बिहार में खरीफ फसल के बीज में नहीं हो सकेगा खेल, कृषि अधिकारियों पर सरकार ने कसा शिकंजा
बिहार में खरीफ की खेती को लेकर सरकारी बीज की मांग नहीं बताने वाले कृषि अधिकारियों को प्रमाण पत्र देना होगा कि उनके जिले में सामान्य बीज (ओपी वेरायटी) का उपयोग किसान नहीं करते हैं। यही नहीं किसानों से भी लिखित लेकर विभाग को भेजना होगा।
पटना, राज्य ब्यूरो। बिहार में खरीफ की खेती को लेकर सरकारी बीज की मांग नहीं बताने वाले कृषि अधिकारियों को प्रमाण पत्र देना होगा कि उनके जिले में सामान्य बीज (ओपी वेरायटी) का उपयोग किसान नहीं करते हैं। यही नहीं, किसानों से भी लिखित लेकर विभाग को भेजना होगा। कृषि निदेशक आदेश तितरमारे ने निजी बीज के व्यापार को हतोत्साहित करने के लिए यह व्यवस्था पहली बार की है। कई जिलों के अधिकारी सरकारी बीज का उपयोग यह कहकर नहीं करते हैं कि उनके जिले में ओपी बीज की मांग नहीं है। किसान इसकी खेती नहीं करना चाहते हैं। कई जिलों के अधिकारियों ने कृषि निदेशालय को यह सूचना दी है। वहीं, सच्चाई है कि बिहार में धान की खेती में अधिसंख्य किसान इसी बीज की खेती करते हैं।
कृषि विभाग का मानना है कि कई बार अधिकारी निजी बीज विक्रेताओं के दबाव में भी ऐसा करते हैं। सरकारी बीज उपलब्ध होने पर किसान निजी विक्रेताओं से बीज नहीं खरीदते हैं। यही वजह है कि निजी बीज दुकानदारों से मिलकर अधिकारी कह देते हैं कि उनके बीज की मांग ही नहीं है। वहीं, निजी बीज विक्रेता किसानों को ठगते भी हैं। उनका बीज अगर फेल हो जाता है तो किसानों को भारी नुकसान होता है। सरकार उन पर कार्रवाई भी नहीं कर पाती है, क्योंकि किसानों के पास बीज खरीदने की रसीद नहीं होती है। आखिरी में किसानों को हुए नुकसान की भरपाई में सरकार को करोड़ों रुपये खर्च कर करनी पड़ती है।
संकर धान की खेती अब भी बहुत कम होती है। ऐसे में निदेशक ने अधिकारियों को दो टूक निर्देश दिया है कि वह खुद भी प्रमाण दें कि उनके जिले में ओपी बीज से धान की खेती नहीं होती है। अधिकारियों को प्रमाण पत्र में डाटा भी देना है कि उनके जिले में कितने रकबे में धान की खेती हो रही है और उसमें कितने में ओपी और कितने में संकर बीज का उपयोग हो रहा है।
दरअसल, कमीशन के लालच में कृषि अधिकारी बीज विक्रेताओं से सांठगांठ कर उम्दा पैदावार वाले बीज सबौर श्री, आइआर 64 और सबौर अर्ध जल और सबौर संपन्न के बजाय संकर बीज की बिक्री छूट देते हैं। इससे किसानों को भारी नुकसान होता है। वहीं, सरकार को भी चपत लगती है।