Bihar Coronavirus ALERT ! इंटरवल के बाद जैसे फिल्म रफ्तार पकड़ती है, संक्रमण दर वैसा ही अहसास दे रही
देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कोरोना तेजी से पांव पसारने लगा है। पिछले सात दिनों में 7825 संक्रमित मिल चुके हैं। हर दिन का आंकड़ा पिछले दिन से अधिक है। गुरुवार को संख्या 1911 रही। यह स्थिति गत अक्टूबर के बाद आई है।
पटना, आलोक मिश्र। Bihar Coronavirus ALERT ! आफ्टर इंटरवल बिहार में भी कोरोना उत्पात मचाने लगा है। ये दूसरी लहर वाला है या पहली, अभी तक बिहार में यह तय नहीं हो पाया है, लेकिन फैलने की इसकी तेजी डराने वाली ही है। इंटरवल के बाद जैसे फिल्म रफ्तार पकड़ती है, संक्रमण दर वैसा ही अहसास दे रही है। स्टेशनों पर बाहर से उमड़ती भीड़ से इंटरवल के पहले वाले दृश्य ताजा हो रहे हैं।
महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों से आती ट्रेनों पर विशेष निगाहें हैं। हालांकि पहले की तरह ही इस बार भी बिहार दहशत से दूर, बस केवल दहशत की चर्चा में ही मशगूल है। सरकारी डंडे के डर से ही मास्क चेहरे पर चढ़ रहा है और निगाहें फिरते ही उतर रहा है, लेकिन कुछ भी हो इस सप्ताह चर्चा में अन्य विषयों से ज्यादा कोरोना ही रहा है।
देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी कोरोना तेजी से पांव पसारने लगा है। पिछले सात दिनों में 7,825 संक्रमित मिल चुके हैं। हर दिन का आंकड़ा पिछले दिन से अधिक है। गुरुवार को संख्या 1,911 रही। यह स्थिति गत अक्टूबर के बाद आई है। इस बात को लेकर हर तरफ मजाक भी हो रहा है कि चुनाव वाले राज्यों में कोरोना नहीं जाता और जहां नहीं होता है वहां उत्पात मचाता है। इस पर बिहार के चुनावी दिन काफी कुछ प्रकाश डालते हैं। बिहार में चुनाव के दौरान कोरोना काफी शांत रहा। लेकिन होली के बाद देश के अन्य राज्यों की तरह कोरोना यहां भी रंग दिखाने लगा है। इसमें सबसे ज्यादा योगदान राजधानी पटना का है, जहां नौ महीने पहले 27 जुलाई को 522 मरीज मिले थे, जिसकी बराबरी सात अप्रैल को हुई। मरीजों की बढ़ती संख्या के अनुपात में अब अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे हैं और कंटेनमेंट जोन की संख्या बढ़ने लगी है। मास्क को लेकर सख्ती बरती जा रही है। लोग कोरोना की इस दूसरी लहर को लेकर चर्चा तो कर रहे हैं, लेकिन बचाव के प्रति अभी उतने गंभीर नहीं हो पाए हैं जितना पहले थे।
कोरोना के कारण गत वर्ष बिहार लौटते लाखों पैरों की कहानी से तो अब पूरा विश्व वाकिफ है। उस समय अधिकांश ने कसमें खाईं थी कि रूखी-सूखी खाएंगे लेकिन वापस नहीं जाएंगे। राज्य सरकार ने भी उनको यहां उनका हुनर तराशने के अवसर उपलब्ध कराने की कवायद की थी, लेकिन बाद में ज्यादातर को अपनी शहरी जिदंगी ही पसंद आई और वे लौट गए। इस बार फिर बिहार आने वाली ट्रेनें ऐसे ही अपनों से भरी हैं। सरकारी निगाहें इन ट्रेनों पर हैं। महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात आदि से लौटने वाले बढ़ रहे हैं क्योंकि वहां भी अब उनके पास काम नहीं है। इनके साथ कोरोना के भी लद कर आने की पूरी आशंका है। सरकार इसी को लेकर सतर्क है। स्टेशन पर जांच के अलावा पंचायत स्तर पर फिर से क्वारंटाइन सेंटर खुलने लगे हैं, ताकि कोरोना के प्रसार को रोका जा सके। इसी रोकथाम के कारण स्कूल और अन्य शैक्षिक संस्थान तक बंद कर दिए गए हैं। इस बात को लेकर ये दोनों तबके विरोध पर उतारू हैं कि आखिर हम पर ही सख्ती क्यों?
बिहार में चुनाव देख चुका कोरोना राजनीतिक रूप में भी सक्रिय है, जिससे सबसे ज्यादा संक्रमित लोक जनशक्ति पार्टी है। चुनाव के समय लोजपा के चिराग पासवान की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अदावत तो जगजाहिर है। किसी भी हाल में नीतीश को कुर्सी से उतारने पर उतारू चिराग की कोशिशों का उस समय परिणाम यह निकला था कि गद्दी तो बच गई, लेकिन नीतीश की सीटें 71 से घटकर 43 ही रह गई थीं। अपने सहयोगी भाजपा से कम सीटें पाने वाले नीतीश कुमार पलटवार करने से नहीं चूके।
पहले तो बड़े नेताओं को अपनी ओर खींच कर लोजपा को खोखला किया और अब मंगलवार को विधानसभा में लोजपा के एकमात्र नामलेवा विधायक राजकुमार सिंह को अपने पाले में मिलाकर न केवल अपनी संख्या बढ़ाई, बल्कि लोजपा को हाशिए पर धकेल दिया। इससे पहले विधान परिषद में लोजपा की इकलौती सदस्य नूतन सिंह भाजपा में शामिल हो गई थीं। अब सुनने में आ रहा है कि चुनाव में भाजपा छोड़ लोजपा के टिकट पर लड़ने वालों के प्रति भाजपा भी नर्म हो चली है। बिना लोजपा की सदस्यता ग्रहण किए चुनाव लड़ने वालों और चुनाव बाद किसी भी कार्यक्रम में सक्रिय भागीदारी न करने वालों को फिर से पार्टी में लाने की चर्चा है। ऐसा होता है तो भाजपाइयों के जरिये अपनी पार्टी का विस्तार करने का मंसूबा पाले चिराग को यह चोट कोरोना की दूसरी लहर से भी भारी पड़ेगी। देखना होगा कि वे इससे कैसे निपटते हैं।
[स्थानीय संपादक, बिहार]