खुलासा: शराब से तौबा करने वालों में नंबर वन बना बिहार, गुजरात को पीछे छोड़ा

शराबबंदी के बाद बिहार में शराब पीने वालों की संख्‍या में उल्‍लेखनीय कमी आई है। शराबबंदी का सबसे ज्यादा लाभ सामाजिक तौर पर हुआ है। अपराध का ग्राफ भी घटा है।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 21 Feb 2019 07:50 PM (IST) Updated:Fri, 22 Feb 2019 11:24 PM (IST)
खुलासा: शराब से तौबा करने वालों में नंबर वन बना बिहार, गुजरात को पीछे छोड़ा
खुलासा: शराब से तौबा करने वालों में नंबर वन बना बिहार, गुजरात को पीछे छोड़ा

पटना [राज्य ब्यूरो]। बिहार में शराब पर करीब तीन वर्ष पहले लगी रोक के अच्छे नतीजे दिखने लगे हैं। आम बिहारी ने मान लिया है कि शराब एक बुरी बला है। इससे दूरी ही बेहतर। इस सोच ने शराब को कई दशक पहले 'ना' करने वाले गुजरात तक को काफी पीछे छोड़ दिया है। हाल ही में कराए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि गुजरात की तुलना में बिहार के लोगों ने शराब पीना बेहद कम कर दिया है। रोक के बाद बिहार में 1.7 प्रतिशत लोग चोरी छिपे शराब पी रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गुजरात में ऐसे लोगों की संख्या आज भी 7.2 प्रतिशत है। सर्वे दिसंबर 2017 से अक्टूबर 2018 के बीच हुआ। जिसे ऑल इंडिया इंस्‍टीच्‍यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर ने किया।

बिहार में पीने वालों की संख्या घटी

सर्वे से यह जानकारी सामने आई है कि जिन राज्यों में अल्‍कोहल पर रोक है,  वहां पर शराब का सेवन तो हो रहा है, लेकिन पीने वालों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। रिपोर्ट में साफ किया गया है कि बिहार ने अप्रैल 2016 में शराब को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया। इसके पहले यहां बड़ी संख्या लोग शराब पी रहे थे, लेकिन प्रतिबंध के बाद अब यहां महज 1.7 प्रतिशत लोग ही चोरी-चुपके शराब पी रहे हैं। ऐसे लोग अब कभी कभी शराब पीने वाले लोगों की श्रेणी में आ गए हैं।

झारखंड में 18.9 लोग पी रहे शराब

सर्वेक्षण के आंकड़ों की मानें तो गुजरात में 7.2 प्रतिशत, बिहार के पड़ोसी झारखंड में 18.9 और पश्चिम बंगाल में 38 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं। सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि गुजरात के मुकाबले में बिहार में कम लोगों ने शराब चखी है। आंकड़ों पर भरोसा करें तो बिहार में 7.4 फीसदी लोगों ने कभी न कभी शराब का सेवन किया है, जबकि गुजरात में कभी न कभी शराब का सेवन करने वालों की संख्या तकरीबन 8.1 प्रतिशत के करीब है।

मंत्रालय ने जारी की है रिपोर्ट

बता दें कि इस अध्ययन को अभी हाल ही में सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय ने जारी की है। सर्वे से यह बात जरूर सामने आई कि जिन राज्यों में अल्कोहल पर प्रतिबंध है, वहां पर भी लोग चोरी-छिपे शराब पी रहे हैं। 

ऐसे लगा बिहार में शराब पर प्रतिबंध

2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान एक सभा में एक महिला ने नीतीश कुमार की सभा में खड़े होकर शराब पर रोक लगाने की मांग की। नीतीश कुमार ने उस सभा में एलान किया कि यदि बिहार में उनकी सरकार बनी तो शराब को प्रतिबंधित किया जाएगा। सरकार बनने के साथ ही एक अप्रैल 2016 को पहले देसी और इसके चार दिन बाद 5 अप्रैल 2016 को पूरी तरह से बिहार में शराब प्रतिबंधित कर दी गई।

जागरूक करने को चला अभियान

बिहार में शराबबंदी लागू करने वाले मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने न केवल कानून बनाया, बल्कि इसे प्रभावी बनाने और लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान भी शुरू किया। शिक्षा विभाग की मदद से गांव-गांव, शहर-शहर नुक्कड़ नाटक, शराब पीने का  नुकसान बताते नारे गूंजे। दीवारों पर शराब को बुरी लत बताते नारे लिखे गए। शराबबंदी अभियान की सफलता के लिए 11 हजार किमी से ज्यादा विश्व की सबसे लंबी मानव कड़ी बनाई गई, जिसमें करीब चार करोड़ लोग शामिल हुए।

शराब कारोबारियों ने बदले धंधे

कभी बिहार में शराब का कारोबार करने वाले लोगों ने शराबबंदी के बाद अपने काम-धंधे बदले। जहां शराब की दुकानें हुआ करतीं थीं, वहां रोक के बाद दूध, टाइल्स, हार्डवेयर, जूते, दवा आदि की दुकानें तथा आइसक्रीम पार्लर व होटल नजर आने लगे।

लोगों के जीवन में आए बड़े बदलाव

आम लोगों की यह धारणा बन गई है कि शराबबंदी का सबसे ज्यादा लाभ सामाजिक तौर पर हुआ है। महिलाओं में खुशहाली बढ़ी है। महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा और पारिवारिक कलह में कमी आई है। अपराध का ग्राफ भी घटा है। 

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