बिहारः एनएमसीएच में टला बड़ा हादसा, आधा घंटा और देर होती तो कई कोरोना संक्रमित गंवा देते जान

नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में शनिवार को बड़ा हादसा होने से टल गया। अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर एक बाद एक खत्म होता जा रहा था जबकि 80 बेड मरीजों से भरे थे। राहत की बात ये रही कि इसी बीच ऑक्सीजन सिलेंडर की 50-50 की दो खेप अस्पताल भेजी गई।

By Akshay PandeyEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 04:48 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 04:48 PM (IST)
बिहारः एनएमसीएच में टला बड़ा हादसा, आधा घंटा और देर होती तो कई कोरोना संक्रमित गंवा देते जान
पटना एनएमसीएच में शनिवार को बड़ा हादसा टल गया। प्रतीकात्मक तस्वीर।

अहमद रजा हाशमी, पटना सिटी: राजधानी स्थित नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में शनिवार को बड़ा हादसा होने से टल गया। अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर एक बाद एक खत्म होता जा रहा था, जबकि 80 बेड मरीजों से भरे थे। राहत की बात ये रही कि इसी बीच ऑक्सीजन सिलेंडर की 50-50 की दो खेप अस्पताल भेजी गई। अगर ऐसा न होता तो बड़ा हादसा हो सकता था। 

सर, केवल सात सिलेंडर बचा है...

दरअसल, पूरी रात न सोने पाने की थकान और चिड़चिड़ापन अधीक्षक के चेहरे पर साफ झलक रहा था। व्यवस्था से परेशान अधीक्षक, प्राचार्य, उपाधीक्षक सभी बेबस नजर आ रहे थे। ऑक्सीजन सिलेंडर एक के बाद एक खत्म होता जा रहा था। बदहवास दिख रहे अस्पताल प्रबंधक ने बताया कि सर केवल सात सिलेंडर बचा है। मेडिसिन विभाग के कोरोना वार्ड में सभी 80 बेड मरीजों से भरा हुआ है। ऑक्सीजन जेनरेशन प्लांट पर बैठे प्रशासनिक अधिकारी ऑक्सीजन सिलेंडर देने के नाम पर संदेह व्यक्त कर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। सर ऑक्सीजन की व्यवस्था जल्दी कीजिए।

सुबह-सुबह घनघनाने लगे फोन

शनिवार की सुबह आठ बजे ही एनएमसीएच में कोहराम मचा था। अधीक्षक डॉ. विनोद कुमार सिंह ने यहां-वहां कई अधिकारियों को फोन किया। सर प्लीज ऑक्सीजन किसी भी क्षण खत्म हो सकता है। इन्हें डर था कि ऐसा हुआ तो गोरखपुर अस्पताल की घटना हो जाएगी। लाशें गिनना मुश्किल हो जाएगा। फिर तो व्यवस्था की सूली पर अस्पताल के जिम्मेदार ही लटकाए जाएंगे।

काफी जतन के बाद मिली राहत भरी खबर

खैर, काफी जतन के बाद खबर मिली कि एनएमसीएच के लिए 50-50 सिलेंडर की दो खेप ऑक्सीजन भेजी गई है। सुबह दस बजे से शिशु रोग विभाग में अध्यक्ष के नाते अधीक्षक डॉ. विनोद कुमार सिंह ने डॉक्टरों के साथ ऑक्सीजन को लेकर मंथन किया। फिर 11:30 बजे से अधीक्षक के नाते अधीक्षक कक्ष में बैठे प्राचार्य डॉ. हीरा लाल महतो, अधीक्षक डॉ. विनोद कुमार सिंह, उपाधीक्षक डॉ. गोपाल कृष्ण, उपाधीक्षक डॉ. सरोज कुमार, अस्पताल प्रबंधक प्रणव कुमार व अन्य के साथ परेशान दिखे। अस्पताल के सभी 160 बेड फुल हो चुके थे। आइएएस, आइपीएस, नेता, अधिवक्ता से लेकर चपरासी और जानने वालों तक के फोन आ रहे थे कि मरीज के लिए एक बेड का इंतजाम कर दीजिए। जवाब था कि हम क्या करें। एक भी बेड खाली नहीं। किसी भर्ती मरीज को बेड से हटा तो नहीं सकता। मरीज के ठीक होने या फिर मरने के बाद बेड खाली होने का इंतजार होता रहा।

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