नालंदा में कभी था उद्योग-धंधों से गुलजार, अब हो गया सरकारी उदासीनता का शिकार

बिहारशरीफ। 45 वर्ष पहले बिहारशरीफ के रामचंद्रपुर का औद्योगिक क्षेत्र उद्योग धंधों से गुलजार था लेकिन अब उस क्षेत्र में दिन में भी प्रवेश करने पर डर लगता है। क्योंकि यहां लगी अधिकतर औद्योगिक इकाइयां बंद हो गईं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 11 Jul 2021 04:03 PM (IST) Updated:Sun, 11 Jul 2021 04:09 PM (IST)
नालंदा में कभी था उद्योग-धंधों से गुलजार, अब हो गया  सरकारी उदासीनता का शिकार
नालंदा में कभी था उद्योग-धंधों से गुलजार, अब हो गया सरकारी उदासीनता का शिकार

बिहारशरीफ। 45 वर्ष पहले बिहारशरीफ के रामचंद्रपुर का औद्योगिक क्षेत्र उद्योग धंधों से गुलजार था, लेकिन अब उस क्षेत्र में दिन में भी प्रवेश करने पर डर लगता है। क्योंकि, यहां लगी अधिकतर औद्योगिक इकाइयां बंद हो गईं। आधार भूत संरचनाएं जर्जर हो ढह रही हैं। उस पर झाड़ उग आए हैं। लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए शहरी क्षेत्र में साल 1976 में औद्योगिक प्रांगण का निर्माण किया गया था। बियाडा का गठन किया गया था उसमें औद्योगिक प्रांगण बिहारशरीफ का जिक्र था। बियाडा ने औद्योगिक इकाइयों का निर्माण कराया था।

बताते हैं, कभी इस प्रांगण में बिहार राज्य चर्म उद्योग निगम का प्लांट था। सिलिका की फैक्ट्री थी, एक बार ब्लास्ट हुआ तो सब बंद हो गया। सेंट्रल प्रोसेसिग प्लांट व कागज की फैक्ट्री भी थी। अब इंडस्ट्रियल एरिया में लोग घर बनाकर रह रहे हैं। एक बार नर्सिंग होम को जमीन देने का प्रावधान बनाया गया था जो अब खत्म कर दिया। समय-समय पर बियाडा नियम बदलता रहता है। एक बार नियम बदला, जिसमें मॉल व होटल के लिए जमीन दी गई। इंडस्ट्री के नाम पर जमीन लेकर कई लोगों ने घर बना लिये हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि जिनके नाम से उद्योग लगाने के लिए जमीन या भवन आवंटित किया गया था उनमें से अधिकतर ने उसे भाड़े पर लगा दिया है। लेकिन, बियाडा के स्थानीय अधिकारी मधुबाला ने इससे इन्कार किया है।

उनका कहना है कि औद्योगिक प्रांगण में 33 लघु उद्योग संचालित हैं। बताया कि 10 एकड़ में इंडस्ट्रियल प्रांगण है। उसमें दो एकड़ में बना शेड खाली पड़ा है। बताया कि अनदेखी के कारण धीरे-धीरे उद्योग-धंधे चौपट होते गए।

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कुछ प्रोडक्शन इकाई हैं चालू

मधुबाला की मानें तो औद्योगिक प्रांगण में आटोमोबाइल सेक्टर, स्वीट व नमकीन, बेकरी, हैंड मेड पेपर, जूट फैक्ट्री, मॉल, ट्यूबवेल पंप, जनरल फैब्रिकेशन यानी की ग्रिल, स्टील बाक्स तथा आलमीरा निर्माण आदि का दावा किया गया। लेकिन, पड़ताल में पाया गया कि ये उद्योग सिर्फ नाम के हैं। एक भी ऐसी ईकाई नहीं है जो किसी को प्रेरित कर सके। उद्यमियों की जिले में ही कोई पहचान नहीं है। उद्यमियों ने बताया कि एक तो पहले से हालात खराब चल रहे थे। रही- सही कसर कोविड लाकडाउन के कारण निकल गई।

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अलग बने इंडस्ट्रियल एरिया : बदले हुए समय को देखते हुए यह भी मांग ही जोर पकड़ रही है कि इंडस्ट्रियल एरिया शहर से अलग बनाई जाय। आज बियाडा का जमीन का रेट 14 सौ रुपये वर्ग फीट है। इतनी महंगी जमीन में कोई कैसे इंडस्ट्री लगाएगा। कहा जा रहा है कि अब यह कामर्शियल जगह हो गई है। कायदे से इसे बेचकर अन्य जगह पर इंडस्ट्रियल एरिया बनाना चाहिए।

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नीरा प्लांट भी बहा रहा नीर : मद्य निषेध की घोषणा के बाद शराब के साथ ताड़ी की सीधी बिक्री पर भी सरकार ने रोक लगा दी थी। जीविकोपार्जन के लिए ताड़ी व्यवसाय पर निर्भर एक जाति विशेष के समक्ष आयी आर्थिक परेशानी से निजात दिलाने के लिए राज्य सरकार ने बिहारशरीफ व हाजीपुर में ताड़ी से नीरा निर्माण का प्लांट लगाया। नीरा निर्माण व बिक्री की जवाबदेही कंफेड तथा जीविका को दी गई। इसके निर्माण के लिए कंफेड के प्रबंध निदेशक को 40 करोड़ 10 लाख 44 हजार रुपये दिये गए। बिहारशरीफ के बाजार समिति प्रांगण में स्थित राज्य खाद्य निगम के गोदाम में बड़े तामझाम के साथ नीरा प्लांट लगाया गया। ताड़ी की व्यवस्था तथा उसकी मार्केटिग की जवाबदेही जीविका को दी गई। लेकिन, यह प्रोजेक्ट असफल हो गया।

जिला उद्योग महाप्रबंधक सतेंद्र चौधरी ने बताया कि जब नीरा प्रोजेक्ट में नीरा के साथ गुड़ तथा आइसक्रीम भी बननी थी। लेकिन, मांग न होने से यह चल नहीं पाया। नीरा प्लांट में कार्यरत कर्मियों को रोजगार देने के लिए बिहारशरीफ में विभिन्न प्रकार के जूस एवं टमैटो सॉस तैयार किया जाएगा।

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