भूली बिसरी कहानियां याद कराएगी बिहार विरासत विकास समिति, एकत्र की गईं तीन सौ लोक कथाएं

समय के साथ इन कहानियों की जगह मोबाइल टीवी ने ले ली। अब इन कथाओं को दोबारा लोकप्रिय बनाने का जिम्मा उठाया है बिहार विरासत विकास समिति ने। इसका उद्देश्य विरासत बचाने के साथ नई पीढ़ी को इसके बारे में अवगत कराना है।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sat, 20 Nov 2021 07:37 PM (IST) Updated:Sat, 20 Nov 2021 07:37 PM (IST)
भूली बिसरी कहानियां याद कराएगी बिहार विरासत विकास समिति, एकत्र की गईं तीन सौ लोक कथाएं
पटना स्थित बिहार विरासत विकास समिति का कार्यालय। जागरण आर्काइव।

प्रभात रंजन, पटना :  दादा-दादी, नाना-नानी हम सबको राजा-रानी, सुग्गा-मैना, करमा-धरमा, चंडाल पंडित, सीतला-मीतला जैसी कहानियां सुनाते थे। ये कहानियां मनोरंजक होने के साथ साथ ज्ञानवर्धक और प्रेरणास्पद होती थीं। समय के साथ इन कहानियों की जगह मोबाइल, टीवी ने ले ली। अब इन कथाओं को दोबारा लोकप्रिय बनाने का जिम्मा उठाया है बिहार विरासत विकास समिति ने। 

लोककथाओं को बचाने का प्रयास 

प्रदेश के अलग अलग इलाकों में अलग अलग भाषा व बोलियां प्रचलित हैं। इन बोलियों और भाषाओं की अपनी समृद्ध परंपरा है। लोककथाएं हैं, कहावतें हैं। धीरे धीरे ये विलुप्त होती जा रही हैं। जीवनशैली में बदलाव के साथ अब न तो किसी के पास कहानी सुनाने की फुरसत है और न बच्चे सुनना ही चाहते हैं। इसे देखते हुए बिहार विरासत विकास समिति ने इन लोककथाओं को एकत्र करने का काम दो साल पहले शुरू किया था।  इसका उद्देश्य विरासत बचाने के साथ नई पीढ़ी को इसके बारे में अवगत कराना है।

समिति के कार्यपालक निदेशक डा. विजय कुमार चौधरी ने बताया कि इस कार्य में मगही, भोजपुरी, मैथिली, बज्जिका, अंगिका आदि भाषाओं के जानकारों का सहयोग लिया गया है। जिनमें मगही भाषा के उदय शंकर शर्मा 'कविजी' मैथिली के पद्मश्री ऊषा किरण खान, भोजपुरी के अभय पांडेय, अंगिका के डा. दिनेश दिवाकर, बज्जिका के डा. शैलेंद्र प्रमुख हैं। इन सबने तीन सौ से अधिक कथाओं का संकलन किया है। 

कहानी में चित्रों का समावेश 

संकलित लोक कथाओं को आकर्षक बनाने के लिए उसमें चित्रों का भी इस्तेमाल किया गया है। को लेकर उसमें बाल कलाकारों ने चित्रों का भी प्रयोग किया गया है। इस काम में बिहार बाल भवन 'किलकारी' के बाल कलाकारों का भी खास योगदान रहा है। 

वर्ष के अंत तक पुस्तकों का होगा प्रकाशन 

अभी तक एकत्र की गई लोककथाओं का संकलन वर्ष के अंत तक प्रकाशित करा दिया जाएगा। इन्हें विभिन्न लाइब्रेरियों उपलब्ध कराया जाएगा। पुस्तकों की बिक्री भी की जाएगी। 

लोक कथाओं का संकलन 

मगही - 79

अंगिका - 44

बज्जिका - 32

भोजपुरी - 42

मैथिली - 31 

भाषाओं में लोककथाएं 

अंगिका - 

राजा सलहेस, करमा-धरमा, चंडाल पंडित, नटुआ दयाल, चील्हो-सियारो, सीतला-मीतला, सुखनी-दुखनी, बिहुला-विषहरी, बाबा बिसु राउत, जीघो-पोखर आदि। 

मगही - 

चार दिलदार,  अपने राजे राज, मौनी बाबा, जगह के दोष, सोनमा दास, इनरासन के हाथी आदि। 

मैथिली - 

काठक घोड़ा पाटक लगाम, डेढ़ बितना, चरवाहा राजा, मोहन बरही, राजा भोज, राजा दुर्दिन, गोनू झा, एगो रहे मुसहरनी, गुड़-चाउर आदि। 

भोजपुरी - 

चिरईं अ बूट, ढोंगी पंडित, भगत आ भगवान, मियांजी के फारसी, मौलवी साहेब आ मियां आदि। 

बज्जिका -

 एगो रहए जोलहा, चतुर भागिक, हिरामन सुग्गा, महाराजा विक्रमादित्य, शीत-बसंत आदि। 

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