नवादा में अब भी आहर-पोखर की जरूरत को नहीं मिल रही प्राथमिकता
नवादा जिले में इस वर्ष या यूं कहें कि चालू मौसम में औसत से 42 फीसद अधिक बारिश हुई है। डीएम यशपाल मीणा ने खुद ही यह बात कही है। फिर भी धान के खेती को पानी संकट से दो चार होना पड़ रहा है। ऐसा तब है जबकि जल संचय के लिए जलस्त्रोतों को मजबूत करने पर पिछले दो वर्षों के दौरान कुछ काम हुए हैं। आहर-पईन की उड़ाही-खोदाई की गई। फिर भी किसानों की समस्याएं कम नहीं हुई।
नवादा । नवादा जिले में इस वर्ष या यूं कहें कि चालू मौसम में औसत से 42 फीसद अधिक बारिश हुई है। डीएम यशपाल मीणा ने खुद ही यह बात कही है। फिर भी धान के खेती को पानी संकट से दो चार होना पड़ रहा है। ऐसा तब है जबकि जल संचय के लिए जलस्त्रोतों को मजबूत करने पर पिछले दो वर्षों के दौरान कुछ काम हुए हैं। आहर-पईन की उड़ाही-खोदाई की गई। फिर भी किसानों की समस्याएं कम नहीं हुई।
एक आंकड़े के मुताबिक नवादा जिले में 85 हजार हेक्टेयर में खरीफ फसल की खेती होती है। इसमें 76 हजार सिर्फ धान की खेती होती है। धान की खेती के बारे में कहा जाता है कि धान-पान नित्य स्नान यानी धान की फसल को काफी पानी की जरूरत होती है। धान की फसल तभी अच्छी होगी जब उसकी जड़ों का पर्याप्त पानी मिले। सर्व विदित है कि नवादा जिला में धान की खेती पूरी तरह से मानसून पर निर्भर है। जून से सितंबर के बीच निरंतर और अच्छी बारिश हुई तो धन की बंपर खेती होगी, अन्यथा..।
इन्हीं समस्याओं को देखते हुए सरकार का जोर रहा है कि मानसून के साथ कदमताल कर खेती की जाए। यानी जलवायु परिवर्तन को देखते हुए मौसम चक्र के अनुसार खेती हो। कृषि विज्ञान केंद्र सेखोदेवरा के वैज्ञानिक डा. रंजन कुमार सिंह कहते हैं कि वर्षा चक्र अनियमित होता जा रहा है। इस वर्ष औसत से अधिक बारिश रिकार्ड की गई है। अधिक बारिश भी किसानों को राहत नहीं दे पाई। हालात ये कि वर्तमान में पकरीबरावां, कौआकोल सहित जिले के बड़े हिस्से में धान की खेती को पानी की कमी हो रही है। किसान को वैकल्पिक जलस्त्रोत नहीं मिल रहा है। बिजली मोटर या डीजल पंप सेट के सहारे पटवन करना पड़ रहा है।
---------------------
आहर पोखर को अब भी किया जा रहा नजरअंदाज
नवादा ही नहीं संपूर्ण मगध क्षेत्र सतत सुखाड़ की श्रेणी वाला इलाका माना जाता रहा है। पानी की किल्लत यहां की पुरानी समस्या रही है। अंग्रेजों या जमींदारी प्रथा के समय में इस इलाके में जलसंचय के लिए आहर-पोखर को प्राथमिकता दी गई थी। प्राय: गांव में आहर पोखर हुआ करते थे। इन आहर-पोखर से छोटी-छोटी पईन निकाली गई थी। जिससे पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। लेकिन कालांतर में इसके अस्तित्व पर संकट आया। अतिक्रमण या सिस्टम की उदासीनता के कारण आहर पोखर सिमटते गये। अब जाकर विलुप्त हो रहे आहर-पोखर जैसे जलस्त्रोतों की खोदाई की जा रही है, लेकिन इसका पानी किसानों के खेतों तक कैसे पहुंचे इस जरूरत की ओर कायदे से ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
-----------------
पिछले दो दशक से आंदोलन
नवादा सहित दक्षिण बिहार के जिलों में आहर-पोखर को जिदा करने का अभियान पिछले दो दशक से चलाया जा रहा है। कई संस्थाएं इस दिशा में आगे आई। नवादा में आहर-पईन बचाओ अभियान के संस्थापक व संयोजक एमपी सिन्हा ने जनहित विकास समिति के बैनर तले इस आंदोलन की अगुवाई दो दशक से करते रहे हैं। बर्षाती सकरी नदी से निकली रजाईन पईन के जीर्णोद्धार के लिए किसानों को संगठित किया था। इस पईन से 52 गांवों के हजारों एकड़ खेत का पटवन हुआ करता था। कालांतार में अस्तित्व सिमट गया था। उनका अभियान रंग लाया। संबंधित गांवों के किसान संगठित हुए और गोमाम प्रथा (सामूहिक श्रमदान) के जरिए रजाइन पईन को जिदा करने का काम शुरू हुआ।
------
सरकार आई आगे
किसानों के आंदोलन व श्रमदान का असर रहा कि पिछले साल यानी 2020 में सरकार का ध्यान इस ओर गया। पईन के जीर्णोद्धार के लिए लघु जल संसाधन विभाग से डीपीआर बना। योजना को तीन पार्ट में स्वीकृति दी गई है। सरकार की यह नीति किसानों को रास नहीं आई है। एमपी सिन्हा कहते हैं कि आहर-पईन के कायाकल्प के लिए सोच की व्यापकता को ध्यान में रखने की जरूरत है। कायदे से इसे सीधे किसानों को जोड़ा जाना चाहिए।