RJD में 'ऑल इज नॉट वेल', लालू के लिए नई चुनौती बनी रघुवंश-जगदानंद की अदावत
तेजस्वी और तेजप्रताप के बीच विवाद के बाद अब राजद के दो वरिष्ठ नेताओं जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह के बीच की अदावत लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के लिए नई चुनौती है।
पटना [अरविंद शर्मा]। राजद और लालू परिवार के सामने नई परेशानी आ खड़ी हुई है। लोकसभा चुनाव के नतीजे ने तेजप्रताप एवं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच वर्चस्व की लड़ाई पर पानी तो डाल दिया, किंतु अब पुराने और बुजुर्ग नेताओं में ठन गई है। संगठन के कामकाज में अनुशासन के मसले पर दो पुराने नेताओं में अनबन शुरू हो गई है।
राजद के नए प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के तौर-तरीके पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह को रास नहीं आ रहे। बिना लाग-लपेट के रघुवंश ने कह दिया कि पार्टी ऐसे नहीं चलती है। कार्यकर्ताओं से कर्मचारियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता।
मौका भांपकर बिना भूमिका और संकोच के अपनी बात साफ-साफ रख देने के लिए मशहूर रघुवंश प्रसाद सिंह ने ऐसा क्यों बोला? महज दो दिन पहले राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के नामांकन के दौरान जिस रघुवंश ने पार्टी में अनुशासन को अनिवार्य बताया था, अब उन्हें ही नागवार क्यों लगने लगा?
दरअसल, रघुवंश को जगदानंद की कार्यशैली से कम, पार्टी में अपनी कम होती पूछ से ज्यादा परेशानी है। जगदानंद के हाथ में प्रदेश राजद की कमान आ जाने से रघुवंश असहज हो गए हैं।
उधर राजद में आए अचानक अनुशासन से प्रभावित कुछ नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को रघुवंश में रहनुमाई नजर आने लगी है। लोग उन तक नए नेतृत्व की शिकायतें लेकर जाने लगे हैं। दुखड़ा सुनाकर राहत की उम्मीद भी करने लगे तो रघुवंश को इसमें मौका नजर आया। बोल दिया हमला। बकौल रघुवंश, उनके पास लोग फरियाद लेकर आ रहे हैं तो वह चुप कैसे रह सकते हैं।
रघुवंश और जगदानंद की सियासी अदावत नई नहीं है। दोनों पहले भी टकराते रहे हैं। हालांकि खुलकर कभी सामने नहीं आए। किंतु अंदर की अदावत से लालू भी वाकिफ हैं। फिर भी उनकी ओर से दोनों को एक करने की कभी कोशिश नहीं की गई। यह लालू की राजनीति की स्टाइल हो सकती है। किंतु ताजा विवाद से राजद के नुकसान की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। लालू जेल में हैं और अभी पार्टी में एकता की अत्यंत जरूरत है।
दोनों में समानताएं भी काफी
रघुवंश और जगदानंद में विरोध के बावजूद कुछ समानताएं भी हैं। दोनों की बिरादरी एक है। दोनों का समाजवाद से गहरे ताल्लुकात हैं। दोनों खुद को लोहिया और कर्पूरी ठाकुर के शिष्य बताते हैं। यह अलग बात है कि जबसे बिहार की सियासत में लालू प्रसाद का अभ्युदय हुआ है, तभी से दोनों राजद के रंग-ढंग में ही ढले नजर आते हैं। कोई किसी से कम नहीं।
लालू परिवार के प्रति वफादारी साबित करने में दोनों एक-दूसरे से खुद को आगे दिखाते हैं। लालू ने भी दोनों की बराबर की। एक को केंद्र में मंत्री बनाया तो दूसरे को बिहार में अपनी सरकार में लगातार 15 साल मंत्री रखा।