बिहार बना उल्‍लुओं का पसंदीदा ठिकाना, सरकार को भी है इनकी चिंता, गिनती हो जाए तो...

Bihar News बिहार उल्‍लुओं का पसंदीदा ठिकाना बनता जा रहा है सरकार को भी इनकी खूब चिंता है लेकिन आम लोग इनका महत्‍व नहीं जानते आम लोगों की बेफ‍िक्री बढ़ा रही सरकार की चिंता जान लीजिए पूरी बात...

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Tue, 07 Dec 2021 02:21 PM (IST) Updated:Tue, 07 Dec 2021 02:30 PM (IST)
बिहार बना उल्‍लुओं का पसंदीदा ठिकाना, सरकार को भी है इनकी चिंता, गिनती हो जाए तो...
बिहार में उल्‍लुओं की तेजी से बढ़ रही संख्‍या। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, जागरण संवाददाता। संरक्षित पक्षियों में शामिल उल्लू को बिहार का मौसम कुछ ज्यादा ही पसंद आ रहा है। यही वजह है कि देश में पाए जाने वाले 30 प्रजातियों में से उल्लूओं की सात प्रजाति अकेले बिहार में पाई जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो उल्लू स्ट्रिगिफोर्मेस क्रम के पक्षी हैं। इसमें 200 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं। ये शिकारी प्रवृत्ति के तथा एकांत एवं निशाचर पक्षी हैं। इन उल्लुओं में एक विशेष प्रकार की विद्वता होती है, जिसे वह अपनाता है। उल्लू को दूर से आती आवाज के आधार पर ही दूरी का आकलन करने की क्षमता है। अधिकारियों की मानें तो बिहार में उल्लूओं की संख्या की गिनती तो नहीं हुई है, लेकिन यदि संख्या हाेती है तो 10 हजार से अधिक की संख्या का अनुमान है।

उल्लू की जान पर अंधविश्वास भारी

कुछ लोग तंत्र-मंत्र में विश्‍वास रखने बाले बाबाओं में यह मान्यता है कि सिद्धि पाने के लिए दीपावली में इन उल्लुओं की बलि दी जानी चाहिए, जो बिलकुल गलत कार्य है। इसके चलते राज्य के सभी वन के अधिकारी अलर्ट होते हैं। तंत्र साधना और सिद्धि पाने के लिए उल्लुओं की बलि दी जाने के कारण ये पक्षी विलुप्त होता जा रहा है। यही वजह है कि इसके संरक्षण को लेकर चिंता बढ़ गई है। ऐसे में उल्लुओं की तस्करी रोकने की कवायद शुरू हो गई है।

फरवरी से मार्च में प्रजनन करती है उल्लू 

बिहार में उल्लुओं की जो प्रजातियां पाई जाती हैं, वे फरवरी से मार्च के बीच प्रजनन करते हैं। इनके माता-पिता इन्हें एक महीने तक स्वयं खाना लाकर देते हैं। जब तक वे उड़ने लायक और स्वयं शिकार करने लायक नहीं हो जाते हैं। उल्लूओं की तस्करी करनेवाले शिकारी गंगा के किनारे के मैदानी इलाकों में सक्रिय हैं।

तीन साल तक है सजा का प्रावधान

भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 की अनुसूची एक के तहत उल्लू संरक्षित प्रजाति का पक्षी घोषित है। इसके शिकार में पकड़े जाने पर तीन साल की सजा या उससे अधिक सजा का प्रावधान है। भारत में उल्लुओं की 13 प्रजातियों की तस्करी की जाती है। बिहार के साथ ही झारखंड के उत्तर-पूर्वी इलाकों के साथ ही बंगाल के बिहार से लगे इलाकों में उल्लूओं का अवैध व्यापार करनेवाले सक्रिय हैं। उल्लूओं की जिस प्रजाति का सबसे अधिक व्यापार होता है, उनमें रॉक ईगल ऑउल (पूरे देश में मिलते हैं), ब्राउन फिश ऑउल, डस्की ईगल ऑउल आदि शामिल हैं।

आम लोगों को जागरूक करने की कोशिश

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, पटना के प्रभारी अधिकारी डा. गोपाल शर्मा ने बताया कि बिहार सरकार उल्लुओं के रख-रखाव या संरक्षण के लिए प्रयास कर रही है। समय समय पर आम लोगों की जागरूकता के लिए स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर आम लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है। बिहार में उल्लू की गिनती तो नहीं की गई है लेकिन अगर गिनती की जाती है, तो 10 हजार से अधिक उल्लू के होने की उम्मीद है।

नैतिक जागृति से दूर होगी समस्‍या

श्री छोटी पटन देवी जी, पटना सिटी के पुजारी बाबा विवेक द्विवेदी ने बताया कि विशेष तंत्र साधना में सिद्धि के लिए अष्ठमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्‍या के दिन उल्लू की पूजा का प्रावधान है। इसके लिए लोग उल्लू को पकड़ते हैं या फिर बहेलियों से इसकी खरीदारी करते हैं। पूजा करने के बाद छोड़ देते हैं। उसके दर्शन का महत्व है। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए लोग इस पक्षी की पूजा करते हैं। आसाम और बंगाल के क्षेत्रों में सबसे ज्यादा तंत्र सिद्धि के लिए होती है। लोग उल्लू को ना पकड़ें, इसके लिए नैतिक जागृति जरूरी है। बिना पकड़े भी दर्शन पूजन किया जा सकता है।

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