यहां महिलाओं ने तोड़ी रूढ़िवादी परंपरा, बेटियों ने दिया अर्थी को कांधा, बहू ने दी मुखाग्नि
बिहार के नवादा जिले में जब बेटियां अपने पिता के पार्थिव शरीर को कंधे पर लेकर चलीं और जब बहू ने मुखाग्नि दी तो देखनेवालों ने कहा-भई वाह! रूढिवादी परंपरा को नवादा की महिलाओं ने तोड़ा।
नवादा, जेएनएन। ऐसा नहीं कि घर में पुरुष नहीं थे, लेकिन इस परिवार ने रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुए समाज को ये संदेश दिया कि परिवार की महिलाएं भी पुरुषों की तरह बराबरी का दर्जा रखती हैं। नवादा के एक चिकित्सक के पिता के निधन के बाद परिवार के पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी अर्थी को कंधा दिया तथा शवयात्रा में शामिल हुईं।
सदियों से चली आ रही परंपरा को तोड़ने की यह घटना नवादा जिला में रोह प्रखंड के सुंदरा गांव की है। यहां चिकित्सक के पिता को बेटियों ने जहां कंधा दिया, वहीं बहू ने ससुर को मुखाग्नि दी है।
नवादा के होमियोपैथिक चिकित्सक डॉक्टर सुधीर कुमार के पिता दशरथ प्रसाद सेवानिवृत्त शिक्षक थे। रविवार को उनका देहांत हो गया, जिसके बाद उनकी शव यात्रा घर की महिलाओं ने निकाली। शवयात्रा में शामिल दर्जनों महिलाओं ने पूर्व शिक्षक की अर्थी को कंधा देकर, शमशान घाट तक पहुंचाया और मुखाग्नि मृतक शिक्षक की एक बहु ने दी। रूढ़िवादी मान्यताओं तोड़ते हुए मृतक की तीन बहुएं और गांव की दर्जनों महिलाओं ने बारी-बारी से अर्थी को कंधा दिया।
बहू प्रतिभा सिन्हा, डॉ. अंशुमाला, संगीता सिन्हा आदि ने अर्थी को कंधा दिया। तीनों बहू इंटर विद्यालय में शिक्षक हैं। वहीं पौत्री जाह्नवी उर्फ छोटी, एलीजा उर्फ गुडिय़ा, सौम्या सुरभि, तान्या तनु, जिज्ञासा जूही, बेटी इंदु कुमारी के अलावा बड़ी संख्या में स्वजन और ग्रामीण महिलाओं ने भी अर्थी को कंधा दिया।
संगीता सिन्हा का कहना है कि रूढि़वादी परंपराओं के कारण महिलाओं को शवयात्रा में शामिल नहीं कराया जाता था। लेकिन अाज के आधुनिक शिक्षित समाज के लिए अमान्य परंपराओं को ढोने की अब बाध्यता नहीं है।
उन्होंने कहा कि महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जा रहा है तो फिर इस क्षेत्र में उन्हें क्यों रोका जा रहा है? महिलाओं द्वारा उठाए गए इस कदम का समाज के हर वर्ग के लोगों ने समर्थन और सहयोग दिया। इस घटनाक्रम की अब पूरे इलाके में चर्चा हो रही है।