नवादा के स्वतंत्रता सेनानी सिया राम शर्मा का निधन

पकरीबरावां प्रखंड के बलियारी गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा 105 वर्षीय सियाराम शर्मा का निधन शुक्रवार को हो गया। निधन से राजनीतिक कार्यकर्ताओं व आम बुद्धिजीवियों में शोक व्याप्त है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 12:04 AM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 12:04 AM (IST)
नवादा के स्वतंत्रता सेनानी सिया राम शर्मा का निधन
नवादा के स्वतंत्रता सेनानी सिया राम शर्मा का निधन

नवादा। पकरीबरावां प्रखंड के बलियारी गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा 105 वर्षीय सियाराम शर्मा का निधन शुक्रवार को हो गया। निधन से राजनीतिक कार्यकर्ताओं व आम बुद्धिजीवियों में शोक व्याप्त है। इस बाबत शिक्षाविद विपीन सिंह एवं कम्युनिस्ट नेता भुनेश्वर प्रसाद ने कहा कि सियाराम शर्मा किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती से प्रेरित होकर सबसे पहले किसान सभा से जुड़े थे फिर कम्युनिष्ट पार्टी में आए। पार्टी में राज्य कार्यकारिणी से लेकर काउंसिल एवं नवादा जिला सचिव के रूप में नेतृत्व कर संगठन को मजबूती प्रदान किया। उन्होंने मजदूर एवं किसान आंदोलन को सफल दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उनके निधन से समाजवादी व वाम विचारधारा की सोच रखने वाले नेताओं को गहरा आघात पहुंचा है।

कहा जाता है कि 1942 में फरहा गांव में अमेरिकन छावनी थी। उस छावनी में करीब 27-28 सिपाही थे। यह पुलिस आंदोलनकारियों को बहुत परेशान कर रही थी। तब पड़ोसी गांव बरेव में सिघना के बाढ़ो सिंह के नेतृत्व में एक बैठक हुई। इसमें तय हुआ कि पुलिस छावनी को जला देना है। इसके लिए उस छावनी में एक शख्स को नौकर के रूप में शामिल करने का फैसला हुआ। इसके लिए पकरीबरावां के बलियारी निवासी सियाराम शर्मा को चुना गया। चूंकि शर्मा काले थे। लेकिन उन्हें जनेउ पड़ गई थी। लिहाजा, वे जनेउ उतार दिये। और उनका नाम गेनहारी मांझी रखा गया। शर्मा जी बताते थे कि योजना के मुताबिक पुलिस छावनी के आसपास खेलने लगे। चार पांच दिनों के बाद एक अधिकारी ने बुलाया। उसने नाम पूछा और कहा कि कुछ काम करो। यहीं खाना खा लेना। शर्मा बतौर गेनहारी मांझी उस छावनी में काम करने लगे। हर शाम शर्मा बाढ़ो सिंह को पुलिस की गतिविधियों की सूचनाएं दिया करते थे। एक दिन छावनी में बड़ी पार्टी थी। बछड़े का मांस बना था। शर्मा को अधिकारी के दबाव में खाना पड़ा। पार्टी जब परवान पर थी। तब मौका देखकर पेट्रोल की टंकी में गेहूं के डंठल में आग लगाकर डाल दिया। कई पेट्रोल टंकी था लहरने लगा। फिर फरार हो गए।

बाढ़ो सिंह और साथियों को इसकी सूचना दी गई। नवादा और रजौली में पेड़ काटकर सड़क जाम कर दिया। पुलिस गेनहारी के नाम से तलाश रही थी। लेकिन फरहा में गेंधारी नाम का कोई शख्स नहीं था। लिहाजा, फरहा गांव पर सामूहिक जुर्माना कर दिया था। हालांकि कुछ दिन बाद पुलिस छावनी वापस चली गई। लिहाजा, शर्मा गिरफ्तार नहीं किए जा सके थे। अंतिम सांस तक पेंशन के लिए नहीं फैलाए हाथ

सियाराम शर्मा शर्मा आर्थिक परेशानियों से जुझते रहे, लेकिन उन्होंने पेंशन के लिए कभी हाथ नही फैलाई। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष पं शीलभद्र याजी फॉरवर्ड ब्लॉक के उपाध्यक्ष रह चुके थे। इसके बाद पृथ्वी सिंह आजाद अध्यक्ष बने थे। वह भी उन्हें जानते थे। शर्मा जी कहते थे कि उन्हें कहा गया कि सिर्फ आवेदन पर हस्ताक्षर कर दीजिए, पेंशन शुरू हो जाएगी। उस लड़ाई को चंद रुपये में आंकना उन्हें मंजूर नहीं था।

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सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मिला काफी सम्मान

वे रुपये नहीं कमाए, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर उन्हें काफी सम्मान मिला। 1975 में बड़ी बेटी कालिदी की शादी थी। किसी के जरिए इसकी जानकारी तत्कालीन डीएम सीएस प्रसाद को मिली। डीएम तीन बोरा चीनी का परमिट शर्मा के घर भिजवा दिए। शादी में दो बोरा चीनी खर्च हुआ। बचा हुआ एक बोरा चीनी का परमिट लौटा दिए। डीएम ने जब शर्मा से पूछा कि आपने निमंत्रण क्यों नहीं दिया। तब शर्मा का जवाब था कि शादी में दामाद सबसे बड़ा होता है। लेकिन आप जब आ जाते तब दामाद का कद छोटा हो जाता। लोग आपको देखने लग जाते। यह मुझे मंजूर नहीं था। दरअसल, शर्मा सैद्धांतिक शख्स रहे हैं। कई सरकारी कमिटियों में रहे। लेकिन सिद्धंातों से समझौता नहीं किया। शर्मा को तीन बेटे और दो बेटियां हैं।

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स्वामी सहजानंद से रही थी निकटता

सियाराम शर्मा की स्वामी सहजानंद सरस्वती से भी निकटता रही। 1946 में वारिसलीगंज के मीर विगहा में सभा हुई थी। उसी सभा में स्वामीजी से मुलाकात हुई थी। उसके बाद से स्वामीजी का अनुयायी बन गए थे। स्वामीजी के आखिरी जीवन तक जुड़े रहे। हालांकि शर्मा के पिता बाढ़ो सिंह किसान थे। वह उन्हें पढ़ाना चाहते थे। लेकिन शर्मा राजनैतिक गतिविधियों में सक्रिय थे। इसलिए स्कूल से निकाल दिया था। लिहाजा, उनकी पढ़ाई नही पूरी हुई। 1946 में सीपीआई का सदस्य बने। 1990 तक रहे। सियाराम शर्मा अंचल कमेटी से राज्यस्तरीय कमेटी तक पदाधिकारी रहे थे। अंग्रेजी, हिदी, उर्दू आदि भाषा की अच्छी जानकारी थी।

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