पटनाः 22 मेडिकल अफसरों ने छोड़ी नौकरी, 65 हजार रुपये महीने को ऐसे बताया कम
प्रदेश को गांवों में काम करने के लिए डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं। आलम यह है कि योगदान करने के बाद एमबीबीएस डिग्रीधारी डॉक्टर अब काम नहीं संभाल रहे हैं। अब तक सिविल सर्जन कार्यालय दो बार वेटिंग लिस्ट से अभ्यर्थियों को नियुक्त कर चुका है।
जागरण संवाददाता, पटना : कोरोना और ब्लैक फंगस जैसी महामारी से जूझ रहे प्रदेश को गांवों में काम करने के लिए डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं। आलम यह है कि योगदान करने के बाद एमबीबीएस डिग्रीधारी डॉक्टर अब काम नहीं संभाल रहे हैं। अब तक सिविल सर्जन कार्यालय दो बार वेटिंग लिस्ट से अभ्यर्थियों को नियुक्त कर चुका है। बावजूद इसके अभी 22 पद रिक्त हैं। जिन 45 मेडिकल अफसरों की नियुक्ति हुई है, उनमें से 12 की अभी पोस्टिंग नहीं हुई। सोमवार को योगदान की अंतिम तिथि है। इसके बाद पता चलेगा कि वे पोटिंग वाले स्थान पर योगदान देंगे या नहीं। सिविल सर्जन डॉ. विभा कुमारी सिंह ने बताया, एक वर्ष की संविदा पर 67 मेडिकल अफसरों की नियुक्ति करनी थी। 91 अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लिया गया था। जैसे-जैसे डॉक्टर आ रहे हैं, उनकी पोटिंग कर योगदान के लिए भेजा जा रहा है।
क्या है मामला
डॉक्टरों की कमी से उबारने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक वर्ष की संविदा पर 65 हजार रुपये में मेडिकल अफसर नियुक्त करने का निर्देश दिया था। मेडिकल कॉलेजों समेत सभी जिलों में इनकी नियुक्ति की गई है। पटना में 67 मेडिकल अफसरों की नियुक्ति करनी है। करीब एक माह पहले 91 लोगों का साक्षात्कार लेकर 67 मेडिकल अफसरों का चयन किया गया था। उसमें से 54 ने निर्धारित तिथि 27 अप्रैल तक योगदान किया था। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में पोटिंग मिलने के बाद उनमें से 17 लोगों ने कार्यभार नहीं संभाला है। इसके बाद साक्षात्कार देने आए अन्य अभ्यर्थियों को दोबारा बुलाया गया। इसके बाद भी अब तक 45 ने ही योगदान दिया है। इनमें से 12 की पोस्टिंग होनी बाकी है। प्रखंड चिकित्सा प्रभारियों के अनुसार अभी तक तमाम जगह एक भी मेडिकल अफसर नहीं पहुंचे हैं।
इतनी रकम तो कार के पेट्रोल में लग जाएगी
मेडिकल अफसर के लिए साक्षात्कार देने वाले पीएमसीएच के एक छात्र ने बताया, कुल मिलाकर हाथ में 65 हजार रुपये ही आएंगे। इतनी राशि तो पेट्रोल व कार के मेंटेनेंस पर खत्म हो जाएगी। इसके अलावा आना-जाना और थकावट के कारण आप कोई दूसरा काम भी नहीं कर सकेंगे। उसमें भी एक वर्ष बाद दूसरी नौकरी ढूंढनी पड़ेगी। इससे अच्छा अभी से अपना क्लीनिक खोल लेना बेहतर होगा।
पीएमसीएच-एनएमसीएच में सभी पद भरे
डॉक्टर सुदूर गांवों में नहीं जाना चाहते हैं, भले ही वे पटना जिले के ही क्यों न हों। शहर में नौकरी के साथ क्लीनिक चलाने का भी पूरा समय मिलता है। यदि पीएमसीएच व एनएमसीएच जैसे मेडिकल कॉलेजों का ब्रांड मिल जाए तो प्रैक्टिस में चौगुनी बढ़ोतरी निश्चित है। यही कारण है कि पीएमसीएच व एनएमसीएच के सभी पदों पर डॉक्टरों ने निर्धारित तिथि के पहले या दूसरे दिन ही योगदान दे दिया।