पश्चिम चंपारण आनंद ने स्टंट की तकनीकी से मछलीपालन का रचा इतिहास, जानिए क्या है स्टंट तकनीकी

West Champaran सम्हौता के आंनद सिंह ने स्टंट की तकनीकी अपनाकर मछलीपालन के क्षेत्र मेें जिले एक नया कीर्तिमान स्थापित किया चार माह में कतला हुई 2 किलोग्राम तो ग्रास कार्प का वजन हुआ 2.5 से 3 किलोग्राम मत्स्यपालन में नवीनतम तकनीकी के प्रयोग से मिली यह उपलब्धि

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Publish:Sun, 18 Jul 2021 03:56 PM (IST) Updated:Sun, 18 Jul 2021 03:56 PM (IST)
पश्चिम चंपारण आनंद ने स्टंट की तकनीकी से मछलीपालन का रचा इतिहास, जानिए क्या है स्टंट तकनीकी
कतला मछली दिखाते मत्स्यपालक आनंद सिंह। जागरण

पश्चिम चंपारण, जासं। तेजी से जनसंख्या में बढ़ोत्तरी और उसके अनुरूप पौष्टिक भोजन की मांग को पूरा करना शासन के लिए बड़ी चुनौती है। सरकार की ओर से इसे पूरा करने के लिए कृषि एवं मत्स्यपालन पर आधारिक एलॉयड क्षेत्र के विकास पर बल दिया जा रहा है। इसमें बेहतर योगदान में प्रगतिशील किसानों एवं मत्स्यपालकों की भूमिका अहम साबित हो रही है, जो अपने हुनर एवं नवीनतम तकनीकी के इस्तेमाल से कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं।

मत्स्यपालन के क्षेत्र में नरकटियागंज प्रखंड के सम्हौता गांव निवासी प्रगतिशील मत्स्यपालक आनंद सिंह ने स्टंट की तकनीकी को अपनाकर जिले में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। उन्होंने चार माह के अति अल्प अवधि में कतला मछली का डेढ़ से दो किलोग्राम तक उत्पादन लिया है, जबकि इतने ही अवधि में ग्रास कार्प की उपज 2.5 से 3 किलोग्राम तक ली है। मत्स्यपालक श्री आनंद के अनुसार इन प्रजाति की मछलियों का इतना उत्पादन उनके द्वारा नवीनतक तकनीकी के प्रयोग से हुआ है और निसंदेह यह क्षेत्र सबसे फायदेमंद का हो गया है।

क्या है स्टंट तकनीकी

मछलीपालन में स्टंट की तकनीकी एक वैसी विधि है, जिसमें मछली के बीजों को एक अलग तलाब में एक वर्ष तक स्टॉक किया जाता है। एक वर्ष पूरा होने के बाद उसे उन तालाबों में डाला जाता है, जहां मछलीपालन किया जाना है। आनंद सिंह बताते हैं कि एक वर्ष तक इन मछलियों को उतना ही भोजन दिया जाता है, जितना से वह जीवित रह जाय। जब रियरिग तालाब में उसे पालन किया जाता है, तो उसके वजन में चमत्कारिक वृद्धि होती है। इस तरह निर्धारित चार से पांच माह में उसके वजन में आशातीत वृद्धि हो जती है। जबकि अन्य पारंपरिक तरीके से मछलीपालन में इन मछलियों का बढ़वार चार से पांच सौ ग्राम तक ही हो पाता है। इस विधि से सामान्य विधि की तुलना में चार से पांच गुणा उत्पादन बढ़ गई है।

शुरुआती दौड़ में हुआ लाखों का नुकसान

ये स्वयं इस पेशे में साल 2012 में आए और आते ही उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ा। आनंद को इस व्यवसाय को शुरू करने में खासा दिक्कतें आई। एक तालाब बनाने में अच्छी खासी पूंजी लगती है। उन्होंने सोच समझ कर खर्च किया, किन्तु शुरुआती दौड़ में तो घाटा हुआ। इसके बाद भी उन्होंने जोखिम उठाया और इससे अनुभवी लोगों से सलाह ली और सरकार के द्वारा चलाए जा रहे प्रक्षिक्षण शिविर में भाग लेकर एक कुशल मछली पालक के रूप में काम कर रहे हैं।

--प्रगतिशील मत्स्यपालक आदंन सिंह के द्वारा अपनाई गई तकनीकी बेहतर है। मछलीपालन के क्षेत्र में काम करने वाले किसानों को उनसे सीख लेनी चाहिए। सरकार इस क्षेत्र से जुड़ने के लिए कई तरह के प्रोत्साहन दे रही है, इसका लाभ किसानों को उठाकर अपनी समृद्धि की ओर अग्रसर हो सकते है। -श्रीकांत ठाकुर प्रखंड कृषि पदाधिकारी नरकटियागंज

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