तक मढ़ दिया था। ऐसे में लालू के पटना आने और चुनाव प्रचार में जाने की खबर रहस्य पैदा करती है। तर्क दिया जा रहा कि उपचुनाव में कांग्रेस को दुश्मन बनाकर तेजस्वी ने मुसीबत को आमंत्रण दिया है। अब उनके सामने राजद के आधार वोट बैंक की हिफाजत बड़ी चुनौती बनकर आ रही है।
कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी की तिकड़ी ने पटना आते ही जिस तरह लालू परिवार पर प्रत्यक्ष हमला बोला है, उसका भी भावार्थ निकाला जा रहा है। संसदीय चुनाव में बेगूसराय में राजद प्रत्याशी डा. तनवीर हसन को भाकपा के टिकट पर लड़ते हुए कन्हैया ने तीसरे नंबर पर ढकेल दिया था। जाहिर है, लालू का माय समीकरण पूरी तरह एकजुट नहीं रहा था। राजद का मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद एक हिस्से में कन्हैया के प्रति प्रेम उमड़ता दिखा था। लालू की यात्रा का विश्लेषण इससे भी जोड़कर किया जा रहा है। कन्हैया के आक्रामक रवैये का सूक्ष्म विश्लेषण किया जा रहा है। हालांकि कन्हैया के असर को राजद के उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी खारिज करते हैं। कहते हैं कि जो भी नुकसान होगा, एनडीए को होगा। राजद पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
आने का असर तो पड़ना है
इधर या उधर...लालू के आने और प्रचार पर जाने का असर तो पड़ेगा। फील्ड में गए तो विरोधियों को हथियार मिल सकता है। संबोधन में लालू सामाजिक न्याय की बात से परहेज नहीं कर सकते हैं। इसकी प्रतिक्रिया भी तय है। ज्यादा बोले तो तेजस्वी के तथाकथित प्रगतिशील चेहरे को झटका भी लग सकता है। एक वर्ग अभी भी ऐसा है, जिसकी नजरों में लालू खटकते हैं। वे राजद के विरोध में आक्रामक हो सकते हैं। एनडीए को यह राहत दे सकता है तो मुश्किल से भी इनकार नहीं किया जा सकता। तारापुर में लालू के स्वजातीय वोटरों में दुविधा है कि एक बार अगर वैश्य प्रत्याशी जीत गया तो फिर इस सीट पर उसी का कब्जा हो जाएगा। लालू के आने से माय समीकरण को तोड़ना किसी के लिए आसान नहीं होगा।