दो सीट बिहार में भाजपा, जदयू, राजद और कांग्रेस का समीकरण करेगी प्रभावित, सामने होगी असली लोजपा
बिहार की दो सीटों के परिणाम से राजनीतिक समीकरण पूरी तरह प्रभावित होगा। इससे यह भी पता चलेगा कि जनता लोजपा के किस गुट (चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस) को असली मानती है। उप चुनाव तारापुर और कुशेश्वरस्थान में होंगे।
अरुण अशेष, पटना: बिहार में विधानसभा की दो सीटों पर होने वाले उप चुनाव को लेकर यूं ही नहीं सभी दलों की धड़कन बढ़ी हुई है। दोनों सीटों के परिणाम से राजनीतिक समीकरण पूरी तरह प्रभावित होगा। इससे यह भी पता चलेगा कि जनता लोजपा के किस गुट (चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस) को असली मानती है। उप चुनाव तारापुर और कुशेश्वरस्थान में होंगे। दोनों सीटों पर लोजपा के उम्मीदवार थे। हालांकि अभी भी तारीख घोषित नहीं हुई है। फिर भी राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ी हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बारी-बारी से कुशेश्वरस्थान और तारापुर की यात्रा कर चुके हैं। हालांकि यात्रा का घोषित कार्यक्रम कुछ और था। सरकार के कई मंत्री बराबर दोनों क्षेत्रों में जा रहे हैं।
कैसे बदलेगा समीकरण
विधानसभा के बीते चुनाव में दोनों सीटों पर जदयू की जीत हुई थी। तारापुर में राजद और कुशेश्वरस्थान में कांग्रेस के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे। दोनों विधायकों का निधन हो गया। 243 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल 241 विधायक हैं। सरकार को 126 विधायकों (भाजपा-74, जदयू-43, वीआइपी-04, हम-04 और निर्दलीय-01) का समर्थन हासिल है। विपक्षी दलों के विधायकों की संख्या 115 (राजद 75, कांग्रेस 19, भाकपा माले 12, माकपा-02, भाकपा 02, एमआइएम-05) है। सीधा हिसाब लगाएं तो दो सीटों की हार-जीत से सरकार की सेहत पर फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि तब भी सरकार को 126 विधायकों का समर्थन हासिल रहेगा। विपक्ष भी दो सीट हासिल कर 117 पर पहुंचेगा। तब भी वह सरकार बनाने का दावा नहीं कर सकता है। इसके लिए 122 विधायकों का समर्थन चाहिए। बेशक महज दो सीट जीत लेने से विपक्ष तुरंत सरकार नहीं बना पाएगा। फिर भी विपक्ष का मनोबल इतना बढ़ेगा कि वह सरकार के लिए परेशानी पैदा कर दे।
चिराग को तय करना होगा रुख
यह तय है कि केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस अपने गुट का उम्मीदवार नहीं खड़ा करेंगे। मगर, चिराग पासवान को तय करना पड़ेगा कि वह एनडीए या महागठबंधन में किसका साथ देंगे। कुशेश्वरस्थान में लोजपा को 9.79 फीसद वोट मिला था। करीब पांच फीसद वोटों के अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार की हार हुई थी। तारापुर में लोजपा को 6. 45 फीसद वोट मिला था। जदयू की जीत करीब चार फीसद वोटों के अंतर से हुई थी। बेशक लोजपा इन दोनों क्षेत्रों में जीत की स्थिति में नहीं है। पर, उसके समर्थक वोट परिणाम प्रभावित कर सकते हैं। चिराग अगर उम्मीदवार खड़े करते हैं तो भाजपा के करीब आने की तमन्ना शायद पूरी नहीं होगी। अगर वे उम्मीदवार खड़े करते हैं तो पार्टी के चुनाव चिन्ह का मामला भी सामने आएगा। क्योंकि दोनों गुट खुद को असली लोजपा बता कर चुनाव चिन्ह का उपयोग कर रहे हैं।
मांझी का बढ़ जाएगा भाव
सरकार के सहयोगी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पास चार विधायक हैं। फिलहाल वह भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठा रहे हैं। कह रहे हैं कि वे राम को काल्पनिक पात्र मानते हैं। मांझी के ऐसे वचन सुनकर भाजपा असहज महसूस कर रही है। भाजपा के नेता अपने ढंग से जवाब दे रहे हैं। लेकिन, राजनीति के जानकार मांझी के बदले व्यवहार में कुछ और देख रहे हैं। बहुत दूर की न सोचने वाले भी इतना जरूर समझ रहे हैं कि दो सीटों के परिणाम अगर सरकार के खिलाफ गए तो मांझी अपना भाव बढ़ाएंगे। साधारण बहुमत वाली सरकार में चार विधायक कम नहीं होते हैं।