देखो यह कुर्सी का खेल, नीचे खाली डब्बा रेल

समस्तीपुर। कुसुम पाण्डेय साहित्य संस्थान की ओर से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। रचनाकार

By JagranEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 07:23 PM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 07:23 PM (IST)
देखो यह कुर्सी का खेल, नीचे खाली डब्बा रेल
देखो यह कुर्सी का खेल, नीचे खाली डब्बा रेल

समस्तीपुर। कुसुम पाण्डेय साहित्य संस्थान की ओर से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। श्रोताओं को कभी भक्ति रस में विभोर कर दिया तो कभी रोमांटिक गीतों से प्रेम मोहब्बत के रस से सराबोर कर दिया। प्रो. रीता वर्मा की रचना देखो यह कुर्सी का खेल, सबसे पेचीदा यह खेल, ऊपर-ऊपर सबका मेल, नीचे खाली डब्बा रेल। को काफी वाहवाही मिली। शिवेन्द्र कुमार पांडे की रचना राष्ट्रहित में होना चाहिए अंग्रेजी का बहिष्कार भी काफी चर्चित रही। वहीं द्वारिका राय सुबोध की रचना गंगा जैसा तन है मेरा, यमुना जैसा मन। अम्बिका प्रसाद नंदन की रचना कल रात सपने में देखा एक अजब जहान है। राजकुमार चौधरी की रचना मंहगाई का राज है। राज कुमार राजेश की रचना प्रभुता पाकर जनमानस को, जिसने भी दहशत में डाला। भुवनेश्वर मिश्र की रचना मन रे, तेरे बिन कैसे जी पाउं। प्रवीण कुमार चुन्नू की रचना मैंने दिल को बिछाया था उस कहानी में। कमर समस्तीपुरी की रचना आइने में जब वो सूरत आ गई, सामने खुलकर हकीकत आ गई को श्रोताओं से खूब वाहवाही मिली। इसके अलावे डॉ. रामसूरत प्रियदर्शी,राजकुमार चौधरी, रामाश्रय राय, राजकुमार राय, काविश जमाली, विष्णु कुमार केडिया, कासिम सबा, डॉ. सुनील चम्पारणी, दीपक कुमार श्रीवास्तव, डॉ. मुरलीधर देव, डॉ. अशोक कुमार सिन्हा, सुबोध नाथ मिश्र, माजिद कमर, ज्योति कुमारी, मणिशंकर प्रसाद सिन्हा, द्वारिका राय सुबोध, दिनेश प्रसाद, जफर इकबाल समेत रचनाकारों ने अपनी प्रस्तुत से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत डा. रामसूरत दास के गणेश वंदना से हुई। अध्यक्षता रेल राजभाषा के पूर्व अधिकारी द्वारिका राय सुबोध ने की। स्वागत डा. रमेश गौरिश ने किया तो संचालन प्रवीण कुमार चुन्नू ने किया।

समस्तीपुर। कुसुम पाण्डेय साहित्य संस्थान की ओर से काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। श्रोताओं को कभी भक्ति रस में विभोर कर दिया तो कभी रोमांटिक गीतों से प्रेम मोहब्बत के रस से सराबोर कर दिया। प्रो. रीता वर्मा की रचना देखो यह कुर्सी का खेल, सबसे पेचीदा यह खेल, ऊपर-ऊपर सबका मेल, नीचे खाली डब्बा रेल। को काफी वाहवाही मिली। शिवेन्द्र कुमार पांडे की रचना राष्ट्रहित में होना चाहिए अंग्रेजी का बहिष्कार भी काफी चर्चित रही। वहीं द्वारिका राय सुबोध की रचना गंगा जैसा तन है मेरा, यमुना जैसा मन। अम्बिका प्रसाद नंदन की रचना कल रात सपने में देखा एक अजब जहान है। राजकुमार चौधरी की रचना मंहगाई का राज है। राज कुमार राजेश की रचना प्रभुता पाकर जनमानस को, जिसने भी दहशत में डाला। भुवनेश्वर मिश्र की रचना मन रे, तेरे बिन कैसे जी पाउं। प्रवीण कुमार चुन्नू की रचना मैंने दिल को बिछाया था उस कहानी में। कमर समस्तीपुरी की रचना आइने में जब वो सूरत आ गई, सामने खुलकर हकीकत आ गई को श्रोताओं से खूब वाहवाही मिली। इसके अलावे डॉ. रामसूरत प्रियदर्शी,राजकुमार चौधरी, रामाश्रय राय, राजकुमार राय, काविश जमाली, विष्णु कुमार केडिया, कासिम सबा, डॉ. सुनील चम्पारणी, दीपक कुमार श्रीवास्तव, डॉ. मुरलीधर देव, डॉ. अशोक कुमार सिन्हा, सुबोध नाथ मिश्र, माजिद कमर, ज्योति कुमारी, मणिशंकर प्रसाद सिन्हा, द्वारिका राय सुबोध, दिनेश प्रसाद, जफर इकबाल समेत रचनाकारों ने अपनी प्रस्तुत से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत डा. रामसूरत दास के गणेश वंदना से हुई। अध्यक्षता रेल राजभाषा के पूर्व अधिकारी द्वारिका राय सुबोध ने की। स्वागत डा. रमेश गौरिश ने किया तो संचालन प्रवीण कुमार चुन्नू ने किया।

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