बड़ी पहल : अब पटना को चकाचक करेगा कचरा, 'इको फ्रेंडली' बनेंगी सड़कें व गलियां ...आपको हैरान कर देगी योजना

बिहार में स्‍वच्‍छता की पड़ी पहल की जा रही है। जिस कचरा के कारण पटना स्‍वच्‍छता रैंकिंग में पीछे चला गया है वही कचरा अब शहर को चकाचक करेगा। जी हां इससे इको फ्रेंडली सड़कें व गलियां बनाई जाएंगी। क्‍या है योजना जानिए।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 28 Jan 2021 08:01 AM (IST) Updated:Thu, 28 Jan 2021 09:36 AM (IST)
बड़ी पहल : अब पटना को चकाचक करेगा कचरा, 'इको फ्रेंडली' बनेंगी सड़कें व गलियां ...आपको हैरान कर देगी योजना
बिहार की राजधानी पटना की एक सड़क। फाइल तस्‍वीर।

पटना, जागरण संवाददाता। पटना को जिस कचरे ने स्वच्छता रैंकिंग में अंतिम पायदान पर पहुंचाया, अब वही इसे सुधारेगा। कचरा का उपयोग कर न केवल शहर को चकाचके किया जाएगा, बल्कि राजधानी की गलियां और सड़कें अब कचरे से बने पेवर्स ब्लॉक से 'इको फ्रेंडली' बनेंगी। भवन निर्माण सामग्री के मलबे में प्लास्टिक मिलाकर 'इको ब्रिक्स' बनाया जाएगा। पटना नगर निगम की पहल पर यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने भी मदद के हाथ बढ़ाए हैं। गर्दनीबाग स्वच्छता केंद्र में इसके लिए मशीन लगाई जाएगी।  पहले चरण में पेवर्स ब्लॉक बनेंगे। टूटे भवनों से निकलने वाला मलबा बर्बाद नहीं होगा। इसके साथ ही हर दिन घरों से निकलने वाली प्लास्टिक का भी इसमें उपयोग किया जाएगा।

इको ब्रिक्स में 30 फीसद प्लास्टिक

70 फीसद भवन निर्माण का कचरा और 30 फीसद प्लास्टिक मिलाकर 'इको ब्रिक्स' बनाई जाएंगी। भवनों को ऊंचा करने, तोड़कर नए भवन का निर्माण करने के बाद मलबा निकलता है। इसका इस्तेमाल नहीं हो पाता है। पीसीसी सड़कों का मलबा भी इसमें इस्तेमाल किया जा सकेगा। नगर आयुक्त हिमांशु शर्मा ने बताया कि यूएनडीपी के प्रोग्राम ऑफिसर अरविंद कुमार के सहयोग से इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। पहले चरण की सफलता के बाद रामचक बैरिया में बड़ा प्लांट लगेगा। गर्दनीबाग स्वच्छता केंद्र में प्लास्टिक की री-साइकिलिंग होती है। कई मशीनें लगी हुई हैं। शहर में कचरा चुनने वाले केंद्र से जुड़े हुए हैं। उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है। हर सप्ताह निकलता है हजार टन टूटे भवनों का मलबा

नगर निगम के अनुसार राजधानी में हर सप्ताह एक हजार टन से अधिक टूटे भवन का मलबा निकलता है। प्लांट लगने के बाद इसका सदुपयोग किया जा सकेगा। मैनपुरा के सुदामा कुशवाहा ने बताया कि पुराने मकानों को तोड़कर नया बनवाया है। टूटे भवन का मलबा सिरदर्द बन गया है। सिंगल-यूज प्लास्टिक पर रोक के बाद भी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है।

सामान्य पेवर्स ब्लॉक से ज्यादा होती है क्षमता

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) के प्रो. संजीव सिन्हा के अनुसार कचरे से तैयार पेवर्स ब्लॉक सामान्य की तुलना में कम क्षमता का नहीं होता है। प्लास्टिक के उपयोग के कारण यह हल्का और लचीला होता है। ज्यादा वजन पड़ने के बाद भी टूटने के मामले कम देखने को मिलते हैं। सामान्य की तुलना में इसकी लागत भी कम है। इस तकनीक का उपयोग कर कचरे का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

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