नालंदा में पटना-रांची एनएच के 60 किमी दायरे में एक भी ट्रामा सेंटर नहीं

बिहारशरीफ। सरकार के प्रविधान के अनुसार एनएच के हर 60 किलोमीटर के दायरे में एक ट्रामा सेंटर होना चाहिए। लेकिन व्यवहारिक तौर पर ऐसा नहीं है। नालंदा व पड़ोसी नवादा जिले से पटना-रांची को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण एनएच-20 का 60 किमी से अधिक हिस्सा गुजरता है परंतु एक भी ट्रामा सेंटर यहां नहीं है। एनएच से महज एक किमी दूरी पर पावापुरी मेडिकल कालेज में ट्रामा सेंटर बनाया जा सकता है परंतु अब तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 11:42 PM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 11:42 PM (IST)
नालंदा में पटना-रांची एनएच के 60 किमी दायरे में एक भी ट्रामा सेंटर नहीं
नालंदा में पटना-रांची एनएच के 60 किमी दायरे में एक भी ट्रामा सेंटर नहीं

बिहारशरीफ। सरकार के प्रविधान के अनुसार एनएच के हर 60 किलोमीटर के दायरे में एक ट्रामा सेंटर होना चाहिए। लेकिन, व्यवहारिक तौर पर ऐसा नहीं है। नालंदा व पड़ोसी नवादा जिले से पटना-रांची को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण एनएच-20 का 60 किमी से अधिक हिस्सा गुजरता है, परंतु एक भी ट्रामा सेंटर यहां नहीं है। एनएच से महज एक किमी दूरी पर पावापुरी मेडिकल कालेज में ट्रामा सेंटर बनाया जा सकता है, परंतु अब तक इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया। यही कारण है कि एनएच पर होने वाले हादसों में घायल लोगों की मौत समय पर उचित इलाज नहीं होने के कारण हो जाती है। एक साल में पावापुरी मेडिकल कालेज व सदर अस्पताल लाए गए घायलों की संख्या का आंकड़ा देखें तो वह दो सौ के पार है। इनमें से एक भी गंभीर घायल की जान नहीं बचाई जा सकी। यहां दोनों अस्पतालों में सिर्फ घायलों की प्राथमिक चिकित्सा की जाती है। इसके बाद पटना रेफर करने के चक्कर में इतनी देर हो जाती है कि घायल या तो रास्ते में दम तोड़ देते हैं या एक-दो दिन बाद इलाज के दौरान उनकी मौत हो जाती है। ताजा उदाहरण दो दिन पहले मोड़ा तालाब इलाके में एनएच पर ट्रक के धक्के से घायल चाचा भतीजे हैं। इनमें चाचा की मौत पटना में इलाज के दौरान बुधवार को हो गई। भतीजे की हालत गंभीर बनी हुई है। अगर, तत्काल इनका इलाज हुआ होता तो शायद वह बच सकते थे।

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एकमात्र निजी अस्पताल ट्रामा सेंटर बनने की राह पर

बिहारशरीफ बाईपास में एकमात्र निजी अस्पताल नालंदा हड्डी एंड रीढ़ सेंटर है, जो ट्रामा सेंटर बनने की राह पर है। डाक्टर कुमार अमरदीप नारायण ने बताया कि ट्रामा सेंटर के रजिस्ट्रेशन के लिए केंद्र सरकार को आवेदन दिया है। उम्मीद है, दो से तीन माह में अनुमति मिल जाएगी। ट्रामा सेंटर में कम से कम आइसीयू, वेंटिलेटर, इमरजेंसी ओटी होने चाहिए। कहा कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों के इलाज के लिए उनके अस्पताल में सभी तरह की अत्याधुनिक मशीनें लगा दी गई हैं।

------------------------ साफ-सफाई की है बेहतर व्यवस्था

नालंदा हड्डी व रीढ़ सेंटर में एक दर्जन सफाईकर्मी हैं। जो शिफ्ट वाइज सफाई में लगे रहते हैं। क्लीनिक से निकलने वाले मेडिकल कचरे के डिस्पोजल के लिए पटना से हर दिन गाड़ी आती है। मरीजों के लिए एसी व नन एसी मिलाकर करीब 20 कमरे हैं। हर कमरे में दो बेड के साथ एक-एक मरीज के स्वजन की रहने की व्यवस्था है। यह अस्पताल छह फ्लोर का है।

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जानें क्या है ट्रामा सेंटर

ट्रामा का अर्थ है गहरा आघात या क्षति। यह गहरा आघात या क्षति शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, मानसिक किसी भी रूप में हो सकती है। ट्रामा सेंटर में गंभीर से गंभीर मरीजों को अन्य अस्पताल को रेफर करने की बजाए उनका तत्काल इलाज या जरूरी सर्जरी शुरू कर दी जाती है।

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