क्या सीएम नीतीश कुमार का 'ललन' तीर निशाने पर लगेगा ? मुजफ्फरपुर में राजनीतिक बहस तेज

आरसीपी सिंह के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद ललन सिंह की जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी को सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा मान रहे प्रेक्षक। लवकुश के बाद ब्रह्मर्षी समाज के वोट में सेंध लगाने के प्रयास के रूप में भी इसे देखा जा रहा है।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Mon, 02 Aug 2021 07:46 AM (IST) Updated:Mon, 02 Aug 2021 07:46 AM (IST)
क्या सीएम नीतीश कुमार का 'ललन' तीर निशाने पर लगेगा ? मुजफ्फरपुर में राजनीतिक बहस तेज
उपेंद्र कुशवाहा की जदयू में वापसी के बाद सभी समीकरण फिर से व्यवस्थित किए जा रहे हैं। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [अमरेन्द्र तिवारी]। बिहार में अभी चुनाव नहीं है। बावजूद सीएम नीतीश कुमार की पार्टी चुनावी मोड में लग रही है। हर तरह के समीकरण साधे जा रहे हैं। वोट के गणित को सुधारने की कोशिश हो रही है। आरसीपी सिंह के केंद्रीय राजनीति में जाने के बाद ललन सिंह को जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद सौंपने को भी इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि सीएम नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए ये सभी कर रहे हैं। इस पहल को लवकुश के बाद ब्रह्मर्षी समाज को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। जदयू में शीर्ष स्तर पर हुए इस बदलाव के बाद मुजफ्फरपुर में एक बार फिर से राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो गई हैं। जिले में ब्रह्मर्षी समाज के प्रभाव को देखते हुए संगठन और बाद में यहां की राजनीति में बदलाव की अपेक्षा की जाने लगी है। खासकर यहां कई गुटों में बंटे दिख रहे जदयू के नेता अपने लिए नए सिरे से रणनीति तैयार करने में जुट गए हैं। 

एक ही रणनीति का हिस्सा

प्रेक्षक मान रहे हैं कि सांसद ललन सिंह की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी के बाद भूमिहार समाज के लोगों की जदयू संग गोलबंदी कुछ हद तक बढ़ सकती है है। इसे भाजपा केे कोर वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश के रूष में भी देखा जा रहा है। विश्लेषकों की मानें तो जदयू में उपेंद्र कुशवाहा की वापसी के बाद से ही चीजों को फिर से व्यवस्थित करने की कवायद चल रही थी। कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष और एमएलसी, आरसीपी सिंह को केंद्रीय मंत्री और अब ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना एक ही रणनीति का हिस्सा है।

कुशल रणनीतिकार के रूप में उभार

बिहार विधानसभ चुनाव 2020 में भाजपा के उभार ने जदयू की चिंता बढ़ा दी थी। यही वजह है कि चुनाव खत्म होने के बाद से ही पार्टी लगातार अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है। इसमें ललन सिंह की सक्रिय भूमिका रही है। वे पार्टी के लिए चाणक्य साबित हो रहे हैं। कहा तो यह जा रहा है कि चुनाव के बाद लोजपा के एक विधायक और बहुत से जिलाध्यक्ष इन्हीं की प्ररेणा से जदयू का हिस्सा बने। पिछले दिनों मुजफ्फरपुर में पुराने जदयू नेताओं ने चिंतन शिविर का आयोजन किया था। पूर्व जदयू जिलाध्यक्ष व प्रदेश सचिव रंजीत सहनी के संयाेजन में आयोजित इस शिविर में करीब 80 नेता व कार्यकर्ता शामिल हुए थे। सभी ने उस समय बदलाव की बात कही थी। कहा था, जदयू कार्यकर्ता के बदले प्रशासनिक अधिकारी के फीडबैक पर काम हो रहा है। इसकी वजह से विधानसभा चुनाव में परिणाम अपेक्षा के अनुसार नहीं रहा था। ये लोग भी अपेक्षा कर रहे हैं अब कार्यकर्ताओं की पूछ और बढ़ेगी। जानधार वाले नेताओं को आगे मौका मिलेगा।

ललन सिंह के आने से संगठन होगा मजबूत

समता काल से नीतीश के साथ रहे सौरभ कुमार साहेब कहते हैं कि नीतीश कुमार जात नहीं जमात के नेता हैं। ललन सिंह के अाने से जहां भूमिहार समाज का विश्वास बढ़ा है वहीं समता पार्टी काल से जदयू के संग चलने वाले लोगों में भी उम्मीद जगी है। उनकी क्षमता का सही इस्तेमाल होगा। साहेब ने कहा कि संसदीय दल के नेता उपेन्द्र कुशवाहा के बाद सांसद ललन सिंह को मुख्यमंत्री ने बड़ी जवाबदेही दी है। इसका असर आनेवाले दिनों में होेनेवाले चुनाव में दिखेगा। ललन सिंह के साथ संगठन में काम करनेवाले जदयू नेता प्रो.धनंजय कुमार सिंह ने कहा कि उनके अंदर गजब की सांगठनिक क्षमता है। वे एक-एक कार्यकर्ता के मान-सम्मान व स्वाभिमान के लिए हर स्तर पर पहल करते हैं। 

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