DM G.Krishnaiah हत्याकांड में सजायाफ्ता आनंदमोहन की रिहाई के लिए इस फार्मूले पर होगा काम
उनकी कर्मस्थली शिवहर से होगा जन आंदोलन। जनता की अदालत में उठेगा मामला बड़े आंदोलन की तैयारी। पूर्व सांसद के पुत्र सह विधायक चेतन आनंद ने कहा- जाएंगे जनता की अदालत में। यह मामला केवल मेरे पिता का ही नहीं सैकड़ों बंदियों को सरकार ने रखा है वंचित।
शिवहर, जासं। जी कृष्णैया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे शिवहर के पूर्व सांसद आनंद मोहन द्वारा 14 साल की अवधि जेल में गुजार लेने के बावजूद उनकी रिहाई नहीं होने का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। तीन दिसंबर को विधानसभा में मंत्री द्वारा लोकसेवक की हत्या के आरोपी को परिहार का लाभ नहीं दिए जाने का वक्तव्य दिए जाने के बाद पूर्व सांसद ने समर्थकों में मायूसी है। आनंदमोहन के समर्थक निराश है। वहीं समर्थकों ने अब जन आंदोलन की भी तैयारी कर दी है। आनंदमोहन की कर्मस्थली शिवहर से अब देशव्यापी आंदोलन की चिनगारी सुलगने लगी है। लंबे समय से प्रदर्शन कर रहे और राष्ट्रपति तक को पोस्टकार्ड भेज रहे आनंदमोहन के समर्थकों ने शिवहर से बड़े आंदोलन की शुरूआत का एलान किया है। जबकि, पूर्व सांसद के पुत्र सह शिवहर विधायक चेतन आनंद ने कहा हैं कि जनतंत्र में जनता की अदालत सबसे बड़ी अदालत है। और हम इस मामले को जनता की अदालत में मजबूती से लेकर जाएंगे। साथ ही देशव्यापी मुहिम चलाएंगे।
यह भी पढ़ें: BIHAR POLITICS: उपचुनाव में मुकेश सहनी की सीट पर भाजपाइयों की दावेदारी, सुगबुगाहट तेज
विधायक ने उठाए सरकार की रीति-नीति पर सवाल
शिवहर से राजद विधायक सह विधानसभा की याचिका समिति के सदस्य चेतन आनंद ने आनंदमोहन की रिहाई नहीं होने पर सरकार की रीति-नीति पर सवाल उठाए है। उन्होंने सरकार पर इस मामले में निपक्षता और पारदर्शिता का पालन नहीं करने का आरोप लगाया है। कहा हैं कि सरकार इस मामले में पिक और च्यूज की नीति अख्तियार कर रही है। यह राजनीतिक नफा-नुकसान आधारित है जो नैसर्गिक न्याय के विरूद्ध है। कहा हैं कि परिहार का लाभ बंदियों का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह मामला केवल उनके पिता का नही बल्कि सूबे की जेलों में बंद सैकड़ों बंदियों का है। जिनके साथ बिहार की सरकार बेपरवाही कर रही है। कहा कि शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन उन्होंने इस मुद्दे को सदन में उठाया। जिसमें सरकार की ओर से मंत्री द्वारा दिया गया बयान विचलित करने वाला है। पूर्व सांसद की रिहाई नहीं होने को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच की आदेश की अवहेलना बताया। विधायक ने कहा कि पूर्व सांसद आनंद मोहन ही नही सूबे की विभिन्न जेलों में सैकड़ों ऐसे बंदी है जो 14 साल से अधिक समय गुजार लेने के बाद भी रिहाई के अपने मौलिक अधिकार से वंचित है। विधायक ने सुप्रीम कोर्ट जस्टिस कौल और जस्टिस राय की बेंच द्वारा दिए गए आदेश जिसमें आजीवन कारावास की सजा पाए बंदियों को परिहार को परिहार का अधिकार होने और राज्य सरकारों को टाइमलाइन तय कर बंदियों को रिहा करने का आदेश दिया था, का हवाला देते हुए कहा कि सरकार जानबूझ कर उनके पिता को जेल में बंद रखना चाहती है।
पेरोल तक का नहीं दिया लाभ
विधायक ने कहा कि सूबे के कई राज्यों में संगीन सजा के आरोपियों को वहां की राज्य सरकारों ने परोल का लाभ दिया गया। कानून कहता हैं कि साल में एक बार 21 दिनों का परोल दिया जा सकता है। लेकिन उनके पिता आनंद मोहन को उनकी बीमारी, स्वजन की मौत, पुत्र और पुत्री की शादी तक में भाग लेने के लिए परोल का लाभ नहीं दिया गया। दिल्ली के चर्चित जेसिका लाल मर्डर केस का मुख्य मुजरिम समय के पूर्व मुक्त कर दिया जाता है। दिल्ली सरकार 13 साल में ही परिहार की प्रक्रिया पूरी कर लेती है लेकिन बिहार की सरकार की बेपरवाही बरकारार है। उन्होंने पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई नहीं होने को भी सरकार की बेपरवाही बताया है। वहीं इसे संविधान के आर्टिकल 21 के खिलाफ बताया।