जब शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ीं दरभंगा की पंचायतें तो बदलने लगी तस्वीर

पिंडारूच पंचायत निवासी श्रीश चौधरी सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 2012 में घर लौटे तो देखा कि इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। वर्ष 2012 निशुल्क स्वास्थ्य शिविर की शुरुआत की। वर्ष 2018 में उन्होंने जमीन खरीद एक अस्पताल की शुरुआत की।

By Ajit KumarEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 09:14 AM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 09:14 AM (IST)
जब शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ीं दरभंगा की पंचायतें तो बदलने लगी तस्वीर
पिंडारूच पंचायत में सेवानिवृत्त प्रोफेसर के प्रयास से ग्रामीणों को मिल रहा लाभ। फोटो- जागरण

दरभंगा, [संजय कुमार उपाध्याय]। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा से जुडऩे के बाद बाढ़ प्रभावित नौ हजार की आबादी वाली पिंडारूच पंचायत की तस्वीर बदल रही है। यहां के हर घर के बच्चे शिक्षित हो रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधा का लाभ मिल रहा है। यह सब संभव हुआ है आइआइटी मद्रास से सेवानिवृत्त प्रोफेसर श्रीश चौधरी और उनकी टीम की बदौलत। जिले के केवटी प्रखंड की पिंडारूच पंचायत निवासी श्रीश चौधरी सेवानिवृत्त होने के बाद वर्ष 2012 में घर लौटे तो देखा कि बाढ़ प्रभावित इस इलाके में इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। छोटी-मोटी बीमारी होने पर एक किलोमीटर दूर मुहम्मदपुर स्वास्थ्य उपकेंद्र या फिर 15 किमी दूर सामुदायिक चिकित्सा केंद्र, रनवे केवटी जाना पड़ता है। कई बार स्थिति गंभीर होने पर मरीज की मौत रास्ते में ही हो जाती है। ऐसे में उन्होंने इलाज की व्यवस्था करने का प्रण लिया। साथियों के सहयोग से वर्ष 2012 निशुल्क स्वास्थ्य शिविर की शुरुआत की। 2016 तक विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में प्रतिवर्ष आधा दर्जन शिविर लगाए गए। वर्ष 2018 में उन्होंने जमीन खरीद एक अस्पताल की शुरुआत की। इसमें आयकर निदेशक रहे उनके मित्र देवेंद्र नारायण व डा. शांता रे ने आर्थिक मदद की। अब यहां पंचायत के गरीब लोगों की छोटी-मोटी बीमारियों का निशुल्क इलाज किया जाता है। अब तक एक हजार से अधिक ग्रामीण इसका लाभ ले चुके हैं। कोरोना से निपटने की इमरजेंसी सामग्री भी यहां उपलब्ध है।

वर्ष 2016 में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की। पंचायत के अलावा आसपास के पांच सरकारी विद्यालयों में छुट्टी के बाद वे कक्षाएं लगाने लगे। इसके लिए उन्होंने गांव के शिक्षित युवकों को जोड़ा। इन कक्षाओं में ऐसे बच्चों को पढ़ाया जाता है जो स्कूल से दूर हैं। उनके लिए कापी-किताब की भी व्यवस्था की जाती है। कोरोना शुरू होने से पहले करीब ढाई सौ बच्चे इन कक्षाओं से जुड़े थे। अब स्कूल खुले हैं तो दोबारा बच्चे आने लगे हैं। डेढ़ महीने पहले उन्होंने युवाओं को रोजगार से जोड़ऩे के लिए कंप्यूटर प्रशिक्षण की शुरुआत की है। शिक्षा और स्वास्थ्य के इस अभियान को चलाने के लिए एक समिति बनाई गई है। इसमें सेवानिवृत्त बैंक प्रबंधक ललित कुमार चौधरी, गांव के ही शिक्षक सुशील कुमार पासवान, कन्या विद्यालय की प्रधानाध्यापक संतोष चौधरी, राज मिस्त्री रामबाबू चौपाल और बिजली मिस्त्री राजकुमार झा शामिल हैं।

ग्रामीण प्रियनाथ चौधरी, नवजीत कुमार चौधरी व गौरव कुमार का कहना है कि पहले बरसात में इलाज के लिए दूर जाना पड़ता था। बाढ़ के समय तो जाना मुश्किल हो जाता था। अब ऐसा नहीं है। बच्चे भी शिक्षित हो रहे हैं।

प्रो. श्रीश चौधरी बताते हैं कि स्वास्थ्य व शिक्षा पर प्रतिवर्ष तकरीबन 10 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं। चेन्नई की अन्ना यूनिवर्सिटी के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर के. ईलंगो, चेन्नई की गायत्री रमणी, दिल्ली यूनिवर्सिटी से अवकाश प्राप्त प्रो. प्रदीपकांत चौधरी के अलावा सक्षम ग्रामीण आर्थिक सहयोग करते हैं। 

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