बिहार में सरकारी योजनाओं से मिली बड़ी राहत, महिलाओं-बच्चों की थाली पर अधिक असर

बिहार में पांच महीने का मुफ्त राशन उज्ज्वला योजना के तहत दी गई रसोई गैस और केंद्र-राज्य सरकार की ओर से दिए गए नकद के चलते गरीबों की हालत बदतर होने से बच गई। महिलाएं और छोटे बच्चे इससे अधिक प्रभावित हुए।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sun, 09 May 2021 06:05 AM (IST) Updated:Sun, 09 May 2021 06:05 AM (IST)
बिहार में सरकारी योजनाओं से मिली बड़ी राहत, महिलाओं-बच्चों की थाली पर अधिक असर
बिहार के सीएम नीतीश कुमार व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। जागरण आर्काइव।

राज्य ब्यूरो, पटनाः कोरोना ने हर तबके पर बुरा असर डाला। फिर भी गांव और गरीब इससे अधिक तबाह हुए। अच्छी बात यह रही कि पांच महीने का मुफ्त राशन, उज्ज्वला योजना के तहत दी गई रसोई गैस और केंद्र-राज्य सरकार की ओर से दिए गए नकद के चलते गरीबों की हालत बदतर होने से बच गई। महिलाएं और छोटे बच्चे इससे अधिक प्रभावित हुए। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इनकी थाली में पौष्टिक भोेज्य सामग्रियों की कमी रही। इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर के सर्वे के नतीजे सरकारी योजनाओं की महत्ता को चिह्नित कर रहे हैं। साथ में यह भी बता रहे हैं कि राहत की योजनाओं में भी रसूखदार लोग अपने खास लिए रास्ता निकाल ही लेते हैं।

महिलाओं और बच्चों की हालत एक जैसी

सर्वे में पोषण की जांच के लिए आठ मानक तय किए गए थे-अनाज और आलू, चना और अन्य दाल, दूध और दूध उत्पाद, अंडा, मछली-मटन, हरी सब्जी, फल-पीला फल एवं अन्य मौसमी फल। तय किया गया था कि आठ में से तीन-चार सामग्री भी किसी की थाली में उपलब्ध हो तो उसे पोषक भोजन की श्रेणी में रखा जाएगा। मगर, गांव के गरीबों के बीच इन खुशनसीब लोगों की संख्या न के बराबर पाई गई। दिलचस्प यह है कि सर्वे में शामिल सभी सामाजिक श्रेणियों की महिलाओं और बच्चों की हालत एक जैसी पाई गई। सर्वे की शुरुआत सामान्य प्रक्रिया के तहत जनवरी-मार्च 2020 में की गई थी। कोरोना का दौर आया।  बाद के सर्वे में यह तथ्य अपने आप जुड़ गया कि कोरोना ने गरीबों की थाली को किस हद तक प्रभावित किया है। सर्वे के नतीजे जिस वक्त आए, कोरोना का दूसरा दौर शुरु हो गया है। साथ में लाॅकडाउन भी है। मुफत राशन की सुविधा दी गई है। नकद की चर्चा नहीं है।

रसूखदारों का असर

सर्वे का एक हिस्सा बताता है कि सरकारी राहत योजना के एक हिस्से का मुंह रसूखदार लोग अपनों की ओर मोड़ देते हैं। ऐसी शिकायतें प्रतिभागियों की ओर से मिली कि रसूखदार लोग अपने लोगों को अधिक राहत सामग्री देकर उपकृत करते हैं। हां, 92 फीसद प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि उन्हें पांच महीने तक मुफत अनाज मिला। संभवतः बाकी आठ फीसद अनाज रसूख वालों ने अपनों को दे दिया। 81 फीसद लोगों के खाते में जन धन और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत रुपये गए। उज्जवला योजना के जरिए बमुष्किल 53 फीसद योग्य परिवारों को रसोई गैस दी गई। केंद्र और राज्य सरकार की पांच राहत योजनाओं में से औसत चार योजनाओं का लाभ हरेक ग्रामीण परिवार को मिला। 52 फीसद परिवारों को मिड डे मील की भी राशि मिली।

आइजीसी ने किया था सर्वे

द इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर की ओर से प्रायोजित इस सर्वे का संयोजन जाकिर हुसैन, शाष्वत घोष और मौसमी दत्ता ने किया। इन जिलों में हुआ सर्वेः नालंदा, सहरसा, बेगूसराय, मुजफफरपुर, पूर्वी चंपारण एवं कटिहार। पहला सर्वे-जनवरी-मार्च, दूसरा-अक्टूबर-नवम्बर 2020। कुुल 2250 महिलाओं की भागीदारी रही। पहला सर्वे आमने सामने हुआ, जबकि दूसरे के लिए मोबाइल का सहारा लिया गया। सर्वे में 36 वर्ष से कम उम्र की महिलाएं शामिल हुईं। उनसे तीन महीने से तीन साल के बच्चे के खानपान के बारे में पूछा गया। 

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