बिहार की शिल्प कलाओं को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान, आयात-निर्यात को लेकर होगा समझौता
शिल्प कलाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने को हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (इपीसीएच) अपनी भूमिका निभाएगा। बिहार में पहली बार हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद और उद्योग विभाग के अंतर्गत उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के बीच समझौता हुआ है।
प्रभात रंजन, पटना। दूसरे राज्यों की तरह बिहार की भी शिल्प कलाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाने को हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (इपीसीएच) अपनी भूमिका निभाएगा। बिहार में पहली बार हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद और उद्योग विभाग के अंतर्गत उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के बीच समझौता हुआ है। इसके तहत बिहार की प्रमुख शिल्प कलाओं को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान देने के साथ बिहार की युवा उद्यमिता को भी पहचान मिलेगी।
हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के प्रोजेक्ट मैनेजर राहुल रंजन की मानें तो बिहार में पहली बार उपेंद्र महारथी शिल्प संस्थान के साथ शिल्प कलाकृतियों के आयात-निर्यात को लेकर समझौता हुआ है। इसकी परिकल्पना संवर्धन परिषद के डायरेक्टर जनरल राकेश कुमार की है। राज्य की शिल्प कलाकृतियों के निर्यात में बिहार कहीं नहीं है। जबकि यहां पर मिथिला पेंटिंग, मंजूषा पेंटिंग, सिक्की कला, टिकुली कला समेत शिल्प कला के विविध आयाम हैं। शिल्प कला के आयात-निर्यात में यूपी, राजस्थान की कलाओं का बड़ा योगदान रहा है। इसका फलक वैश्विक स्तर पर है। देशभर में शिल्प कलाओं के आयात-निर्यात की बात करें तो वर्ष 2019-20 में 25 हजार 270 करोड़ का हैंडीक्राफ्ट सेक्टर में व्यापार हुआ तो वहीं कोविड काल में 2020-21 में 25 हजार 679 करोड़ का रहा। देखा जाए तो 1.62 करोड़ की ग्रोथ हुई है। हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद का उद्देश्य अलग-अलग राज्यों के शिल्प, हैंडीक्राफ्ट को बढ़ावा देना है।
ट्रेनिंग देने के साथ बिचौलिए से मिलेगी मुक्ति
राज्य के शिल्प कलाकारों को समय के साथ अपडेट करने को लेकर उन्हें हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (इपीसीएच) के तहत ट्रेनिंग दी जाएगी। साथ ही शिल्पियों के बनाए उत्पादों को अब बिचौलियों से मुक्ति दिलाने को लेकर परिषद शिल्प प्रोडक्ट का आयात-निर्यात करेगी। इसका पूरा लाभ शिल्प व हैंडीक्राफ्ट से जुड़े कलाकारों को मिलेगा। वहीं उद्योग विभाग की ओर से राज्य के विभिन्न जिलों में बनाए गए सामान्य सुविधा केंद्र में शिल्पियों को विशेषज्ञों द्वारा ट्रेनिंग दी जाएगी। इसमें उन्हें समय के साथ बदलती कला के स्वरूप और बाजार को लेकर प्रशिक्षण दिया जाएगा। वहीं दूसरी ओर क्लस्टर के स्तर पर भी काम किया जाएगा।
वर्ष में दो बार होता है मेले का आयोजन
ईपीसीएच की अधिकारी की मानें तो विश्व के सबसे बड़े मेले का आयोजन दिल्ली में होता रहा है। इसमें देशभर के कलाकारों के साथ उनके शिल्प उत्पादों की भी प्रदर्शनी लगती रही है। इसमें न केवल देश के बल्कि विदेशों के भी उद्यमी भाग लेते रहे हैं। ऐसे में बिहार के शिल्प कला को समय के साथ अपडेट करते हुए मेले का हिस्सा बना उन्हें बढ़ावा देने पर भी जोर होगा। अधिकारी की मानें तो अब समय के साथ सबकुछ बदल रहा है। ऐसे में अपनी कलाओं में थोड़ा बदलाव लाना जरूरी है। परंपरागत कलाओं को बरकरार रखते हुए प्रोडक्ट में नयापन लाने का प्रयास होगा।