Bihar Politics: अभी तक लालटेन ही राजद की पहचान थी, लेकिन अब टोपी, गमछा और झंडा भी जुड़ा

Bihar Politics लालू को लगता है कि टोपी से एकजुटता बनाए रखने की ताकत मिलेगी। यह सही भी है कि सियासत में टोपी असरकारक है। टोपी कभी कांग्रेस की भी पहचान थी। अभी भी पुराने कांग्रेसी टोपी पहने दिख जाते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 10:30 AM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 10:32 AM (IST)
Bihar Politics: अभी तक लालटेन ही राजद की पहचान थी, लेकिन अब टोपी, गमछा और झंडा भी जुड़ा
पटना में आयोजित राजद के प्रशिक्षण शिविर को दिल्ली से संबोधित करते लालू प्रसाद। फोटो : राजद

पटना, आलोक मिश्र। Bihar Politics अभी तक लालटेन ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की पहचान थी, लेकिन अब इसमें टोपी, गमछा और झंडा भी जुड़ गया है। लालू यादव ने सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को हरी टोपी पहनने और गले में हरा गमछा डालने को कहा है ताकि राजद कार्यकर्ताओं की ताकत दूर से ही दिखाई पड़ जाए। यही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने हर कार्यकर्ता को घर पर झंडा लगाने को कह दिया है, ताकि पता चलेकि यहां राजद है। इनकी चली तो सड़कों और मोहल्लों में राजद अलग से ही दिखाई पड़ेगा।

लालू यादव भले ही दिल्ली में बेटी के घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हों, लेकिन पार्टी की अलग पहचान बनाने को लेकर वे इस समय बहुत गंभीर हैं। हरा रंग राजद की पहचान है। हरा गमछा तो कभी-कभार किसी के गले में दिख जाता है, लेकिन सिर खाली है। मंगलवार और बुधवार को पटना में हुए कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सभी से टोपी पहनने को कहा। लालू, उत्तर प्रदेश में सपा की टोपी से प्रभावित हैं। इसलिए उसका उदाहरण भी उन्होंने दिया कि सपा कार्यकर्ता टोपी के बूते किस तरह दूर से ही पहचाने जाते हैं। लालू को लगता है कि टोपी से एकजुटता बनाए रखने की ताकत मिलेगी। यह सही भी है कि सियासत में टोपी असरकारक है। टोपी, कभी कांग्रेस की भी पहचान थी। अभी भी पुराने कांग्रेसी टोपी पहने दिख जाते हैं। इसलिए राजद अगर टोपी पहन कर अलग दिखना चाहता है तो सोच को गलत भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस समय विधानसभा में 75 सीटों की हिस्सेदारी लेकर सबसे बड़ा दल राजद ही है और यह उसके समर्थकों के बूते ही संभव हो पाया है। उनमें टोपियों की बढ़ती संख्या विरोधियों के मनोबल पर प्रभाव डालेगी।

टोपी से समर्थकों की गणना का दांव बिहार में पहले भी खेला जा चुका है। यह 1988 की बात है जब कांग्रेस की सरकार थी। उस समय मुख्यमंत्री थे भागवत झा आजाद और विधानसभा अध्यक्ष थे शिवचंद्र झा, जो उन्हें हटाने पर तुले थे। तमाम विधायक भी मुख्यमंत्री के विरोध में थे, लेकिन उन्हें एक-दूसरे पर भरोसा नहीं था। तब तय हुआ कि मुख्यमंत्री विरोधी सदन में टोपी पहन कर आएंगे। हर दिन टोपियों की संख्या बढ़ने लगी। खेल पूरा होने से पहले इसकी भनक तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को लग गई। उन्होंने दोनों को हटा दिया। फिर सत्येंद्र नारायण सिन्हा सीएम बने और मोहम्मद हिदायतुल्लाह खान विधानसभा अध्यक्ष।

अब टोपी राजद की पहचान बन गई है। हालांकि इस हुंकारी का असर अभी दिखाई नहीं दिया है। कोई हरी टोपी अभी तक सार्वजनिक स्थान पर विचरती नजर नहीं आई, लेकिन हो सकता है कि आगे दिखाई दे। जब दिखाई देगी तब देखना दिलचस्प होगा, मुख्य विरोधी भाजपा का विरोध क्योंकि लोकसभा चुनाव में राजद के हरे झंडे पर रोक लगाने के लिए वह चुनाव आयोग तक पहुंच गई थी। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने आयोग से आग्रह किया था कि यह रंग किसी खास धर्म व देश के प्रतीक के तौर पर है। इसको आयोग ने कोई तवज्जो नहीं दी थी, पर इस बार तो हरी टोपी और गमछा भी होगा।

राजद जहां इस तरह संगठन को एक करने में जुटा है, वहीं सहयोगी कांग्रेस पूरी तरह सन्नाटे में है। विधानसभा चुनाव में बुरी फजीहत के बाद भी संगठन ढीला पड़ा है। चुनाव में हारने के बाद बड़ी हवा चली कि पूरी तरह फेरबदल होगा, संगठन को मजबूत किया जाएगा, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। धार देने के लिए राहुल गांधी ने सात जुलाई को यहां के नेताओं को बुलाया था और कहा था कि नेता, गांवों में जाएं और रात बिताएं। तीन महीने बाद फिर बुलाने को कहकर सबको विदा किया था। ढाई महीने पार हो गए हैं और गांव तो दूर अभी तक कोई घर से नहीं निकला।

इसके बावजूद दो विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एक सीट पर वह दावा ठोके हैं, क्योंकि एक पर वह पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर थी जबकि दूसरी सीट पर राजद नंबर दो था। ये सीटें एनडीए व महागठबंधन दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। राजद दोनों सीटें खुद लड़ना चाहता है ताकि विपक्ष 115 से बढ़ाकर 117 हो जाए। ऐसे में बहुमत के लिए सिर्फ पांच की कमी होगी। एक निर्दलीय के अलावा चार-चार सीटों वाले हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी में से किसी एक के एनडीए से इधर-उधर होने पर विपक्ष की पौ बारह संभव है। फिलहाल तो यही लग रहा है कि उप चुनाव की दोनों सीटों पर दावा करके राजद सबसे पहले कांग्रेस को ही टोपी पहना देना चाह रहा है।

[स्थानीय संपादक, बिहार]

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