बिहार के इस अस्पताल के आइसीयू वार्ड में बेड पर मरीजों के बदले कार्टन, वेंटिलेटर पढ़ रहे किताबें

सदर अस्‍पताल के आइसीयू का नजारा देख लें तो हैरान रह जाएंगे। इस आइसीयू वार्ड में बेड पर मरीजों के बदले रदी कार्टन दिखेंगे और वेंटिलेटर पर मरीजों के बदले किताबें। अस्‍पताल प्रशासन ने इसे स्‍टोर रूम बना रखा है।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 12:04 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 12:04 PM (IST)
बिहार के इस अस्पताल के आइसीयू वार्ड में बेड पर मरीजों के बदले कार्टन, वेंटिलेटर पढ़ रहे किताबें
आरा सदर अस्‍पताल का आइसीयू वार्ड। जागरण

आरा, जागरण संवाददाता। Bihar CoronaVirus News: बिहार में कोरोना की दूसरी लहर में मरीजों के लिए अस्‍पताल और अस्‍पतालों में बेड कम पड़ने लगे हैं। ऐसी हालत में आप अगर भोजपुर जिले के आरा सदर अस्‍पताल के आइसीयू का नजारा देख लें तो हैरान रह जाएंगे। इस आइसीयू वार्ड में बेड पर मरीजों के बदले रदी कार्टन दिखेंगे और वेंटिलेटर पर मरीजों के बदले किताबें। अस्‍पताल प्रशासन ने इसे स्‍टोर रूम बना रखा है। आरा सदर अस्पताल में बंद पड़े इकलौते आइसीयू वार्ड की बदहाल तस्वीर सामने आई है। यह नजारा तब दिखा जब दैनिक जागरण की टीम अपने अभियान के तहत सदर अस्पताल में पड़ताल करने पहुंची। बदहाली और रख-रखाव की बदतर स्थिति सिस्टम पर सवाल खड़ी कर रही है।

गोदाम जैसा नजर आ रहा है अंदर का नजारा

विभाग एक तरफ जहां, दक्ष स्वास्थ्य कर्मियों के अभाव का रोना रोकर बंद पड़े आइसीयू वार्ड को चालू नहीं कर पा रहा है, वहीं दूसरी तरफ  अत्याधुनिक संसधानों के रख-रखाव के प्रति घोर लपरवाही पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है। वार्ड के अंदर का नजारा पूरी तरह गोदाम जैसा नजर आ रहा है।

2014 में ही स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने किया था उद्घाटन

मालूम हो कि दो अक्टूबर  2014 को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह ने सदर अस्पताल, आरा के ओपीडी कक्ष के ऊपरी तल्ले पर छह बेड के आइसीयू वार्ड का उद्घाटन किया था। इसके बाद मरीजों में राहत की उम्मीद जगी थी। लेकिन, स्थिति यह है कि यह आइसीयू वार्ड कोरोना काल की इस घड़ी में महज शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। सदर अस्पताल के आइसीयू वार्ड में पड़े छह वेंटिलेटर का कोई इस्‍तेमाल नहीं हो रहा है।

मरते हैं मरीज, स्‍वजन करते हैं हंगामा

हालत यह है कि अस्‍पताल में सांस की तकलीफ की वजह से पिछले एक महीने में कई मरीज अपनी जान गंवा बैठे हैं। मरीजों की मौत के बाद इलाज में लापरवाही का आरोप लगा कर कम से कम चार बार मरीजों के स्‍वजनों ने खूब हंगामा किया है। मारपीट और तोड़फोड़ की है, लेकिन यहां स्थिति बदल नहीं रही है।

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