Lalu Yadav Bail: जेल में रहें या बाहर आएं, हमेशा प्रासंगिक रहे लालू; आज भी पूरी नहीं हुई जमानत की उम्मीद
Lalu Prasad Yadav Bail आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अभी जेल की सजा काट रहे हैं। उनके जमानत पर बाहर आने की उम्मीद आज भी पूरी नहीं हुई। झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को लालू को जमानत देने से इनकार कर दिया। वे बिहार की राजनीति में हमेशा प्रासंगिक रहे हैं।
पटना, अरविंद शर्मा। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की हस्ती में कभी कमी नहीं आई। चाहे सत्ता में रहें या विपक्ष में। चारा घोटाले (Fodder Scam) के आरोपों में वे जेल में रहें या जमानत (Bail) पर बाहर आएं, हमेशा प्रासंगिक बने रहे। अभी बीमारी के बीच रांची हाईकोर्ट द्वारा जमानत अर्जी को खारिज किए जाने को लेकर वे चर्चा में हैं। रांची हाईकोर्ट (Ranchi High Court) में शुक्रवार को उनकी जमानत पर सुनवाई हुई। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) ने लालू की जमानत की उम्मीद जताई थी, लेकिन नाउम्मीदी हाथ लगी। यह लालू परिवार (Lalu Family) और आरजेडी को बड़ा झटका है।
बड़े कद-पद के नेताओं के बीच बनाई जगह
लालू प्रसाद यादव पहली बार तीन दशक पहले 1990 में बिहार का जब मुख्यमंत्री बने तो शुरू के कुछ दिनों में माना जाने लगा कि वे ज्यादा दिनों तक हैसियत में नहीं रह पाएंगे। इसकी वजह थी कि तब बिहार में जगन्नाथ मिश्रा, सत्येंद्र नारायण सिंह, भागवत झा आजाद और रामाश्रय प्रसाद सिंह सरीखे कांग्रेस के बड़े कद-पद के नेताओं का बोलबाला था। इन सबके सामने लालू की हैसियत बहुत छोटी थी। किंतु समय के साथ लालू ने खुद को निखारा और अपनी राजनीति को सत्ता के उस शीर्ष पर ले गए, जहां से उनके आसपास भी कोई नहीं दिखने लगा।
2005 में हारे तो रेल मंत्री बने और छा गए
साल 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में जब नई सरकार का गठन हुआ तो लालू की करिश्माई राजनीति को थोड़े समय के लिए ग्रहण जरूर लगता दिखा, लेकिन तब लालू ने बिहार के बदले दिल्ली को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और वहां भी रेल मंत्री के रूप में खासे चर्चित होने लगे। घाटे में चल रहे रेलवे का पहली बार मुनाफे का बजट बनाया और छा गए।
आज भी बने हुए हैं विपक्ष की धुरी
बिहार के एक बड़े वोटबैंक पर कब्जे के साथ राजनीति में लालू प्रसाद यादव का मुकाबला आज भी नहीं है। नीतीश कुमार के सापेक्ष अगर राजनीति में किसी की तुलना होती है तो वह लालू हैं। वे संपूर्ण विपक्ष की धुरी बने हुए हैं। यही कारण है कि सत्ता से हटने के बाद भी कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी व मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत तमाम दलों की राजनीति लालू की कृपा पर ही टिकी रहती है।