Bihar Panchayat Chunav 2021: बिहार मतदान व्यवहार में बदलाव, बढ़ रही महिलाओं की हिस्सेदारी

Bihar Panchayat Chunav 2021 बिहार में बेशक पंचायत चुनाव 2021 में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है लेकिन यह भी समझना होगा कि वाकई में जमीनी स्तर पर यह कितना कारगर साबित हो पा रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 09:26 AM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 09:28 AM (IST)
Bihar Panchayat Chunav 2021: बिहार मतदान व्यवहार में बदलाव, बढ़ रही महिलाओं की हिस्सेदारी
बिहार में जारी पंचायत चुनाव में बढ़ रही है महिलाओं की हिस्सेदारी। फाइल

शिवांशु राय। कोरोना संक्रमण और बाढ़ जनित कारणों से इस बार बिहार में पंचायत चुनाव देरी से हो रहे हैं। पंचायत चुनाव में यहां वार्ड सदस्य, मुखिया, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद के अलावा ग्राम कचहरी के सरपंच और पंच के लिए चुनाव होते हैं। यह चुनाव कई चरणों में 12 दिसंबर तक होगा। चुनाव में धन-बल और हिंसा में हो रही बढ़ोतरी के बीच राज्य में एक तथ्य यह भी उभरकर सामने आया है कि युवाओं और महिलाओं की इसमें भागीदारी बढ़ रही है। यह बात गौर करने लायक है कि 2001 में बिहार में पंचायत चुनाव ‘इलेक्टोरल एम्पावरमेंट’ के रूप में साबित हुआ था।

वर्ष 2006 में पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान किया गया। उस समय बिहार ऐसा पहला राज्य था जिसने महिला प्रतिनिधित्व और सशक्तीकरण की दिशा में ऐसा मजबूत कदम उठाया, जिसका नतीजा आज हमें देखने को मिल रहा है कि इन पंचायत चुनावों में आरक्षित पदों के साथ साथ अनारक्षित पदों पर भी पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा नामांकन कर रही हैं। साथ ही स्थानीय स्तर पर राजनीतिक-सामाजिक भागीदारी, पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी समाज में लीक से हटकर विकास के नए नए आयाम लिख रही हैं।

अनेक संबंधित शोध रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि बिहार में पंचायतों में पिछड़े वर्गो और महिलाओं के प्रतिनिधित्व से उस समुदाय और समाज के प्रति उनकी जवाबदेही और कल्याणकारी नीतियों को लागू करने में मदद मिली है। एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मजबूत स्थानीय निकाय और महिलाओं के प्रतिनिधित्व से बिहार में निचले स्तर पर नीतियों, स्वास्थ्य, समग्र विकास और जागरूकता में पहले से सुधार देखा गया, किंतु इन स्थानीय निकायों के समक्ष बुनियादी चुनौतियां भी थीं जिस कारण अपेक्षित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो सका। कुछ अपवादों को छोड़कर समग्र रूप में देखा जाए तो बिहार को महिलाओं के पूर्ण प्रतिनिधित्व की दिशा में लंबा सफर तय करना है, क्योंकि पंचायतों में महिला प्रतिनिधियों की भागीदारी तो है, लेकिन वास्तव में महिलाएं महज मुखौटा ही होती हैं, जिसकी आड़ में अक्सर अधिकांश कार्यो का निष्पादन पुरुष (पति या पिता) ही करते हैं। यानी स्थानीय स्वशासन में पितृसत्तात्मकता हावी है। जबकि सशक्तीकरण का मतलब आर्थिक स्वावलंबन, दायित्व निर्वहन और स्वतंत्र निर्णय लेने से है, परंतु महिलाओं को इन तीनों मोर्चो पर संघर्ष करना पड़ता है।

बिहार में स्थानीय स्तर पर पंचायत चुनावों में शुरू से जाति, धर्म, पैसा, हिंसा, अपराधीकरण आदि का दबदबा रहा है जिसने दशकों तक मतदान व्यवहार को नकारात्मक रूप में प्रभावित किया है। वर्तमान में भी ये कारक स्थानीय सरकार बनाने में इस्तेमाल हो रहे हैं। बीते कुछ दशकों में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक नजरिये से आए बदलावों के बाद भी पंचायत चुनावों में महत्वपूर्ण पदों जैसे मुखिया आदि के लिए हिंसा, धन-बल और जाति का बोलबाला है जो लोकतांत्रिक राष्ट्र में विकेंद्रीकरण के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।

पंचायत चुनावों में बड़ी मात्र में धन का इस्तेमाल कर मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने की कोशिशों में काफी बढ़ोतरी हुई है। प्रभुत्वशाली और नव-धनाढ्य वर्ग के लोगों को पंचायत चुनाव राजनीति में कदम रखने, आर्थिक-राजनीतिक प्रभुत्व और सामाजिक हैसियत को कायम रखने का जरिया नजर आता है। वहीं दूसरी तरफ विकास कार्यो के लिए भारी मात्र में सरकारों की तरफ से मिलने वाला ‘वेलफेयर फंड’ आय के साधन के रूप में दिखता है। ऐसे में स्थानीय स्तर का चुनाव ‘प्रभुत्व की राजनीति’ को बरकरार रखने के लिए पैसा, जाति, ताकत और हिंसा एक माध्यम के रूप में उभरे हैं जो मतदाताओं को प्रभावित कर निष्पक्ष पंचायत चुनावी प्रक्रिया के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। स्थानीय चुनाव अपेक्षाकृत ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक होते हैं, क्योंकि इसमें जाति, व्यक्तिगत शत्रुता, सम्मान, सरकारी सुविधाओं और संसाधनों तक पहुंच दांव पर होते हैं।

एक नया ट्रेंड स्थानीय स्तर पर चुनाव उम्मीदवारों, प्राक्सी उम्मीदवारों और मतदाताओं के बीच एक ‘डील’ के रूप में उभर रहा है जिसमें ताकतवर लोग सत्ता पर पकड़ बनाए रखने के लिए महिला या पिछड़ी जाति के किसी कमजोर व्यक्ति को पंचायत चुनाव में आगे कर खुद ही सत्ता का लाभ उठाते रहे हैं। इससे आरक्षित सीटों, महिलाओं की भागीदारी एवं सबसे अधिक मतदान व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इससे भ्रष्टाचार की बुनियाद भी मजबूत होती चली गई है।

पंचायती राज में नई सामाजिक व्यवस्था के निर्माण की नई संभावनाएं हैं। ग्राम-पंचायत वास्तव में राजनीतिक भागीदारी और समतामूलक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण कदम है। ऐसे में पंचायत चुनाव प्रक्रिया में संरचनात्मक सुधार, धन-बल और हिंसा को रोकने, प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण, पंचायत के कार्यो में पारदर्शिता, जवाबदेही, महिलाओं और दलितों की भागीदारी और उनके वास्तविक अधिकारों को सुनिश्चित करने की चुनौती है। जनता के बीच जागरूकता, सोशल आडिट और ई-गवर्नेस को मजबूत करना अत्यंत आवश्यक है। इसके साथ ही चुनाव बाद नीति निर्माण, विकास संबंधी निर्णय आदि में भी ग्रामीणों की भागीदारी पंचायतों को सुदृढ़ करने में सहयोग करेगी।

[सामाजिक मामलों के जानकार]

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