बीपीएससी में टापर रहे ओमप्रकाश ने यूपीएससी भी किया क्रैक
बिहारशरीफ। ओमप्रकाश गुप्ता अदम्य इच्छाशक्ति और लक्ष्य के प्रति समर्पण के दूसरे नाम हैं। महज तीन माह पहले 64वीं बीपीएससी की परीक्षा में स्टेट टापर रहे और अब यूपीएससी क्रैक कर दिखाया।
बिहारशरीफ। ओमप्रकाश गुप्ता अदम्य इच्छाशक्ति और लक्ष्य के प्रति समर्पण के दूसरे नाम हैं। महज तीन माह पहले 64वीं बीपीएससी की परीक्षा में स्टेट टापर रहे और अब यूपीएससी क्रैक कर दिखाया। हालांकि रैंक 339वां आया है। कहते हैं, आइएएस पद मिला तो ठीक वर्ना फिर प्रयास करेंगे। ओमप्रकाश की सफलता के पीछे पिता विदेश्वर साव की दूरगामी सोच भी है। तीस साल पहले करायपरसुराय प्रखंड के सुदूरवर्ती मेढ़मा गांव में बिजली व शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी तो सपरिवार पटना के फतुहा के सोनारू गांव में जाकर बस गए। खुद महज साक्षर थे परंतु शिक्षा का महत्व बखूबी जानते थे। वहां आजीविका के लिए किराने की दुकान खोली। बेटे ओमप्रकाश व उनके दो भाइयों को भी छुटपन में व्यवसाय और ग्राहकों से संवाद के गुर सिखाए। यह अनुभव आज भी कार्यक्षेत्र में उनके काम आ रहा है। ओमप्रकाश ने जागरण से बताया कि बीपीएससी में पहला स्थान प्राप्त होने के बाद उनका चयन एसडीएम के लिए हुआ था। लेकिन इससे संतुष्ट नहीं थे, इच्छा आइएएस बनने की थी। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो प्रारंभिक शिक्षा सरकारी विद्यालय से प्राप्त की। वर्ष 2006 में फतुहा हाईस्कूल से मैट्रिक करने के बाद 2008 में एसकेएमवी महाविद्यालय से आइएससी पास की। इसके बाद आइआइटी की तैयारी में लग गए। आइआइटी रूड़की में सेलेक्शन हो गया। वहां से बी.टेक. करने के बाद कई कंपनियों से आफर आए लेकिन टीचिग सेक्टर को चुना और आइआइटी में ही पढ़ाने लगे। यूपीएससी की लिखित परीक्षा पास की तो घर में ही साक्षात्कार की तैयारी की। इस बार मिले रैंक पर आइएएस मिला तो ठीक, वर्ना आगे भी प्रयास करूंगा। पसंदीदा विषय रहा है गणित
ओमप्रकाश ने बताया कि बचपन से गणित से लगाव रहा है। गणित ही यूपीएससी में उनका आप्शनल विषय था। यूपीएससी की परीक्षा में लगे विद्यार्थियों को संदेश देते हुए कहा कि धैर्य और हिम्मत रखकर तैयारी करनी चाहिए, घबराना नहीं चाहिए। पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया कि माता-पिता समेत दो बहन तथा तीन भाई है। एक भाई इंडियन आयल में इंजीनियर है तो दूसरा भाई बीटेक कर रहा है। उन्होंने बताया कि उनके प्रेरणा स्त्रोत उनके माता-पिता तथा सही सलाह देने वाले दोस्त हैं।
ओमप्रकाश के पिता विन्देश्वर साव ने बताया कि शिक्षा तथा बिजली के अभाव के कारण लगभग 30 वर्ष पूर्व करायपसुराय के मेढ़मा गांव से फतुहा के सोनारू गांव में आकर बस गए,मेढ़मा में उनके भाई रहते हैं। कभी-कभी गांव जाना होता है। जिविका के लिए किराना दुकान है जिसमें बचपन में ओमप्रकाश हाथ बटाया करते थे।